रोज
वैसे भी
कौन लिखता है
आज कल
कल भी
कुछ नहीं लिखा था
कल ही
बहुत कुछ लिखना था
फिर भी नहीं लिखा था
आसमान
लिखने की इच्छा थी
नीला साफ धुला हुआ ना भी सही
कुछ धुँधलाया हुआ सा कहीं
बस नहीं लिखा था
तो नहीं ही लिखा था
कतार में लगा था आसमान भी
आँख थोड़ी सी उठाई तो थी
थोड़ा सा किनारा कहीं दूर
किसी के पीछे खड़ा सा दिखा था
अजीब बात नहीं थी
बातें अजीब होती भी नहीं है
आदमी अजीब हो जाता है
कतार में होने से क्या हो जाता है
कतार जा कर कतार में मिल जाती है
कैदी सौ गुनाह माँफ कर दिया जाता है
कतारें जमीन में लोटना शुरु हो जाती हैं
जमीन जमीन फैला हुआ आसमान हो जाता है
अब आसमान का क्या कसूर फिर
गलती देखने वाले की हो जाती है
सीधे आसमान की ओर
जब मन करे देखना शुरु हो जाता है
आखिर
औकात भी कोई चीज होती है
जमीन से आसमान
ऐसे ही थोड़ा सबको नजर आता है
बेशरम
जमीन से देखना शुरु करना क्यों नहीं सीखा था
बात कुछ लिखने की थी
वो भी गुजरे कल के दिन की थी
कल
सबने कुछ ना कुछ
कहीं ना कहीं
थोड़ा सा या बहुत ज्यादा सा
कतार कतार लिखा था
कतार कतार लिखा था
कतार में किसी के पीछे
सिमट लिया था हर कोई
किसी के नाम पर
कुछ बनाने के जुनून का
एक सिरा पकड़े हुऐ एक नाम
आसमान होता दिखा था
बहुत साफ साफ जर्रे जर्रे के जर्रे ने
खुद ही लिखा था
आसमान
इसलिये तो कतार में लगा था
‘उलूक’
अच्छा किया
कल के ही दिन
कुछ नहीं लिखा था।
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