उलूक टाइम्स: शव
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बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शव का इंतजार नहीं शमशान का खुला रहना जरूरी होता है

हाँ भाई हाँ
होने होने की
बात होती है
कभी पहले सुबह
और उसके बाद
रात होती है
कभी रात पहले
और सुबह उसके
बाद होती है
फर्क किसी को
नहीं पड़ता है
होने को जमीन से
आसमान की ओर
भी अगर कभी
बरसात होती है
होता है और कई
बार होता है
दुकान का शटर
ऊपर उठा होता है
दुकानदार अपने
पूरे जत्थे के साथ
छुट्टी पर गया होता है
छुट्टी लेना सभी का
अपना अपना
अधिकार होता है
खाली पड़ी दुकानों
से भी बाजार होता है
ग्राहक का भी अपना
एक प्रकार होता है
एक खाली बाजार
देखने के लिये
आता जाता है
एक बस खाली
खरीददार होता है
होना ना होना
होता है नहीं
भी होता है
खाली दुकान को
खोलना ज्यादा
जरूरी होता है
कभी दुकान
खुली होती है और
बेचने के लिये कुछ
भी नहीं होता है
दुकानदार कहीं
दूसरी ओर कुछ
अपने लिये कुछ
और खरीदने
गया होता है
बहुत कुछ होता है
यहाँ होता है या
वहाँ होता है
गन्दी आदत है
बेशरम ‘उलूक’ की
नहीं दिखता है
दिन में उसे
फिर भी देखा और
सुना कह रहा होता है ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

रविवार, 30 अक्तूबर 2011

नासमझ

कहाँ पता चल पाता है आदमी को
कि वो एक माला पहने हुवे फोटो हो जाता है

अगरबत्ती की खुश्बू भी कहां आ पाती है उसे
तीन पीढ़ियों के चित्र
दिखाई देते हैं सामने कानस में
धूल झाड़ने के लिये
दीपावली से एक दिन पहले

चौथी पीढ़ी का चित्र वहां नहीं दिखता
शायद मिटा चुका होगा सिल्वर फिश की भूख

गद्दाफी को क्रूरता से नंगा कर
नाले में दी गयी मौत
कोल्ड स्टोरेज में रखा उसका शव भी नहीं देख पाया होगा
वो अकूत संपत्ति
जो अगली सात पीढ़ियों के लिये भी कम होती
पर बगल में पड़ा
उसके बेटे का शव भी खिलखिला के हँसता रहा होगा
शायद

कौन बेवकूफ समझना चाहता है ये सब कहानियां
रोज शामिल होता है एक शव यात्रा में
लौटते लौटते उसे याद आने लगती है
जीवन बीमा की किस्त ।