आधा महीना जून का पूरा हुआ
पता चलता है पितृ दिवस होता है इस महीने में
कोई एक दिन नहीं होता है कई दिन होते हैं
अलग अलग जगह पर अपने अपने हिसाब से
क्या गणित है इसके पीछे कोशिश नहीं की जानने की कभी
गूगल बाबा को भी पता नहीं होता है
यूँ भी पिताजी को गुजरे कई बरस हो गये
श्राद्ध के दिन पंडित जी याद दिला ही देते है
सारे मरने पैदा होने के दिनों का
उनके पास लेखा जोखा किसी पोटली में जरूर बंधा होता है
आ जाते है सुबह सुबह
कुछ तर्पण कुछ मंत्र पढ़ कर सुना देते हैं
अब चूंकि खुद भी पिता जी बन चुके हैं
साल के बाकी दिन बच्चों की आपा धापी में ही बिता देते हैं
पिताजी लोग शायद धीर गंभीर होते होंगे
अपने पिताजी भी जब याद आते हैं
तो कुछ ऐसे जैसे ही याद आते हैं
तो कुछ ऐसे जैसे ही याद आते हैं
बहुत छोटे छोटे कदमों के साथ
मजबूत जमीन ढूँढ कर उसमें ही रखना पाँव
दौड़ते हुऐ कभी नहीं दिखे हमेशा चलते हुऐ ही मिले
कोई बहुत बड़ी इच्छा आकाँक्षा
होती होगी उनके मन में ही कहीं
होती होगी उनके मन में ही कहीं
दिखी नहीं कभी भी
कुछ सिखाते नहीं थे कुछ बताते नहीं थे
बस करते चले जाते थे कुछ ऐसा
जो बाद में अब जा कर पता चलता है
बहुत कम लोग करते हैं ज्यादातर
अब कहीं भी वैसा कुछ नहीं होता है
गाँधी जी के जमाने के आदमी जरूर थे
गाँधी जी की बाते कभी नहीं करते थे
और समय भी हमेशा एक सा कहाँ रहता है
समय भी समय के साथ
बहुत तेज और तेज बहने की कोशिश करता रहता है
पिताजी का जैसा
आने वाला पिता बहुत कम होता हुआ दिखता है
क्या फर्क पड़ता है पिताजी आयेंगे पिताजी जायेंगे
बच्चे आज के कल पिताजी हो जायेंगे
अपने अपने पिताजी का दिन भी मनायेंगे
भारतीय संस्कृति में
बहुत कुछ होने से कुछ नहीं कहीं होता है
एक एक करके तीन सौ पैंसठ दिन किसी के नाम कर के
गीत पश्चिम या पूरब से लाकर किसी ना किसी बहाने से
किसी को याद कर लेने की दौड़ में
हम अपने आप को कभी भी दुनियाँ में
किसी से पीछे होता हुआ नहीं पायेंगे
‘उलूक’ मजबूर है तू भी आदत से अपनी
अच्छी बातों में भी तुझे छेद हजारों नजर आ जायेंगे
ये भी नहीं आज के दिन ही कुछ अच्छा सोच लेता
डर भी नहीं रहा कि
पिताजी पितृ दिवस के दिन ही नाराज हो जायेंगे।
चित्र साभार: https://www.gograph.com/
चित्र साभार: https://www.gograph.com/
बढिया सुंदर सटीक लेखन , सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में प्रकार की जानकारियाँ )
आभार ।
हटाएंपितॄ दिवस की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपको भी शुभकामनाऐं आभार सहित ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-06-2014) को "जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही." (चर्चा मंच-1645) पर भी है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार ।
हटाएंपितृदिवस पर याद तो किया पिता श्री को।
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंपितृ दिवस पर यादें साझा करने के लिए धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंबहुत सटीक और भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंबहुत अच्छा ज़ी आप हमें भी भावुक कर गयें |
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहैडिंग से ही बहुत कुछ बयाँ हो गया था....
जवाब देंहटाएंये शायद उन के लिए है जो आज के दिन या यूँ कहें आज ही के दिन अपने पिता के साथ दो तिन सेल्फी लेने के लिए एक फूलों का गुलदस्ता और छोटा सा केक लेकर जायेंगे और शाम को उन्हीं फोटोज को वायरल करने की कोशिश करेंगे.
बहुत उम्दा.
मैंने ऐसे विषय पर; जो आज की जरूरत है एक नया ब्लॉग बनाया है. कृपया आप एक बार जरुर आयें. ब्लॉग का लिंक यहाँ साँझा कर रहा हूँ- नया ब्लॉग नई रचना
बहुत बढ़िया .... असल में ये सब विदेशों के लिए उचित होता होगा जहाँ परिवार के सदस्य साथ नहीं रहते । लेकिन भारतीय उनकी नकल की होड़ में सब स्वीकार करते चले जा रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंपिता को कभी भागते नहीं देखा #
कितनी गहन बात ।
सच्ची अभिव्यक्ति ।
आज पितृ सत्ता को नमन करतीं रचनाएँ अनायास आँखें नम करतीं जा रही है। उलूक दर्शन पर पितृ दिवस पर ये चिन्तन अनूठा ही है। भारतीय संस्कृति में पिता परिवार के बटवृक्ष हैं जिसकी छाया का होना जीवन के समस्त चिंताओं से मुक्ति है। भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएं सुशील जी। समस्त पितृ सत्ता को सादर नमन 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंपिताजी का जैसा
जवाब देंहटाएंआने वाला पिता बहुत कम होता हुआ दिखता है
क्या फर्क पड़ता है पिताजी आयेंगे पिताजी जायेंगे
बच्चे आज के कल पिताजी हो जायेंगे
अपने अपने पिताजी का दिन भी मनायेंगे
👌👌👌👌🙏🙏
बेहतरीन रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएं" 'उलूक’
जवाब देंहटाएंमजबूर है तू भी आदत से अपनी
अच्छी बातों में भी तुझे छेद हजारों नजर आ जायेंगे " ... पर जो 'उलूक' है, वही 'मलूक' है .. शायद ... :)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 जून 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 16 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह सटीक, चिंतनीय, भावपूर्ण बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंये पाश्चात्य सभ्यता की ही देन है, जो मां पिता को सम्मान देने के लिए एक दिन निर्धारित कर दिया है। हमारे यहाँ तो हर दिन की शुरुआत ही "माँ-पिता" के आशीर्वाद से ही होती है। हर दिन माँ पिता का सम्मान करें, आदर और प्रेम करें और अगर चाहें तो आज के दिन उनके लिए कुछ स्पेशल करें।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंपापा को आजीवन अपने पापा के सामने मौन,नजरें झुकाये, सम्मान करते देखे। जब दादाजी बीमार पड़ते तो पापा को उनकी चिंता करते हुए बैचेन देखे। पापा जब दादा जी के लिए कपड़े लाते, पैर छूकर आशीर्वाद लेते और सब साथ मिलकर खाना खाते तो बिना किसी खास त्योहार के भी त्योहार वाली खुशी बिखर जाती, शायद आज के फादर्स डे जैसा प्यार जताना उन्हें नहीं आता था पर उनके मन में अपने पापा के लिए जो विशेष सम्मान था वो मेरे बाल मन भी महसूस किया था।
जवाब देंहटाएंआज की पीढ़ी का सम्मान और प्रेम जताने का तरीका शायद अलग है।
बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति सर।
प्रणाम।
सादर।