कृष्ण अर्जुन
उपदेश
और गीता
आज भी हैं
बस गीता
किताब
नहीं रही
अखबार
हो गई है
बुद्धिजीवियों
के ऊपर बैठा
हुआ कौआ
का का करता है
कौए को
कृष्ण की
नस का
पता रहता है
अखबार
गीता है
और उसपर
छपी खबर
श्लोक होती है
जिनको नहीं
पता है वो
समझ लें
और
हनुमान
चालीसा पढ़ना
छोड़ कर
रोज सुबह का
अखबार बाँच लें
चोरी करें
डाका डालें
कुर्सी में
बैठने के लिये
ऊपर कहीं
दूर से दबाव
डलवालें
वहाँ भी कृष्ण हैं
गीता बाँचते हैं
खबर बहुत
जरूरी होती है
नस दबाने
के बाद ही
सीढ़ी पूरी
होती है
सफेद कौआ
काले कौए की
वकालत करता
नजर आता है
अखबार कौए
के रंग की बात
पता नहीं क्यों
खा जाता है
नस दबाना
अब किसी
और जगह
सिखाया
जाने वाला है
जगह नहीं
मिल रही है
कहीं भेी
अभी तक
ये अलग
बात है
और
छोटा सा
बबाला
आने वाला है
समय बहुत
अच्छा है
बस नस
दबा कर
कुछ भी
कहीं भी
कैसा भी
काम किसी
से भी करवाना
आधार कार्ड
के साथ
हो जाने
वाला है
ठंड रखना
जरूरी है
फर्जी की
तरक्की का
सरकारी आदेश
जल्दी ही
आने वाला है
‘उलूक’
अखबार
सरकार
और फर्जी
मत सोच
आराम से
किसी भी
ईमानदार
की
ईमानदारी
की
नींव खोद ।
चित्र साभार: Dreamstime.com
बहुत लिखता है
आसपास रहता है
अलग बात है
लिखता हुआ
कहीं भी नहीं
दिखाई देता है
दिखता है तो
बस उसका
लिखा हुआ ही
दिखाई देता है
क्या होता है
अगर उसके
लिखे हुऐ में
कहीं भी
वो सब नहीं
दिखाई देता है
जो तुझे भी
उतना ही
दिखाई देता है
जितना सभी को
दिखाई देता है
आँखे आँखों में
देख कर नहीं
बता सकती
हैं किसी की
उसे क्या
दिखाई देता है
लिखता बहुत
लाजवाब है
लिखने वाला
हर कोई खुल
कर देता है
बधाई पर
बधाई देता है
बहुत
दूर होता है
फिर भी पढ़ने
वाले को जैसे
लिखे लिखाये में
अपने एक नहीं
हजारों आवाज
देता हुआ
सुनाई देता है
बहुत छपता है
पहले पन्ने को
खोलने का जश्न
हर बार होता है
भीड़ जुटती है
चेहरे के पीछे
के चेहरों को
गिना जाता है
बहुत आसानी से
अखबारों के
पन्नों में छपी
तस्वीरों पर
खबर का मौजू
देखते ही
समझ में
आ जाता है
होगा जरूर
कहीं ना कहीं
खबर में चर्चे में
बस चार लाईन
पढ़ते ही पहले
उसका ही नाम
खासो आम जैसा
दिखाई देता है
अपने देखने से
मतलब रखना
चाहिये ‘उलूक’
जरूरी नहीं
होता है हर
किसी को
खून का रंग
लाल ही
दिखाई देता है ।
चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com/categories/seeing-clipart
महीना
बदलने से
किसने
कह दिया
लिखना
बदल
जाता है
एक
महीने में
पढ़ लिख
कर
कहाँ
कुछ नया
सीखा
जाता है
खुशफहमी
हर बार ही
बदलती है
गलतफहमी में
जब भी
एक पुराना
जाता है
और
कोई नया
आता है
कोई तो
बात होती
ही होगी
फर्जियों में
फर्जियों का
पुराना खाता
बिना
आवेदन किये
अपने आप
नया हो
जाता है
कान से
होकर
कान तक
फिसलती
चलती है
फर्जीपने के
हिसाब की
किताबें
फर्जियों
की फर्जी
खबर पर
सीधे सीधे
कुछ
कह देना
बदतमीजी
माना जाता है
बाक्स
आफिस
पर
उछालनी
होती है
फिलम
अगर
बहुत
पुराना
नुस्खा है
और
आज भी
अचूक
माना
जाता है
हीरो के
हाथ में
साफ साफ
मेरा बाप
चोर है
काले
रंग में
सजा के
लिखा
जाता है
‘उलूक’
चिड़ियों की
खबरों में भी
कभी ध्यान
लगाता
थोड़ा
सा भी अगर
अब तक
समझ चुका
होता
शायद
तोते को
कितना भी
सिखा लो
चोर चोर
चिल्लाना
चोरों के
मोहल्ले में तो
इसी
बात को
कुर्सी में
बैठने का
शगुन माना
जाता है ।
चित्र साभार: Clipart Panda
सुना है
बहुत कुछ
बहुत तेजी से
बदल रहा है
पुराना
कुछ भी
कहीं भी
नहीं चल
रहा है
जितना भी है
जो कुछ भी है
सभी कुछ
खुद बा खुद
नया नया
निकल रहा है
लिखना नहीं
सीख पाया
है बेवकूफ
तब से अब तक
लिखते लिखते
अब तक
लिखता
चल रहा है
बेशरम है
फिर से
लिख रहा है
कब तक
लिखेगा
क्या क्या
लिखेगा
कितना
लिखेगा
कुछ भी
पता नहीं
चल रहा है
पुराना
लिखा सब
डायरी से
बिखर कर
इधर
और उधर
गिरता हुआ
सब मिल
रहा है
गली
मोहल्ले
शहर में
बदनाम
चल रहा है
बहुत दूर
कहीं बहुत
बड़ा मगर
नाम चल
रहा है
सीखना
जरूरी
हो रहा है
लिख कर
बहुत दूर
भेज देना
गली
में लिखा
गली में
शहर
में लिखा
शहर में
बिना मौत
बस कुछ
यूँ ही
मर रहा है
लत लग
चुकी है
‘उलूक’ को
बाल की खाल
निकालने की
बाल मिल
रहा है मगर
खाल
पहले से
खुद की
खुद ही
निकाला हुआ
मिल रहा है ।
चित्र साभार: Inspirations for Living - blogger
कुछ
कहने का
कुछ
लिखने का
कुछ
दिखने का
मन
किसका
नहीं होता है
सब
चाहते हैं
अपनी बात
को कहना
सब
चाहते हैं
अपनी
बात को
कह कर
प्रसिद्धि
के शिखर
तक पहुँच
कर उसे छूना
लिखना
सब
को आता है
कहना
सब
को आता है
लिखने
के लिये
हर कोई
आता है
अपनी बात
हर कोई
चाहता है
शुरु करने
से पहले ही
सब कुछ सारा
बस
मन की बात
जैसा कुछ
हो जाता है
ऐसा हो जाना
कुछ अजूबा
नहीं होता है
नंगा
हो जाना
हर किसी को
आसानी
से कहाँ
आ पाता है
सालों
निकल
जाते हैं
कई सालों
के बाद
जाकर
कहीं से
कोई निकल
कर सामने
आता है
कविता
किस्सागोई
भाषा की
सीमाओं
को बांधना
भाषाविधों
को आता है
कौन रोक
सकता है
पागलों को
उनको
नियमों
में बाँधना
किसी को
कहाँ
आता है
पागल
होते हैं
ज्यादातर
कहने वाले
मौका
किसको
कितना
मिलता है
किस
पागल को
कौन पागल
लाईन में
आगे ले
जाता है
‘उलूक’
लाईन मत
गिना कर
पागल मत
गिना कर
बस हिंदी
देखा कर
विद्वान
देख कर
लाईन में
लगा
ले जाना
बातों की
बात में
हमेशा ही
देखा
जाता है ।
चित्र साभार: