उलूक टाइम्स: भेड़िये
भेड़िये लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
भेड़िये लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

गुलाम के इशारे पर चलता है स्वतंत्रता पढ़ाने को चला आता है


स्वतंत्र 
एक शब्द है 

स्वतंत्रता 
एक
ख्वाब है 

गुलाम 
और 
गुलामी 



आम है 
और
खास है 

नकारते रहिये 

हो गये

तो 


सीढ़ी 
आपके पास है 

नहीं 
हो पाये 


अगर 

का
 मतलब 
साँप 
कहीं ना कहीं है 

और 
बहुत नजदीक है 
और 
आसपास है 

साँप 
और सीढ़ी 
के बीच 
एक रिश्ता है 

इसीलिये 
खेला भी जाता है 

हर गुलाम 

अपने नीचे 

बस गुलाम 
देखना
चाहता है 
गुलाम
सोचना 
चाहता है 

हर गुलाम 
एक बड़े 
गुलाम का 
खास होना 
चाहता है 

गुलाम 
गुलाम होकर
भी 
गुलाम हूँ 
सोचना
भी 
नहीं चाहता है 

गुलामी 
खून में होती है 

खून 
लाल होता है 

सभी का 
एक जैसा 

आदमी से लेकर 
जानवर का तक 

सारे गुलाम 
स्वतंत्रता जीते हैं 

ख्वाब पीते हैं 

इसके 
गुलाम 
उसको 
स्वतंत्रता 
पढ़ाते हैं 

उसके 
गुलाम 

स्वतंत्रता 
सिखाने वाले 
शिक्षकों की 
पाँत में 

सबसे 
आगे खड़े 
नजर आते हैं 

नियम 
स्वतंत्र होते है 

पालन 
करने वाले 
गुलाम होते हैं 

गुलामी 
कुछ ना कुछ 
दे जाती है 

स्वतंत्रता 
पागलों के 
काम आती है 

स्वतंत्रता 
सपने जगाती है 

सोना 
बहुत जरूरी है

गुलामों को 
नींद
जरूरत से 
ज्यादा आती है 

गुलाम बहुत 
आतुरता के साथ 

स्वतंत्रता 
लिखना चाहता है 

लिखना 
शुरु करता है 

मालिक 

सपने में 
आना शुरु 
हो जाता है 

‘राम’ ईश्वर है 

‘उलूक’

गुलाम 
उसके नाम पर 
तुझे धमका कर 
तेरा क्रिया करम 
श्राद्ध सब 

अभी 
और अभी 
यहीं
कर देना 
चाहता है 

देश 
स्वतंत्र हुआ था 
गुलामों से 

कुछ सुना था 

फिर क्यों 
हर तरफ अपने 
आसपास 

अपने ऊपर 
किसी एक 
गुलाम का 
साया नजर 
आता है 

घर में ही 
घर के
भेड़िये 

नोच रहे 
होते हैं 
अपनी भेड़ें 
अपने हिसाब से 

शेर 
का गुलाम 

शेर की 
एक तस्वीर 
का
झंडा 
ला ला कर 

क्यों
लहराता है ? 

चित्र साभार: https://apptopia.com/

बुधवार, 24 मई 2017

कोशिश करें लिखें भेड़िये अपने अपने अन्दर के थोड़े थोड़े लिखना आता है सब को सब आता है

कुछ
कहने का

कुछ
लिखने का

कुछ
दिखने का

मन
किसका
नहीं होता है

सब
चाहते हैं
अपनी बात
को कहना

सब
चाहते हैं
अपनी
बात को
कह कर

प्रसिद्धि
के शिखर
तक पहुँच
कर उसे छूना

लिखना

सब
को आता है

कहना

सब
को आता है

लिखने
के लिये

हर कोई
आता है

अपनी बात

हर कोई
चाहता है

शुरु करने
से पहले ही

सब कुछ सारा

बस

मन की बात
जैसा कुछ
हो जाता है

ऐसा हो जाना
कुछ अजूबा
नहीं होता है

नंगा
हो जाना
हर किसी को

आसानी
से कहाँ
आ पाता है

सालों
निकल
जाते हैं

कई सालों
के बाद
जाकर

कहीं से
कोई निकल
कर सामने
आता है

कविता
किस्सागोई

भाषा की
सीमाओं
को बांधना

भाषाविधों
को आता है

कौन रोक
सकता है
पागलों को

उनको
नियमों
में बाँधना
किसी को
कहाँ
आता है

पागल
होते हैं
ज्यादातर
कहने वाले

मौका
किसको
कितना
मिलता है

किस
पागल को

कौन पागल
लाईन में
आगे ले
जाता है

‘उलूक’
लाईन मत
गिना कर

पागल मत
गिना कर

बस हिंदी
देखा कर

विद्वान
देख कर
लाईन में
लगा
ले जाना

बातों की
बात में
हमेशा ही
देखा
जाता है ।

चित्र साभार:

सोमवार, 7 अप्रैल 2014

आदत से मजबूर कथावाचक खाली मैदान में कुछ बड़बड़ायेंगे

भेड़ियों
के झुंड में
भेड़ हो चुके

कुछ
भेड़ियों के
मिमयाने की
मजबूरी को

कोई
व्यँग कह ले
या
उड़ा ले मजाक

अट्टहासों
के बीच में
तबले की
संगत जैसा ही
कुछ महसूस
फिर भी
जरूर करवायेंगे

सुने
ना सुने कोई

पर
रेहड़ में
एक दूसरे को
धक्का देते हुऐ
आगे बढ़ते हुऐ
भेड़ियों को
भी पता है

शेरों के
शिकार में से
बचे खुचे माँस
और
हड्डियों में
हिस्से बांट
होते समय

सभी
भेड़ों को
उनके अपने
अंदर के डर
अपने साथ
ले जायेंगे

पूँछे
खड़ी कर के
साथ साथ

एक दूसरे के
बदन से बदन
रगड़ते हुऐ
एक दूसरे का
हौसला बढ़ायेंगे

काफिले
की रखवाली करते
साथ चल रहे कुत्ते

अपनी
वफादारी
अपनी जिम्मेदारी

हमेशा
की तरह
ही निभायेंगे

बाहर की
ठंडी हवा को
बाहर की
ओर ही
दौड़ायेंगे

अंदर
हो रही
मिलावटों में

कभी
पहले भी
टाँग नहीं अढ़ाई
इस बार भी
क्यों अढ़ायेंगे

दरवाजे
हड्डियों के
खजाने के
खुलते ही

टूट पड़ेंगे

भेड़िये
एक दूसरे पर

नोचने
के लिये
एक दूसरे
की ताकत
को तौलते हुऐ

शेर को
लम्बी दौड़
के बाद की
थकावट को
दूर करने की
सलाह देकर

आराम करने का
मशविरा जरूर
दे कर आयेंगे

भेड़
हो चुके भेड़िये

वापस
अपने अपने
ठिकानो पर
लौट कर
शाँति पाठ
जैसा कुछ
करवाने
में जुट जायेंगे

पंचतंत्र
नहीं है
प्रजातंत्र है

इस
अंतर को
अभी
समझने में

कई
स्वतंत्रता
संग्राम
होते हुऐ
नजर आयेंगे ।