सोमवार, 20 अक्टूबर 2025
शुभ हो मंगलमय हो प्रकाश मय हो बाहर भीतर ऊपर नीचे नौ दिशाएं जमीन आसमान
बुधवार, 31 जुलाई 2024
जब भी कभी याद आ जाये लिखने की कुछ लिखें कहीं
कुछ लिखें
कहीं दीवार पर
कुछ कहीं आंगन में लिखें
कुछ कहीं पेड़
पर भी लिखें
पत्ते सा हरा लिखें
लिखें तो
सही
गहरा नहीं भी हो कहीं
हो पानी सा कांच के ऊपर पतला सा फ़ैला
दूध सा सफ़ेद या
थोड़ा सा पीला पीला
सूखी हुई पथरा गयी आंखों के आसपास नहीं भी हो कहीं
बहुत दूर
आसमान में फ़ैले
छितराये से बादलों से मिलते आश्वासनों सा गीला
लिखें बहुत पुरानी
ही कहानी
मां की कही हो या कही हो कोई मोहल्ले की बूढ़ी नानी
आज की लिखें
झूठ ही
सही
मरे हुऐ किसी सच को ओढ़ाती सफ़ेद कफ़न पुरानी
लिखें दूर की एक कौढ़ी
आने वाले कल की झक्क सफ़ेद झूठी भविष्यवाणी
लिखें धीमी
चलती लेखनियों का सीखना
पकड़ना रफ़्तार
और हो जाना दिखना लिखे का
सामने सामने ये
जाना और वो जाना
सारे काले लिखे का हो जाना
सफ़ेद लिखें
लिखें सफ़ेद लिखे का काला हो जाना
पर लिखें कहीं दीवार पर कुछ
कहीं आंगन
में लिखें कुछ
कहीं पेड़ पर भी लिखें पत्ते सा हरा
लिखें जब भी कभी याद आ जाये
लिखने की
कुछ लिखें कहीं
चित्र साभार:
https://www.tansyleemoir.co.uk/the-writing-on-the-tree/
शुक्रवार, 30 सितंबर 2022
इतना लिख कि लिख लिख कर कारवान लिख दे
कभी तो कोशिश कर थोड़ा सा आसमान लिख दे
छोड़ एक दिन बिना सोचे पूरा एक बागवान लिख दे
जैसे एक दिन में कोई पूरा कूड़ेदान लिख दे
गुरुवार, 6 अगस्त 2020
‘उलूक’ अच्छा किया कल के ही दिन कुछ नहीं लिखा था
फिर भी नहीं लिखा था
नीला साफ धुला हुआ ना भी सही
बस नहीं लिखा था
गलती देखने वाले की हो जाती है
कल
सबने कुछ ना कुछ
कहीं ना कहीं
कतार कतार लिखा था
आसमान
इसलिये तो कतार में लगा था
सोमवार, 12 अगस्त 2019
तेरे जैसे कई हैं ‘उलूक’ बिना धागे के बनियान लिखते हैं
कुछ
चाँद
पत्थर
एक हैं
सरेआम
तीर
कमान
कुछ
बस
हुआ
लिखते हैं
कुछ
कुछ
बस
मकान
घुस के
किसी
बेशरम
नुवान
लिखते हैं
दिखाते
हैं
हिंदुस्तान
लिखता
लिखने जैसा
बनियान
बुधवार, 10 दिसंबर 2014
कितने आसमान किसके आसमान
लौटते पक्षियों की चहचहाट के बीच
उलझा के रखे हुऐ हो कोई छाया सी
आसमान के नीचे से एक राही
ना चाहते हुऐ भी बट जाना
रविवार, 26 अक्टूबर 2014
कहीं कोई किसी को नहीं रोकता है चाँद भी क्या पता कुछ ऐसा ही सोचता है
तेरे कहने से
अपना रास्ता
तो बदलेगा नहीं
वहीं से निकलेगा
जहाँ से निकलता है
वहीं जा कर डूबेगा
जहाँ रोज जा
कर डूबता है
और वैसे भी
तू इस तरह से
सोचता भी क्यों है
जैसा कहीं भी
नहीं होता है
रोज देखता है
आसमान के
तारों को
उसी तरह
टिमटिमातें हैं
फिर भी तुझे
चैन नहीं
दूसरी रात
फिर आ जाता है
छत पर ये सोच कर
कि तारे आज
आसमान के
किनारे पर कहीं होंगे
कहीं किनारे किनारे
और पूरा आसमान
खाली हो गया होगा
साफ साफ दिख
रहा होगा जैसे
तैयार किया गया हो
एक मैदान कबड्डी
के खेल के लिये
फिर भी सोचना
अपने हिसाब से
बुरा नहीं होता है
ऐसा कुछ
होने की सोच लेना
जिसका होना
बहुत मुश्किल भी
अगर होता है
सोचा कर
क्या पता किसी दिन
हो जाये ऐसा ही कुछ
चाँद आसमान का
उतर आये जमीन पर
तारों के साथ
और मिलाये कहीं
भीड़ के बीच से
तुझे ढूँढ कर
तुझसे हाथ
और मजाक मजाक
में कह ले जाये
चल आज से तू
चाँद बन जा
जा आसमान में
तारों के साथ
कहीं दूर जा
कर निकल जा
आज से उजाला
जमीन का जमीन
के लिये काम आयेगा
आसमान का मूड
भी कुछ बदला
हुआ देख कर
हलका हो जायेगा ।
चित्र साभार: www.dreamstime.com
शनिवार, 9 अगस्त 2014
बचपन से चलकर यहाँ तक गिनती करते या नहीं भी करते पर पहुँच ही जाते
में उड़ते हुऐ चील
कौओं कबूतरों के झुंड
और रात में
आकाश गंगा के
चारों ओर बिखरे
मोती जैसे तारों की
गिनती करते करते
एक दो तीन से
अस्सी नब्बे होते जाते
कहीं थोड़ा सा भी
ध्यान भटकते
ही गड़बड़ा जाते
गिनती भूलते भूलते
उसी समय लौट आते
उतनी ही उर्जा और
जोश से फिर से
किसी एक जगह से
गिनती करना
शुरु हो जाते
ऐसा एक दो दिन
की बात हो
ऐसा भी नहीं
रोज के पसंदीदा
खेल हो जाते
कोई थकान नहीं
कोई शिकन नहीं
कोई गिला नहीं
किसी से शिकवा नहीं
सारे ही अपने होते
और इसी होते
होते के बीच
झुंड बदल जाते
कब गिनतियाँ
आदमी और
भीड़ हो जाते
ना दिखते कहीं
तारे और चाँद
ना ही चील के
विशाल डैने
ही नजर आते
थकान ही थकान
मकान ही मकान
पेड़ पौँधे दूर दूर
तक नजर नहीं आते
गिला शिकवा
किसी से करे या ना करें
समझना चाह कर
भी नहीं समझ पाते
समझ में आना शुरु
होने लगता यात्रा का
बहुत दूर तक आ जाना
कारवाँ में कारवाँओं
के समाते समाते
होता ही है होता ही है
कोई बड़ी बात फिर
भी नहीं होती इस सब में
कम से कम अपनापन
और अपने अगर
इन सब में कहीं
नहीं खो जाते ।
रविवार, 4 मई 2014
बहुत पक्की वाली है और पक्का आ रही है
उतरी आज
फिर एक चिड़िया
चिड़िया से उतरी
एक सुंदर सी गुड़िया
पता चला बौलीवुड से
सीधे आ रही है
चुनाव के काम
में लगी हुई है
शूटिंग करने के लिये
इन दिनों और जगहों
पर आजकल नहीं
जा पा रही है
सर पर टोपियाँ
लगाये हुऐ एक भीड़
ऐसे समय के लिये
अलग तरीके की
बनाई जा रही है
जयजयकार करने
के लिये कार में
बैठ कर कार के
पीछे से सरकारी
नारे लगा रही है
जनता जो कल
उस तरफ गई थी
आज इसको देखने
के लिये भी
चली जा रही है
कैसे करे कोई
वोटों की गिनती
एक ही वोट
तीन चार जगहों
पर बार बार
गिनी जा रही है
टोपियाँ बदल रही है
परसों लाल थी
कल हरी हुई
आज के दिन सफेद
नजर आ रही है
लाठी लिये हुऐ
बुड़िया तीन दिन से
शहर के चक्कर
लगा रही है
परसों जलेबी थी हाथ में
कल आईसक्रीम दिखी
आज आटे की थैली
उठा कर रखवा रही है
काम पर नहीं
जा रहा है मजदूर
कई कई दिन से
दिखाई दे रहा है
शाम को गाँव को
वापस जाता हुआ
रोज नजर आ रहा है
बीमार हो क्या पता
शाम छोड़िये दिन में
भी टाँगे लड़खड़ा रही हैं
‘उलूक’ तुझे क्यों
लगाना है अपना
खाली दिमाग
ऐसी बातों में जो
किसी अखबार में
नहीं आ रही हैं
मस्त रहा कर
दो चार दिन की
बात ही तो है
उसके बाद सुना है
बहुत पक्की वाली
सरकार आ रही है ।
शनिवार, 4 जनवरी 2014
ठीक नहीं किया जैसा किया जाता रहा था वैसा ही क्यों नहीं किया
बहुत ही
सुचारू रूप से
समय से पहले ही
पूरा हो जाने पर
साहब का पारा
सातवें आसमान
पर चला गया
तहकीकात करवाने
के लिये एक
खासम खास को
समझा दिया गया
पूछने को कहा गया
इतनी जल्दी
काम को बिना
सोचे समझे
किससे पूछ कर
पूरा करा लिया गया
रुपिया पैसा जबकि
जरूरत से ज्यादा
ही था दिया गया
बताना ही पढ़ेगा
आधे से ज्यादा
कैसे बचा कर
वापिस लौटा
दिया गया
पूछताछ करने पर
खासम खास ने
कुछ कुछ ऐसा
पता लगा लिया
रोज उसी काम को
सफाई से निपटा
ले जाने वाला
इस बार पत्नी के
बीमार हो जाने
के कारण मजबूरी
में छुट्टी पर
था चला गया
काम करवाना चूंकि
एक मजबूरी थी
एक नये आदमी को
काम पर इसलिये
लगा दिया गया
बेवकूफ था
दुनियादारी से
बेखबर था
ईमानदार था
कैसे निपटाना है
ऐसे काम को
किसी और से
राय लेने तक
पता नहीं
क्यों नहीं गया
हो ही जाना था
काम को इस बार
जैसे हुआ करता था
हमेशा ही वैसा
कुछ भी नहीं हुआ
फल लगा पेड़ पर
पका हुआ था
सब से देखा भी गया
बैचेनी बड़ी फैली
पूरे निकाय में
कहा गया झुंझलाहट में
ये सब जो भी हुआ
बहुत अच्छा नहीं हुआ
फर्जीवाड़ा नहीं कर
सकता हो
जो इतना भी
फर्जियों के बीच में
सालों साल रहकर
ऐसे दीवाने को
किसने और कैसे
काम करने का
ठेका दे दिया गया
तहकीकात करने वाले
ने जब सारी बातों
का खुलासा किया
तमीज सीखने की
बस सलाह देकर
ऐक नेक आदमी को
काम से हमेशा
के लिये
हटा दिया गया
साथ में बता
दिया गया
बच गया
इतना ही किया गया
खुश्किस्मत था
आरोप कोई भी
लिख कर किसी
के द्वारा नहीं
दिया गया ।
मंगलवार, 26 नवंबर 2013
कर कुछ भी कर बात कुछ और ही कर
बात कर
कुछ उधर
बात कर
बेमतलब
बात कर
ही जाये
बातों की
ही
उसकी
उससे करे
इसकी
तो
मौसम
बात कर
कर
जैसे भी
कर
पड़े
तो
बात कर
कर
कुछ
कर
बात पूरी
पूरी
ईमानदारी
कर
कर
उसके पीने
कर
खुद
की
गंगाजल
की
जो
मन में
बरसते
बात कर
जितना
खा
खा
बात भूखे
कर
बात गरीबों
कर
भी
कर
बात करने
यहां कोई
वहां कोई
बाकी पूछे
कहना
ऊपर
डर ।
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
आपदा
पानी का
ठंडी
बयार की
कम हो जाना
नीले
आसमान का
चाँद
का निकलना
लेकिन
उस
सूरज
की गर्मी में
का
मुरझाना
ग्लेशियर
का
रिम झिम
बारिश
रूठ जाना
बादल
का फटना
एक गाँव
का
आपदा
के नाम
पैसा आना
अखबार
के लिये
खबर बन जाना
हमारा तुम्हारा
सम्मेलन
नेता जी
का
हताहतों
के लिये
की
पूरे गांव
मे
ये
भूल जाना
आपदा प्रबंधन
ग्लोबल वार्मिंग
पर
हेलीकोप्टर
राजधानी
वापस
आँख मूंद कर
अगले साल







