रोज के सफ़ेद पन्ने
पुराने कुछ कुरेदने के दिन कभी याद आते हैं
बारिश अब नहीं होती है उस तरह से बादल मगर रोज ही आते हैं
फिसलने लगती है कलम हाथ से शब्द भागना जब शुरू हो जाते हैं
पकड़ने की कोशिश में समय को सपने तितलियां हो कर उड़ जाते हैं
भीड़ हर तरफ होती है रेले आते हैं कई कई आ कर चले जाते हैं
समुन्दर में गिरती चली जाती हैं नदियां बूंदों के हिसाब गड़बड़ाते हैं
फितरत तेरी अपनी है खूबसूरत है किसी की बस कौऐ उड़ाती हैं
समझदारी संभाल कर रख चालाकी में धागे चहरे
के उधड़ जाते हैं
अपनी कुछ भी नहीं कहते हैं दूसरे की पतंगें
बना कर के उड़ाते हैं
बाजीगर पकडे तो नहीं जाते हैं पर उतरे चेहरे लिखे पर फ़ैल जाते हैं
कबूतर हों या कौऐ हों हवा अपनी ही उड़ाते हैं
चूहे बड़े शहर के भी हों खोहें अपनी बनाते हैं
‘उलूक’ कोटर से थोड़ा सा झाकने से ही बस तेरे
नजदीकी तेरे अपने कुछ सनकते हैं कुछ कसमसाते हैं |
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/
बहुत सुंदर और सच बात
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह अलहदा।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
प्रणाम
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पकड़ने की कोशिश में समय को सपने तितलियां हो कर उड़ जाते हैं
जवाब देंहटाएंसटीक बात .. सुंदर सृजन...
बात अपनी हो दिल से निकली हो तभी दूर तक जाती है
जवाब देंहटाएंवरना धुएँ के छल्ले तो हर गली नुक्कड़ में लोग उड़ाते हैं
सदा की तरह कुछ हटकर !!
सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंफिसलने लगती है कलम हाथ से शब्द भागना जब शुरू हो जाते हैं
जवाब देंहटाएंपकड़ने की कोशिश में समय को सपने तितलियां हो कर उड़ जाते हैं
बहुत सटीक...
अद्भुत एवं लाजवाब
वाह!!!
अद्भुत अविस्मरणीय लाजवाब 🙏
जवाब देंहटाएंगज़ब
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
शानदार सृजन
जवाब देंहटाएंबादल आते जाते रहते हैं .... कमाल की छुरी चलाई है ...
जवाब देंहटाएंSatta king Satta king Satta king Satta king Satta king Satta king Satta king
जवाब देंहटाएंसट्टा किंग गेम दिल्ली में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है। बढ़िया पोस्ट आपकी सामग्री बहुत प्रेरणादायक और सराहनीय है, मुझे यह वाकई पसंद आई, कृपया मेरी साइट पर जाएँ
जवाब देंहटाएंSatta king Satta king Satta king Satta king Satta king Satta king Satta king
अपनी कुछ नहीं कहते, पतंग दूसरों की उड़ाते हैं.. जमाने भर की हकीकत है। बहुत अच्छी कविता है अनूठे प्रतीकों से सजी
जवाब देंहटाएंचूहे बड़े शहर के भी हों खोहें अपनी बनाते हैं
जवाब देंहटाएं‘उलूक’ कोटर से थोड़ा सा झाकने से ही बस तेरे
नजदीकी तेरे अपने कुछ सनकते हैं कुछ कसमसाते हैं |
...समय और समाज की सच्चाई बयां करती अच्छी और सच्ची कविता। बधाई सर।
‘उलूक’ कोटर के बहाने वर्तमान समाज की बखिया उधेड़ दी आपने जोशी जी...शानदार व्यंग्य
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