मेरा अमरूद उनको केला नजर आता है
मैं चेहरा दिखाता हूँ वो बंदर बंदर चिल्लाता है
मैं प्यार दिखाता हूँ वो दांत दिखाता है
मेरी सोच में लोच है उसके दिमाग में मोच है
धीरे धीरे सीख लूंगा
उसको डंडा दिखाउंगा प्यार से गले लगाउंगा
जब बुलाना होगा तो जा जा चिल्लाउंगा
डाक्टर की जरूरत पड़ी तो एक मास्टर ले आऊंगा
तब मेरा अमरूद उसको अमरूद नजर आयेगा
मेरी उल्टी बातों को वो सीधा समझ जायेगा ।
करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
बढ़िया रचना है सर .
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमरुत मरू देता बना, जल अमरू कर देत ।
जवाब देंहटाएंमरुद्रुम कांटे त्याग दे, हो अमरूदी खेत ।
हो अमरूदी खेत, देश भी बना बनाना ।
बैठे बन्दर खाँय, वहां लेकिन मत जाना ।
डालेंगे वे नोच, सभी की मिली भगत है ।
राम राज में युद्ध, सफल वो आज जुगत है ।।
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंअजब गजब ..
जवाब देंहटाएंअजब गजब रोचक प्रस्तुति,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : समय की पुकार है,
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (12-01-2015) को "कुछ पल अपने" (चर्चा-1856) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
समझ समझ का फेर है, समझ सके तो समझ
जवाब देंहटाएंअपना हित है तो समझ ले ,नहीं है तो ना समझ !
संत -नेता उवाच !
क्या हो गया है हमें?
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 03 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
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