कुछ
कहने का
कुछ
लिखने का
कुछ
दिखने का
मन
किसका
नहीं होता है
सब
चाहते हैं
अपनी बात
को कहना
सब
चाहते हैं
अपनी
बात को
कह कर
प्रसिद्धि
के शिखर
तक पहुँच
कर उसे छूना
लिखना
सब
को आता है
कहना
सब
को आता है
लिखने
के लिये
हर कोई
आता है
अपनी बात
हर कोई
चाहता है
शुरु करने
से पहले ही
सब कुछ सारा
बस
मन की बात
जैसा कुछ
हो जाता है
ऐसा हो जाना
कुछ अजूबा
नहीं होता है
नंगा
हो जाना
हर किसी को
आसानी
से कहाँ
आ पाता है
सालों
निकल
जाते हैं
कई सालों
के बाद
जाकर
कहीं से
कोई निकल
कर सामने
आता है
कविता
किस्सागोई
भाषा की
सीमाओं
को बांधना
भाषाविधों
को आता है
कौन रोक
सकता है
पागलों को
उनको
नियमों
में बाँधना
किसी को
कहाँ
आता है
पागल
होते हैं
ज्यादातर
कहने वाले
मौका
किसको
कितना
मिलता है
किस
पागल को
कौन पागल
लाईन में
आगे ले
जाता है
‘उलूक’
लाईन मत
गिना कर
पागल मत
गिना कर
बस हिंदी
देखा कर
विद्वान
देख कर
लाईन में
लगा
ले जाना
बातों की
बात में
हमेशा ही
देखा
जाता है ।
चित्र साभार:
कहने का
कुछ
लिखने का
कुछ
दिखने का
मन
किसका
नहीं होता है
सब
चाहते हैं
अपनी बात
को कहना
सब
चाहते हैं
अपनी
बात को
कह कर
प्रसिद्धि
के शिखर
तक पहुँच
कर उसे छूना
लिखना
सब
को आता है
कहना
सब
को आता है
लिखने
के लिये
हर कोई
आता है
अपनी बात
हर कोई
चाहता है
शुरु करने
से पहले ही
सब कुछ सारा
बस
मन की बात
जैसा कुछ
हो जाता है
ऐसा हो जाना
कुछ अजूबा
नहीं होता है
नंगा
हो जाना
हर किसी को
आसानी
से कहाँ
आ पाता है
सालों
निकल
जाते हैं
कई सालों
के बाद
जाकर
कहीं से
कोई निकल
कर सामने
आता है
कविता
किस्सागोई
भाषा की
सीमाओं
को बांधना
भाषाविधों
को आता है
कौन रोक
सकता है
पागलों को
उनको
नियमों
में बाँधना
किसी को
कहाँ
आता है
पागल
होते हैं
ज्यादातर
कहने वाले
मौका
किसको
कितना
मिलता है
किस
पागल को
कौन पागल
लाईन में
आगे ले
जाता है
‘उलूक’
लाईन मत
गिना कर
पागल मत
गिना कर
बस हिंदी
देखा कर
विद्वान
देख कर
लाईन में
लगा
ले जाना
बातों की
बात में
हमेशा ही
देखा
जाता है ।
चित्र साभार: