गण हैं तंत्र है सिपाही हैं
झंडा है एक है तिरंगा है
आजाद हैं आजादी है
शहनाई हैं देश है जज्बा है सेवा है
मिठाई है मलाई है मेवा है
चुनाव हैं जरूरी हैं लड़ना है मजबूरी है
दल है बल है
कोयला है कोठरी हैं
काजल है धुलाई है
निरमा है सफेद है जल है सफाई है
दावेदारी है दावेदार हैं
कई हैं प्रबल हैं
इधर हैं उधर हैं
इधर से उधर हैं उधर से इधर हैं
खुश हैं खुशी है
शोर है आवाजाही है
चश्मा है लाठी है धोती है
काली है सूची है
नाम लेने की भी मनाही है
सिल्क है अंगूठी है
कलफ है कोठी है
वाह है वाहवाही है
छब्बीस है जनवरी है
सालों से आई है
आती है जाती है
आज फिर से चली आई है
शरम की बात नहीं
बेशर्मी नहीं बेहयाई नहीं
‘उलूक’ की चमड़ी
खुजली वाली है खुजलाई है
कबूतरों की बारात है
देखी कहीं एसी कभी
कौओं की अगुआई है
कौओं ने सजाई है
गण हैं तंत्र है सिपाही हैं
झंडा है बधाई है
बधाई है बधाई है बधाई है ।
चित्र साभार: www.fotosearch.com
छब्बीस जनवरी है
जवाब देंहटाएंसालों से आती आई है
सालों तक आती आयेगी
कुछ न कुछ बदलाव लायेगी
हमारे अधिकार हैं
हमारे कर्तव्य है
समय-समय पर याद दिलाती रहेगी।
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प्रणाम सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ।