उलूक टाइम्स: निराशा सोख ले जाते हैं कुछ लोग जाते जाते नहीं लौटने का बताकर भी

बुधवार, 30 सितंबर 2015

निराशा सोख ले जाते हैं कुछ लोग जाते जाते नहीं लौटने का बताकर भी


आयेंगे 
उजले दिन जरुर आएँगे 
उदासी दूर कर खुशी खींच लायेंगे 
कहीं से भी अभी नहीं भी सही कभी भी 

अंधेरे समय के 
उजली उम्मीदों के कवि की उम्मीदें 
उसकी अपनी नहीं 
निराशाओं से घिरे हुओं के लिये
आशाओं की 
उसकी अपनी बैचेनी की नहीं 
हर बैचेन की
बैचेनी की 

निर्वात पैदा ही नहीं होने देती हैं
कुछ हवायें 
फिजांं से कुछ इस तरह से चल देती हैं 
हौले से जगाते हुऐ आत्मविश्वास 
भरोसा टूटता नहीं है जरा भी 
झूठ के
अच्छे समय के झाँसों में आकर भी 

कलम एक की
बंट जाती है एक हाथ से कई सारी 
अनगिनत होकर कई कई हाथों में जाकर भी 

साथी होते नहीं
साथी दिखते नहीं 
पर समझ में आती है थोड़ी बहुत 
किसी के साथ चलने की बात 
साथी को
पुकारते हुऐ 
कुछ ना बताकर भी

मशालें बुझते बुझते
जलना शुरु हो जाती हैं 
जिंदगी हार जाती है
जैसा महसूस होने से पहले 
लिखने लगते हैं लोग थोड़ा थोड़ा उम्मीदें 
कागजों के कोने से कुछ इधर कुछ उधर 
बहुत नजदीक पर ना सही 
दूर कहीं भी
नहीं कुछ भी कहीं भी
सुनाकर भी। 

चित्र साभार: www.clker.com

3 टिप्‍पणियां:


  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.10.2015) को "दूसरों की खुशी में खुश होना "(चर्चा अंक-2116) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!

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