उलूक टाइम्स: अच्छे
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बुधवार, 14 सितंबर 2016

शब्द दिन और शब्द अच्छे जब एक साथ प्रयोग किये जा रहे होते हैं

कुछ शब्द
कभी भी

खराब गन्दे
अजीब से

या
गालियाँ
नहीं होते हैं

पढ़े लिखे
विद्वतजन
अनपढ़
अज्ञानी

सभी समझते हैंं
अर्थ उनके
करते हैं प्रयोग
बनाते हैं वाक्य

पर्दे में नहीं
रखे जाते हैं
इतने बेशर्म
भी
नहीं होते हैं

ना सफेद
ना काली
ना हरी
ना लाल
मिर्च ही
होते हैं

एक ही दिन के
एक प्रहर में ही
एक ही नहीं
कई कई बार
प्रयोग होते हैं

ज्यादातर
कोई ध्यान
नहीं देता है

कहते कहते
बात में बेबात में
ऐसे वैसे या कैसे
किससे क्यों

और
किसलिये
कहे गये
होते हैं

कभी
शब्दों के
आगे के

कभी
शब्दों के
पीछे के
शब्द होते हैं

एक वचन होंं
स्त्रीलिंग होंं
बहुत ज्यादा
नरम होते हैं

बहुवचन और
पुल्लिंग होते
ही लगता है

जैसे कभी
अचानक ही
बहुत गरम
हो रहे होते हैं

दिन
अच्छा कहो
अच्छा दिन कहो

पत्ते हरे हों
या सूखे कहो

कहीं के भी
कभी भी
हिलते हुऐ
जरा सा भी
महसूस
नहीं होते हैं

‘उलूक’
बेवकूफ के
भेजे में भरे
गोबर में
उठते भवरों से

कुछ अजीब
से प्रश्न जरूर
उसे उठते हुऐ
दिख रहे होते हैं

जब शब्द
दिन के पीछे
शब्द अच्छे
और शब्द
अच्छे के आगे
शब्द दिन

किसी भी
संदर्भ में कहे गये
करा रहे होते हैं 

आभास
कहीं कुछ जलने का

और
सामने सामने
के ही कुछ

कुछ लाल
और
कुछ पीले
हो रहे होते हैं ।

चित्र साभार: www.indif.com

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

अच्छे लोग और उनके उनके लिये मिमियाते बकरे


बकरे कटने के लिये ही होते हों 
या 
बकरे हर समय हर जगह कटें ही 

जरूरी नहीं है 

हर कोई 
बकरे नहीं  काटता है 
कुछ लोग जानते हैं 
बहुत ही अच्छी तरह 

कुछ बकरे 
शहर में मिमियाने के लिये 
छोड़ने भी जरूरी होते हैं 
जरूरी नहीं होता है उन्हें 
कुछ खिलाना या पिलाना 

कुछ बकरे 
खुद अपनी हरी पत्तियाँ खाये हुए 
पेट भरे होते हैं 

बकरे
शहर 
में छोड़ना 
इस लिये भी जरूरी होता है 
ताकि सनद रहे 

और 
बकरे भी हमेशा 
खुद के लिये ही नहीं मिमियाते हैं 

बकरे
वो सब 
बताते हैं जो उन्हें खुद 
मालूम नहीं होता है 

बकरों को 
गलत फहमी होती है
अपने 
खुलेआम आजादी से घूमने की 
वजह की जानकारी होने की 

अच्छे लोग 
बकरों को कभी काटा नहीं करते हैं 

बकरे
हमेशा 
बताते हैं 
अच्छे लोगों की अच्छाइयाँ 
शहर की गलियों में मिमिया मिमिया कर 

देश को भी 
बहुत ज्यादा जरूरत होती है 
ऐसे अच्छे लोगों की 
जिनके पास 
बहुत सारे बकरे होते हैं 
सारे शहर में मिमिया लेने वाले 
बिना हरी घास की चिंता किये हुऐ 

‘उलूक’ 
कब से पेड़ पर बैठा बैठा 
गिनती भूलने लगा है 
अच्छे लोगों और उनके 
उनके लिये मिमियाते 
बकरों को गिनते गिनते । 

चित्र साभार: www.speakaboos.com

रविवार, 23 अगस्त 2015

कहते कहते ही कैसे होते हैं कभी थोड़ी देर से भी होते हैं



तुम तो पीछे ही पड़ गये दिनों के 
दिन तो दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

अच्छी और बुरी तो सोच होती है 
उसी में कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं कोई लोच होती है 

सब की समझ में सब कुछ 
अच्छी तरह आ जाये 
ऐसा भी नहीं होता है 

आधी दुनियाँ में उधर रात 
उसके इधर होने से नहीं होती है 

इधर की दुनियाँ में दिन होने से 
रात की बात नहीं होती है 

किसी से 
नाँच ना जाने आँगन टेढ़ा 
कहना भी
बहुत अच्छी बात नहीं होती है 

पहले ही
पूछ लेने की आदत ही 
सबसे अच्छी एक आदत होती है 

जो हमेशा
भले लोगों की 
हर भली बात के साथ होती है 

लंगड़ा कर
यूँ ही शौक से 
नहीं चलना चाहता है कोई भी कभी भी 

सोच में
नहीं होती है 
दायें या बाँयें पाँव में से 
किसी एक में कहीं थोड़ी बहुत 
मोच पड़ी होती है 

अच्छा अगर
नहीं
दिख रहा होता है 
सामने से कहीं 

कहीं ना कहीं 
रास्ते में होती है
उस अच्छे की गाड़ी 
और
थोड़ा सा
लेट हो रही होती है 

दिन तो
दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

किस्मत
भी होती है 
भेंट नहीं हो पा रही होती है 

वैसे भी 
सबके
एक साथ नहीं होते हैं 
जिसके हो चुके होते है 
'उलूक' 

उसके
अगली बार 
तक
तो
होने भी नहीं होते हैं । 

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

सोमवार, 17 अगस्त 2015

चलचित्र है चल रहा है मान ले अभी भी सुखी हो जायेगा

जो परेशान है
वो उसकी
खुद की खुद के
लिये बोये गये
बीज से उसी
के खुद के खेत
में उगा पेड़ है
इसमें कोई कैसे
मदद करे जब
कोई भी सामने
वाला दिखता
एक है भी तब भी
एक नहीं है डेढ़ है
घर से शुरु करें
आस पास देखें
या शहर जिले
राज्य और देश
कहीं छोटी कहीं
थोड़ी बड़ी और
कहीं बहुत ही
विकराल समझ की
घुसेड़म घुसेड़ है
बहुत आसान है
समस्याओं के
समाधान किसी
और के नहीं
सब कुछ तेरे
और केवल तेरे
ही खुद के ही हाथ
से तेरे खेत की ही
बनी एक मेढ़ है
मान क्यों नहीं लेता है
चल रही है पर्दे पर
एक फिल्म बहुत बड़े
बजट की है और बस
हीरो ही हीरो है बाकी
उसके अलावा सब कुछ
यहाँ तक तू भी एक
बहुत ही बड़ा जीरो है
सारी समस्यायें चुटकी
में हल हो जायेंगी
दिखाये देखे सपने की
दुनियाँ फिल्म देखने
के दरम्यान के तीन
घंटे की बस एक
फिल्म हो जायेगी
हर सीन वाह वाह
और जय जय का
होता चला जायेगा
कैसे नहीं दिखेगा
आयेगा नहीं भी
तब भी फिल्म का
अंत सकारात्मक
कर ही दिया जायेगा
बिना टिकट खरीदे
फिल्म देखने का
आदी हो जायेगा
अच्छे दिन से
शुरु होगा दिन हमेशा
बिना बीच में रात
के आये ही अच्छे
किसी दिन पर जाकर
पूरा भी हो जायेगा
‘उलूक’ ने देखनी
शुरु कर दी है फिल्म
पूरी होनी ही है
पूरी हो भी  जायेगी
बिना देखे देखने की
आदत हो गई हो जिसे
कुछ देख के दिख जायेगा
तो बताने के लिये
वापिस भी जरूर आयेगा ।

चित्र साभार: www.hyperlino.com

शुक्रवार, 19 जून 2015

अच्छा काल मतलब आपातकाल

अच्छे दिन की तरफ
कदम बढ़ाऊँ या नहीं
कई दिन महीने हो गये
फैसला ही नहीं
लिया जा रहा है
भ्रम बना हुआ है
बड़ा और बड़ा
होता जा रहा है
बताने वाले ने भी
खूब बताया
बहुत बड़ा सा
एक भोंपू
लेकर आया
उस समय लगा
बस अपने ही
समझ में सब
अच्छी तरह
से आ रहा है
बताने वाला
बताते बताते
भूल गया शायद
क्या बता रहा है
अच्छे दिन पर
चूना लगाकर
आपात काल
आ रहा है जैसा ही
अब कुछ अकेले में
जा कर फुसफुसा रहा है
अच्छे का मतलब
आपात होता है
दिन काल हुआ
जा रहा है
रोज ही रहता है
अपने घर में हमेशा से
तानाशाह हर दूसरा
बहुत पहले से ही
नजर आ रहा है
‘उलूक’ को आदत
हो चुकी है
राजशाही तानाशाही
हरामेशाही की
अपने ही घर परिवार
में अपने ही लोगों के साथ
आपातकाल आता है या
आपतकाल नहीं आता है
उसके घर के हिटलरों में से
एक भी ना कहीं आ रहा है
ना ही आने वाले समय
में कहीं जा रहा है
विनाशकाले विपरीत बुद्धी
ही उसके जैसे सभी भाई बंद
मंदबुद्धियों के लिये एक
वरदान हुआ जा रहा है।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शनिवार, 1 मार्च 2014

बादल भी कुछ नहीं लिखते बादलों को नहीं होती है घुटन

शायद
ज्यादा अच्छे होते हैं वे लोग
जो कुछ नहीं लिखते है

वैसे
किसी के लिखने से ही
लिखने वाले के बारे में कुछ पता चलता हो
ऐसा भी जरूरी नहीं होता है

पर
कुछ नहीं कहना कुछ नहीं लिखना
नहीं लिखने वाले की मजबूती का
पता जरूर देता है

लिखने से ज्यादा
अच्छा होता है कुछ करना

कहा भी गया है
गरजते हैं जो बादल बरसते नहीं हैं

बादल भी तो बहुत चालाकी करते हैं

जहाँ बनते हैं वहाँ से चल देते हैं

और बरसते हैं
बहुत दूर कहीं ऐसी जगह पर
जहाँ कोई नहीं जानता है
बादल कहाँ कैसे और क्यों बनते हैं

एक बहुत बड़े देश के कोने कोने के
लोग भी तो पहुँचते हैं हमेशा
एक नई जगह
और वहाँ बरसते हुऐ दिखते हैं

कहीं भी कोई जमीन नम नहीं होती हैं
ना उठती है थोड़ी सी भी
सोंधी गंध कहीं से गीली मिट्टी की

बरसना बादलों का बादलों पर और
बरसात का नहीं होना

किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ना

बहुत कुछ यूँ ही सिखा देता है
और
बादलों के देश की
पानी की छोटी बूँदें भी
सीख लेती हैं नमीं सोख लेना

क्योंकि जमीन की
हर बूँद को खुद के लिये बस
बनना होता है एक बड़ा बादल

बरसने के लिये नहीं
बस सोखने के लिये कुछ नमीं

जो सब लिखने से नहीं आता है

बस सीखा जाता है उन बादलों से
जो बरसते नहीं बस गरजते हैं

बहुत दूर जाकर
जहाँ किसी को फर्क नहीं पड़ता है

बिजली की चमक से
या
घड़धड़ाहट से

बादल भी कहाँ लिखते हैं कुछ
कभी भी कहीं भी ।

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

उलूक उवाच अथ चुनाव कथा


दूरदृष्टि
पक्के इरादे
के
साथ

संभाली है
कमान

एक
अच्छे
आदमी
के

चुनाव
की

कुछ
बुरे 
लोगों
की
फौज ने

अच्छे
के
कंधे

अभी
मजबूत
किये
जा रहे हैं

चुनाव
के बाद

गोलियां
इसी कंधे
से
चलाने के लिये

कुछ
अच्छे लोगों
ने

संभाली है
बागडोर

एक
बुरे आदमी
के
चुनाव प्रचार
की

इरादे
नेक हैं
निशाना
एक है

अच्छे
के साथ
भी है
एक भीड़

बुरे
के साथ
भी 
है
दूसरी भीड़

एक
के बाद एक

रोज
निकल के
आ रही हैं
भीड़े
सड़क पर
लगातार

लोग
लगा रहे हैं
गणित
चाय के
खोमचों पर
हमेशा
की तरह
आजकल

अन्ना
और उसकी
सफेद
टोपियां भी
खो गयी हैं

पता 
नहीं
कहां

इन सब
समीकरणों
के बीच

मुझे
मालूम है

मैने
भी
देना है
एक वोट

इन
सभी
भ्रमों से
उलझते हुवे

कुछ
दिन बाद
और

फिर
भूल जाना है
कुछ
सालों के लिए।