उलूक टाइम्स: ‘उलूक’ अच्छा किया कल के ही दिन कुछ नहीं लिखा था

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

‘उलूक’ अच्छा किया कल के ही दिन कुछ नहीं लिखा था



रोज 
वैसे भी 
कौन लिखता है 
आज कल 

कल भी 
कुछ नहीं लिखा था 

कल ही 
बहुत कुछ लिखना था 

फिर भी नहीं लिखा था 

आसमान 
लिखने की इच्छा थी 

नीला साफ धुला हुआ ना भी सही 
कुछ धुँधलाया हुआ सा कहीं 

बस नहीं लिखा था 
तो नहीं ही लिखा था 

कतार में लगा था आसमान भी 
आँख थोड़ी सी उठाई तो थी 
थोड़ा सा किनारा कहीं दूर 
किसी के पीछे खड़ा सा दिखा था 

अजीब बात नहीं थी 
बातें अजीब होती भी नहीं है 
आदमी अजीब हो जाता है 

कतार में होने से क्या हो जाता है 
कतार जा कर कतार में मिल जाती है 
कैदी सौ गुनाह माँफ कर दिया जाता है 
कतारें जमीन में लोटना शुरु हो जाती हैं 
जमीन जमीन फैला हुआ आसमान हो जाता है 

अब आसमान का क्या कसूर फिर 

गलती देखने वाले की हो जाती है 
सीधे आसमान की ओर 
जब मन करे देखना शुरु हो जाता है 

आखिर 
औकात भी कोई चीज होती है 
जमीन से आसमान 
ऐसे ही थोड़ा सबको नजर आता है 

बेशरम 
जमीन से देखना शुरु करना क्यों नहीं सीखा था

बात कुछ लिखने की थी 
वो भी गुजरे कल के दिन की थी 

कल
सबने कुछ ना कुछ
कहीं ना कहीं 
थोड़ा सा या बहुत ज्यादा सा
कतार कतार लिखा था 

कतार में किसी के पीछे 
सिमट लिया था हर कोई 
किसी के नाम पर 
कुछ बनाने के जुनून का 
एक सिरा पकड़े हुऐ एक नाम 
आसमान होता दिखा था 

बहुत साफ साफ जर्रे जर्रे के जर्रे ने 
खुद ही लिखा था 

आसमान
इसलिये तो कतार में लगा था 

‘उलूक’
अच्छा किया 
कल के ही दिन 
कुछ नहीं लिखा था। 

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

19 टिप्‍पणियां:

  1. जी सर, सारी रचना में किसी भी पंक्ति को टच करने से कोई लिंक खुल रही रचना की पंक्तियां कॉपी नहीं हो रही।

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    उत्तर
    1. नये ब्लॉगर इन्टरफेस में कुछ समस्यायें आ रही हैं। कोशिश की है ठीक करने की। आभार श्वेता जी।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. अजीब बात नहीं थी
    बातें अजीब होती भी नहीं है
    आदमी अजीब हो जाता है
    वाह! बिलकुल सही।

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  4. सादर नमन..
    अच्छा हुआ...
    लिक्खे को कौन पढ़ता है
    हाँ, पढ़े हुए को लिखते ज़रूर हैं
    सादर..

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (०८-०८ -२०२०) को 'मन का मोल'(चर्चा अंक-३७८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  6. कल कुछ भी नहीं लिख कर भी बहुत कुछ ''लिखा'' गया

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  7. आसमान न भी लिखा गया होगा पन्नों पर ,पर कुछ तो लिखा ही जाता है कहीं हृदय के कुछ परतों पर जो न जाने कब कलम के साथ प्रवाहित हो मुखरित हो जाता है।
    बहुत सुंदर।

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  8. आप तो बिना कुछ लिखे बहुत कुछ लिख जाते हैं,सुंदर सृजन सर,सादर नमन आपको

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  9. कुछ न भी लिखते हुए आप ने बहुत कुछ लिख दिया ..यह होती है दिल की आवाज़ यो पन्नों पर उभर कर दिलों को छू जाती ..बहुत उम्दा !

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  10. सरल साँझा सा मगर सच्चा सा :)
    दाद कबूल कीजिये
    ~ फ़िज़ा

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  11. बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन

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  12. हमेशा की तरह लाजवाब और चिन्तनपरक लिखा सर .

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  13. बहुत साफ साफ जर्रे जर्रे के जर्रे ने
    खुद ही लिखा था

    आसमान
    इसलिये तो कतार में लगा था
    वाह क्या बात, बहुत ही बेहतरीन रचना आदरणीय।

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  14. कुछ ण कुछ तो लिख्नाही था ... अरे लिख तो दिया ... कल पर नहीं तो आज पर ...
    क्या बात है ...

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  15. उलूक का दृष्टिबोध काबिले तारीफ़ है ,कुछ न कह कर बहुत कुछ दिखा देता है.

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