कहाँ पता चल पाता है आदमी को
कि वो एक माला पहने हुवे फोटो हो जाता है
अगरबत्ती की खुश्बू भी कहां आ पाती है उसे
तीन पीढ़ियों के चित्र
दिखाई देते हैं सामने कानस में
धूल झाड़ने के लिये
दीपावली से एक दिन पहले
चौथी पीढ़ी का चित्र वहां नहीं दिखता
शायद मिटा चुका होगा सिल्वर फिश की भूख
गद्दाफी को क्रूरता से नंगा कर
नाले में दी गयी मौत
कोल्ड स्टोरेज में रखा उसका शव भी नहीं देख पाया होगा
वो अकूत संपत्ति
जो अगली सात पीढ़ियों के लिये भी कम होती
जो अगली सात पीढ़ियों के लिये भी कम होती
पर बगल में पड़ा
उसके बेटे का शव भी खिलखिला के हँसता रहा होगा
शायद
कौन बेवकूफ समझना चाहता है ये सब कहानियां
रोज शामिल होता है एक शव यात्रा में
लौटते लौटते उसे याद आने लगती है
जीवन बीमा की किस्त ।
बहुत गंभीर कविता... अंतिम पंक्तियाँ उद्वेलित कर देती हैं...
जवाब देंहटाएंWah kya khoob likha hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-08-2014) को "अत्यल्प है यह आयु" (चर्चा मंच 1700) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जिंदगी का सच बहुत देर से साझ आता है .....सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमेघ आया देर से ......
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
जिंदगी का सच बहुत देर से समझ आता है .....सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमेघ आया देर से ......
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
यथार्थपूर्ण
जवाब देंहटाएंजीवन का सत्य--कठोर,नंगा,भीवत्स--फिर भी जीते हैं झूठ ही.
जवाब देंहटाएंकटु सत्य...बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...
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