उलूक टाइम्स: कबूतर
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गुरुवार, 30 नवंबर 2023

रास्ते सब अपनी जगह हैं लोग बस कहीं नहीं जाते हैं


रोज के सफ़ेद पन्ने पुराने कुछ कुरेदने के दिन कभी याद आते हैं
बारिश अब नहीं होती है उस तरह से बादल मगर रोज ही आते हैं

फिसलने लगती है कलम हाथ से शब्द भागना जब शुरू हो जाते हैं
पकड़ने की कोशिश में समय को सपने तितलियां हो कर उड़ जाते हैं

भीड़ हर तरफ होती है रेले आते हैं कई कई आ कर चले जाते हैं
समुन्दर में गिरती चली जाती हैं नदियां बूंदों के हिसाब गड़बड़ाते हैं

फितरत तेरी अपनी है खूबसूरत है किसी की बस कौऐ उड़ाती  हैं
समझदारी संभाल कर रख चालाकी में  धागे चहरे के उधड़ जाते हैं

अपनी कुछ भी  नहीं कहते हैं दूसरे की पतंगें बना कर के उड़ाते हैं
बाजीगर पकडे तो नहीं जाते हैं पर उतरे चेहरे लिखे पर फ़ैल जाते हैं

कबूतर हों या कौऐ हों हवा अपनी ही उड़ाते हैं  
चूहे बड़े शहर के भी हों खोहें अपनी बनाते हैं
‘उलूक’ कोटर से थोड़ा सा झाकने से ही बस तेरे
नजदीकी तेरे अपने कुछ सनकते हैं कुछ कसमसाते हैं |

 

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

शनिवार, 2 सितंबर 2023

समय बताएगा समय ही बताता है आंखे बंद को सब कुछ साफ़ नजर आता है

 

इसी सफ़ेद कागज़ में लिखा हुआ
एक कबूतर
किसी दिन किसी को नजर ही नहीं आता है

किसी दिन यही कबूतर
उसी के लिए वो एक कौआ हो जाता है
किसी दिन
मूड बहुत अच्छा होता है
कोयल की कुहू कुहू भी उसी के साथ लिखा जैसा
उसी से पढ़ लिया जाता है

समय ने
तब भी बताया था समय अब भी बता रहा है
और
समय ही है जो आघे भी बताएगा

सब की समझ में आता है
देखने सुनने और समझने में हमेशा फर्क रहता है
आगे भी रहना चाहिए
सब को अपने अपने हिसाब से
अपना अपने मतलब का समझ में आ ही जाता है
कौन किसे ये बात खुद अपने आप दूसरे को बताता है?

क्या लिखते हैं
कभी भी समझ नहीं पाते हैं लोग
कहते हैं हमेशा कौन शरमाता है?
हम भी समझते हैं कुछ कुछ
कुछ लोगों को अलग बात है
बस बताने में कुछ संकोच सा हो जाता है

फिर भी कोशिश करते हैं लिखते चले जाते हैं
पता होता है
बस यहाँ ही कागजी तलवार चला ले जाना
सब को ही आता है

लिखे पर
लिखा आपका बता जाता है
आप पढ़े लिखे हो समझ में आपके सब कुछ आ जाता है
और यही लिखा लेखक को आपके बारे में
सब कुछ साफ़ साफ़ बता जाता है

लिखे को पढ़कर
उस पर कुछ लिखने वाले की तस्वीर
सामने से आ जाती है
  लिखने वाले के कबूतर को
पढ़ने वाला
कौवा एक देख जब जाता है

समय जरूर बताएगा
समय सबको सब कुछ सही सही बता जाता है

गलतफहमी बनी रहनी भी जरूरी है
भाग्य से ही सही
बन्दर हनुमान जैसा नजर आता है

‘उलूक’ अपनी आँखों से देखना बहुत अच्छा है
बन्दर को हनुमान
बन्दर को बन्दर देखने वाले को
 समय बतायेगा कहना जुलम हो जाता है |

चित्र साभार : https://www.istockphoto.com/

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

माचिस की तीली कुछ सीली कुछ गीली रगड़ उलूक रगड़ कभी लगेगी वो आग कहीं जिसकी किसी को जरूरत होती है



बहुत जोर शोर से ही हमेशा
बकवास शुरु होती है

किसे बताया जाये क्या समझाया जाये
गीली मिट्टी में
सोच लिया जाता है दिखती नहीं है
लेकिन आग लगी होती है

दियासलाई भी कोई नई नहीं होती है
रोज के वही पिचके टूटे डब्बे होते हैं
रोज की गीली सीली तीलियाँ होती हैं

घिसना जरूरी होता है
चिनगारियाँ मीलों तक कहीं दिखाई नहीं देती हैं

मान लेना होता है गँधक है
मान लेना होता है ज्वलनशील होता है
मान लेना होता है घर्षण से आग पैदा होती है
मान लेना होता है आग सब कुछ भस्म कर देती है
और बची हुई बस कुछ होती है तो वो राख होती है

इसी तरह से रोज का रोज खिसक लेता है समय
सुबह भी होती है और फिर रात उसी तरह से होती है

कुछ हो नहीं पाता है चिढ़ का
उसे उसी तरह लगना होता है
जिस तरह से रोज ही
किसी की शक्ल सोच सोच कर लग रही होती है

खिसियानी बिल्ली के लिये
हर शख्स खम्बा होना कब शुरु हो लेता है
खुद की सोच ही को नोच लेने की सोच
रोज का रोज पैदा हो रही होती है

रोज का रोज मर रही होती है
तेरे जैसे पाले हुऐ कबूतर बस एक तू ही नहीं
पालने वाले को
हर किसी में तेरे जैसे एक कबूतर की जरूरत हो रही होती है

‘उलूक’ खुजलाना मत छोड़ा कर कविता को
इस तरह रोज का रोज
फिर रोयेगा
नहीं तो किसी एक दिन कभी आकर
कह कर
खुजली किसी और की खुजलाना किसी और का
बिल्ली किसी और की खम्बा किसी और का
तेरी और तेरे लिखने लिखाने की
किसे जरूरत हो रही होती है ।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

एक कबूतर लिख एक कबूतर खाना लिख गुटरगूं लिख चोंच लड़ाना लिख

 

मय लिख मयखाना लिख
कुछ पीना लिख  कुछ पैमाना लिख

दिन हो गये कुछ नहीं लिखे
लिख ले किसी दिन सारा जमाना लिख

नियम लिखने लिखाने के रहने दे
बेखौफ लिख 
लेखक एक दीवाना लिख

किस ने रोकना है लिखने लिखाने को
एक बन्दूक लिख 
एक बंदर को डराना लिख

गलत है बंद हो जाना कोटर में
मत पहन
एक रखा हुआ पैजामा लिख

अच्छा नहीं है कुछ नहीं लिखना
कुछ लिख
लिखने वालों का कुछ इतराना लिख

रहने दे मत लिख 
कबूतर उड़ाने वालों की बात
लिख एक कबूतरखाना लिख

लिखने लिखाने को लिख धूप दिखा
धुएं धुएं में धुएं का धुआं हो जाना लिख

कहीं भी नहीं है जब
वो जिसे जहां होना होता है
लिख कुछ हुआ 
लिख कुछ हो रहा
लिख
कल के  कुछ होने का 
हो जाना  लिख

‘उलूक’
फोड़ कुछ 
फोड़ सकता है
होना कुछ भी नहीं है किसी से
कुछ फोड़ ले
बच गया कुछ चोंच लड़ाना लिख

चित्र साभार: https://www.alamyimages.fr/

शनिवार, 29 मई 2021

किसने कहा है बकवास पढ़ना जरूरी है ‘उलूक’ की ना लिखा कर कहकर मत उकसाओ


उड़ रहे हैं काले कौऐ आकाश दर आकाश
कबूतर कबूतर चिल्लाओ
कौन बोल रहा है सच
रोको उसे ढूँढ कर एक गाँधी कहीं जा कर के कूट आओ

इस से पूछो उस से पूछो
कहीं से भी पूछ कर कुछ उसके बारे में पता लगाओ
कैसे आगे हो सकता है कोई उसका अपना उससे
कहीं तो जा कर के कुछ आग लगाओ 

कुछ मर गये कुछ आगे मरेंगे
अपने ही लोग हैं सबकी फोटो सब जगह जा लगाओ
कुछ रो लो कुछ धो लो कुछ पैट्रोल ले लो हाथ में और जोर से आग आग गाओ 

उल्लू लिख रहा है एक अखबार हद है
कुछ तो शरम करो और कुछ तो शरमाओ
रोको उसे कुछ ना कुछ करके
इस से पहले सब लिख ले बेशरम कुछ कपड़े दिखाओ 

उसका लिखा है किसने समझना है तुम भी जानते हो
बेकार का दिमाग मत लगाओ
पढ़ने कोई नहीं आता है
बस देखने आता है कौन कौन पढ़ गया आके
समझ जाओ

सकारात्मक होना बहुत अच्छी बात है कौन रोकता है
तुम अपनी कुछ सुनाओ
बहुत ही नकारात्मक है वही लिख फिर रहा है रोक लो
कह दो इतनी भीड़ ना बनाओ

कुत्ता सोच लो दिमाग में कौन रोकता है
पट्टा और जँजीर की सोच भी जरूरी है
भागने ना दो किसी की सोच को लगाम कुछ अपनी लगाओ

अपनी अपनी सोचना बहुत ही जरूरी है
इस से पहले मौत आगोश में ले जाये कोरोना के बहाने
कुछ नोच लो कुछ खसोट लो यूँ ही कहीं से कुछ भी

रो लेना गिरीसलीन लगा के आँखों के नीचे जार जार
अखबार हैं ना
कहना नहीं पड़ेगा किसी से भी फोटो खींच कर के ले जाओ

‘उलूक’ सब परेशान हैं
तेरी इस बकवास करने की आदत से
कहते भी हैं हमेशा तुझसे कहीं और जा कर के दिमाग को लगाओ

तुझे भी पता है औकात अपनी
कितनी है गहरी नदी तेरी सोच की
मरना नहीं होता है जिसमें शब्द को
तैरना नहीं भी आये
गोता लगाने के पहले चिल्लाता है
आओ डूब जाओ।

चित्र साभार: https://pngio.com/images/png-b2702327.html

बुधवार, 12 अगस्त 2020

बन्द दिमाग एक जगह गुटरगूँ करते हुऐ नजर आयेंगे अपनी सोच ले तू कहाँ जायेगा

 

ऐ कबूतर 
कौओं के बीच घिरा रहता है 
काँव काँव 
फिर भी नहीं सीखता है 
बस अपनी 
गुटुर गूँ करने में लगे रहता है 

बहुत दिन 
नहीं चलने वाली है 
तेरी ये मनमानी 
कौओं के राजा ने 
पता होना चाहिये तुझे भी 
है कुछ अपने मन में करने की ठानी 

सारे कौए 
सफेद रंग में रंग दिये जायेंगे 
मोटी चौंच के कबूतर हर तरफ हर जगह 
नजर गढ़ाये नजर आयेंगे 

कबूतर के लिये 
खाली सारी जगहों पर 
कौऐ कबूतर बना कर भर दिये जायेंगे 

कबूतर कबूतर से 
चौंच लड़ाते 
गुटरगूँ गुटरगूँ करते बैठे ठाले 
अपने घौंसलों में 
पंजे लड़ाते नजर आयेंगे 

सीख 
क्यों नहीं लेता है 
थोड़ा सा कौआ हो जाना 
जमाने के साथ चलना 
एक नयी भाषा सीखना 
द्विभाषी हो विद्वानों में गिना जाना 

कबूतर हो कर भी 
कौओं के साथ नजर आयेगा 
बड़ा नहीं भी मिलेगा 
थोड़ा छोटा ही सही 
टुकड़ा कटे मुर्गे की टाँग का 
हाथ में आ पायेगा 

इज्जत बढ़ेगी अलग से 
कौओं के समाज में 
अखबार वाला भी 
तेरे लिये एक बड़ी 
फर्जी खबर छापने में 
देरी नहीं लगायेगा 

क्या फायदा वैसे भी
कबूतर बने रहने में 
उस जगह 
जहाँ किसी पीर के 
बकरी चरखा तकली का 
नाम तक 
जान बूझ कर मिटा दिया जाता हो 
हजारों करोड़ खर्च कर 
बीट करने के लिये 
एक मूरत खड़ी करके 
सरेआम खुले आसमान के नीचे 
कबूतरों को रिझाने के लिये 
रख दिया जाता हो 

समय खराब है 
नहीं कह देना 
कहीं कभी भूल कर भी 

सारे 
अच्छे समय के नशे में मदहोश 
अच्छी सोच के कबूतर हो चुके 
कौओं के द्वारा 
उसी समय नोच खाया जायेगा 

बन्द कर के दिमाग अपना 
सोचना शुरू कर दे अभी से 
खोदना किसी सूखे पेड़ का कोटर 
कहीं भी किसी वीराने में 

‘उलूक’ जल्दी ही 
कबूतरों और 
कौओं के बीच 
तकरार करवाने का 
इल्जाम मढ़ कर 
तुझे भी दो गज जमीन 
मरने के बाद की से 
मरहूम कर दिया जायेगा। 



सोमवार, 13 जुलाई 2020

लिखा कुछ भी नहीं जाता है बस एक दो कौए उड़ते हुऐ से नजर आते हैं


शब्द सारे
मछलियाँ हो जाते हैं
सोचने से पहले
फिसल 
जाते हैं

कुछ
पुराने ख्वाब हो कर
कहीं गहरे में खो जाते हैं

लिखने
रोज ही आते हैं
लिखा कुछ  जाता नहीं है
बस तारीख बदल 
जाते हैंं

मछलियाँ
तैरती दिखाई देती हैं
हवा के बुलबुले बनते हैं
फूटते चले जाते हैं

मन
नहीं होता है
तबीयत नासाज है
के बहाने
निकल आते हैं

पन्ने पलट लेते हैं
खुद ही डायरी के खुद को
वो भी आजकल
कुछ लिखवाना
कहाँ चाहते हैं 

बकवास
करने के बहाने
सब खत्म हो जाते हैं

पता ही नहीं चल पाता है
बकवास करते करते
बकवास
करने वाले

कब खुद
एक बकवास हो जाते हैं 

कलाकारी
कलाकारों की
दिखाई नहीं देती है

सब
दिखाना भी नहीं चाहते हैं

नींव
खोदते चूहे घर के नीचे के

घर के
गिरने के बाद
जीत का झंडा उठाये
हर तरफ
नजर आना शुरु हो जाते हैं 

‘उलूक’
छोड़ भी नहीं देता 
है लिखना 

कबूतर लिखने की सोच
आते आते
तोते में अटक जाती है

लिखा
कुछ भी नहीं जाता 
है
एक दो कौए
उड़ते हुऐ से नजर आते हैं ।

चित्र साभार:
https://timesofindia.indiatimes.com/

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

जरूरी है जिंदा ना रहे बौद्धिकता


क्या
परेशानी है
किसी को

अगर
कोई

अपने
हिसाब
का
सवेरा

अपने
समय
के
हिसाब से

करवाने
का

दुस्साहस
करता है

उनींदे
सूरज को

गिरेबान खींच

ला
कर
रख देना

अपनी
सोच की
दिशा के
छोर पर

और
थमा देना

उसके
हाथ में

अपने
बहुमत से
निर्धारित
किया गया

उसके
समय का
सरकारी आदेश

उसके
चमकने का कोण

और
ताकत

उसे बता कर

समय से पहले
पौंधे
पर

पैदा हो गयी
कली की
पंखुड़ियों
को

आदेशित
कर
खुल लेने
का

और

तुरंत
बन जाने
के लिये

एक फूल

किसी के
हिसाब
का

समय से पहले
पैदा
हुऐ बच्चे
को

मैराथन
में दौड़ लेने

या
उनके

उड़ने
की
कल्पना
 बेचने की

बिना पंखों के

सब संभव है

बस
बैठा दीजिये

हर
सुखा दिये गये
जवान पेड़
की
फुनगी पर

एक कबूतर

एक निशान
लगा हुआ
एक रंग
की
एक या दो लाईन का

जरूरी है
कबूतर ने
उजाड़ी हो
कोई एक
फलती फूलती डाल

जिसके हों
 कहीं ना कहीं
उसके चेहरे पे
निशान
बौद्धिकता 
जिंदा
ना रहे

ठानकर

मरे
ना भी

तो 
भी
घिसटती रहे

ताउम्र

जिसे
देखते रहें

लाईन पड़े
कबूतर

अट्टहास
करते हुऐ

‘उलूक’
जरूरी है

अंधों
का
रजिस्टर
बनना भी

जो
रात में
देख लेते हैं
ऊल जलूल

तेरी तरह।

चित्र साभार: 

बुधवार, 11 दिसंबर 2019

बधाई बधाई तेरा घर टूटने की

बधाई बधाई हो रही है तेरा घर टूटने की और तेरे लिये वो ही कोई मरा जैसा है
तू जानता है ‘उलूक’ चीख चिल्ला गला फाड़ कर
इस नक्कारकाने में अपनी तूती बजाने के लिये मजबूत गिरोह का बाजा खरीदना होता है



तेरे सामने तेरे घर को तोड़ कर
एक टुकड़ा देखता क्यों नहीं है फैंका नहीं है
किस लिये रोता है 

गुलाब की कलम है
माली नहीं भी है तो क्या हुआ रोपने के लिये
सोच ले कोई जरूर होगा मवाली सही कहीं ना कहीं
उसके सामने जा कर दीदे फाड़ लेना पूछ लेना
क्यों नहीं बोता है

घर तेरा टूट गया क्या हुआ
देखता क्यों नहीं मोहल्ले के दो चार और घर मिला कर
नया घर बनाने का
सरकारी मजमा ढोल नगाड़े बजाता हुआ
अखबार की खबर में सुबह सुबह रूबरू
आजकल रोज का रोज तो होता है

तुझसे नहीं पूछा
नयी बोतल में पुरानी शराब ही नहीं
कुछ और भी मिलाया है
कॉकटेल कहते हैं
इतना तो नहीं पीने वाले को भी
पता होता है
गम मत कर यहाँ का दस्तूर है यहाँ यही होता है

मरीज हस्पताल की बात चिकित्सक से काहे पूछनी
दुकाने बहुत हैं उनके सरदार को
ज्यादा मालूम होता है

स्कूल की बात मास्टर से काहे पूछनी
झाडू देने वाला रोज सुबह का कूड़ा
रोज निकालता है
पढ़ने लिखने वाले के बारे में उसको ज्यादा पता होता है

तेरे शहर के लोग शरीफ हैंं
इधर उधर से देखे हुऐ बहुत कुछ को बताने का
उनको ज्यादा अनुभव होता है

कबूतरों के बारे में काहे कौओं से पूछना
कालों को सफेदों के बारे में
कौन सा सबसे ज्यादा पता होता है

बधाई बधाई हो रही है तेरा घर टूटने की
 तेरे लिये वो ही कोई मरा जैसा है तू जानता है

‘उलूक’
चीख चिल्ला गला फाड़ कर
इस नक्कारकाने में अपनी तूती बजाने के लिये
सबसे मजबूत गिरोह का बाजा खरीदना होता है।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/




अगर आप बुद्धिजीवी कैटेगेरी में आते है अगर आप अल्मोड़ा से हैं और अगर आप बेवकूफ नहीं हैं तो कृपया लिखे को ना पढ़े ना समझने की कोशिश करें ना लाईक करें ना टिप्पणी देने का प्रयत्न करें। ये बस एक वैधानिक चेतावनी है। ये कुमाउँ विश्वविद्यालय से अल्मोड़ा को अलग करने के विरोध की बकवास है।

रविवार, 20 अक्तूबर 2019

कबूतर को समझ आये हिसाब से अपने दिमाग से खुद को समझाये कबूतर



कुछ जंगल से शहर आये कबूतर
थोड़े शहर से शहर भगाये कबूतर

कुछ काले कुछ सफेद हो पाये कबूतर
थोड़े कुछ धोबी से रंग लगवाये कबूतर

कुछ पुराने घिसे घिसाये कबूतर 
कुछ नये पॉलिश लगवाये कबूतर

कबूतर कबूतर खेलने कबूतरों से 
ऊपर से कबूतर भिजवाये कबूतर

नीचे आ कबूतरों पर छा जाये कबूतर
कबूतर से कबूतर लड़वाये कबूतर

कुछ उड़ते जमीन में ले आये कबूतर
कुछ पैदल चलते उड़वाये कबूतर

कबूतरों के लिये कुछ कह जाये कबूतर
सुबह सबेरे समाचार हो जाये कबूतर

गुटुर गूँ गुटुर गूँ की 
चीर फाड़ करवाये कबूतर

हाय कबूतर हाय कबूतर 
कबूतर के पुतले जलवाये कबूतर

हाल-ए-कबूतरखाना 
सुनाता ‘उलूक’
कबूतर जोड़े घटाये कबूतर 
हासिल लगा जीरो पाये कबूतर ।

वैधानिक चेतावनी: किसी शिक्षण संस्थान से कबूतर का कोई समबन्ध नहीं है ।

चित्र साभार: https://www.theguardian.com

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

परिभाषायें बदल देनी चाहिये अब चोर को शरीफ कह कर एक ईमानदार को लात देनी चाहिये

सारे
शरीफ हैं

और

एक भीड़
हो गयी है

शरीफों की

तू
नहीं है
उसमें

और
तुझे
अफसोस
भी नहीं
होना चाहिये

किसलिये
होना है
होना ही
नहीं चाहिये

किसलिये
लपेट कर
बैठा है

कुछ कपड़े

ये
सोच कर


ढक लेंगे
सारा सब कुछ

नंगों का
कुछ नहीं
होना है

नंगा
भगवान होता है

होना भी चाहिये

एक
मन्दिर में

मन्दिर
वालों के
पाले हुऐ

कुछ
कबूतरों ने
बर्थडे
केक काटा

जन्मदिन
होता है
होना है

होना भी चाहिये

मन्दिर
प्राँगण में
शोर मचाया

कुछ
लोगों
ने देखा 

कुछ
बुदबुदाया

और 
इधर उधर
हो गये
उनमें
मैं भी एक था

आप मत मुस्कुराइये

लिखने
लिखाने से 
कभी कुछ
हुआ है क्या 

जो अब होना चाहिये

हिम्मत
होती ही
नहीं है 
नंगई
लिखने की

नंगों के
बीच में
रहते हैं
 शराफत से
कुछ नंगे

शरीफ
भी कुछ
हम जैसे

शराफत से
नंगई
छिपाते हुऐ

कुछ
कहना है

कुछ नहीं
कहना है

कहना भी नहीं चाहिये

सारा
सब कुछ
लिख भी
दिया जाये

तो भी क्या होना है

सबने
अपनी अपनी
औकात का रोना है

लिखना पढ़ना
पढ़ना लिखना

दो चारों के बीच
ही तो होना है

घर घर में
लगे हैं
ग़णेश जी के चूहे

उन्होने ही
सारा
सब कुछ
खोद देना है

‘उलूक’
गिरते
मकान को
छोड़ने की
सोचने से पहले

गणेश
की भी
और
उसके
चूहों की भी

जय जयकार
करते हुऐ

अब सबको रोना है

रोना भी चाहिये।

चित्र साभार: http://paberish.me/clip-art-of-owl-on-book/clip-art-of-owl-on-book-read-birthday-cake-ideas

शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

मिर्च का धुआँ लगा जोर से छींक नाक कान आँख जरूरी है करना जमाने के हिसाब की अब ठीक

खीज मत
कुछ खींच
मुट्ठियाँ भींच

मूल्य पढ़ा
मौका पा
थोड़ा सा
बेच भी आ

ना कर
पाये व्यक्त
ना दे सके
अभिव्यक्ति

ऐसी निकाल
कुछ युक्ति

मूल्यों के
जाल बना

जालसाजी
मूल्यों का
मूल है पढ़ा
कर फंसा

झूठ पर
कपड़ा चढ़ा
चमकीला दिखा

गाँधी जैसों
की सोच पर
आग लगा

जमाने के
साथ चल
चाँद तारे
पा लेने
के लिये
मचल

औकात कुछ
नहीं होती

मिले तो
ताली पीट
ना मिले
बजा दे
ईंट से ईंट

आराम से
टेक लगा
चंदन टीका
लगा देख कर
नेक बता

आईने
घर के
सारे छिपा

ठेका ले
ईमानदारी की
प्रयोगशाला चला

प्रयोग मत कर
सीधे
परीक्षाफल बता

काला कौआ
देख कर आ

सफेद कबूतर
के आने की
खबर बना

शंका
करे कोई
नाम
बदल दिया
गया है का
सरकारी
आदेश दिखा

‘उलूक’
सब सीधा
चल रहे हैं
अपनी
आँखें
कर ही ले
अब ठीक

नहीं दिखे
अगर सीधे
सब कुछ

थोड़ी देर
उल्टा
लटक कर
कोशिश कर

सही
और सीधा
कभी तो
देख ढीट ।

चित्र साभार: http://shopforclipart.com

रविवार, 9 सितंबर 2018

कबूतर का जोड़ा कबूतर पकड़ना कबूतर उड़ाना सिखाने को फिर से सुना है नजर आना शुरु हो जायेगा

चल
फिर से ढूँढें
नयी
कुछ किताबें

पढ़ना पढ़ाना
लिखना लिखाना
पुराना हो चुका

सुना है
आगे से अब
नहीं काम आयेगा

किसका लिखा है
कब का लिखा है
किसका पढ़ाया है
किसने पढ़ा है

लिखकर बताना
बस कुछ ही दिनों में
जरूरी हो जायेगा

लिखने
लिखाने की
पढ़ने पढ़ाने की

सीखने
सिखाने की
दुकानों के
इश्तिहारों में

फिर से
जोड़ा एक
कबूतर का
साथ नजर आयेगा

लड़ने लड़ाने को
भिड़ने भिड़ाने को
जीतने हराने को

सारे के सारे
सोये कबूतरों को

कबूतर
पकड़ने वाले
जाबाँज बाज बनायेगा

लिखते लिखाते
पढ़ते पढ़ाते
किसी एक दिन

‘उलूक’
भी
संगत में
कबूतरों की

कबूतरबाजी
थोड़ा बहुत तो
सीख ही ले जायेगा


स्याही एक रंगीन
एक झंडे के रंग की
रंगीन एक कलम में

सालों से भरना
कभी ना कभी
किसी का किसी के
तो जरूर काम आयेगा।

चित्र साभार: http://joyreactor.cc

शनिवार, 1 सितंबर 2018

देश बहुत बड़ी चीज है खुद के आस पास देख ‘कबूतर’ ‘साँप’ ही खुद एक ‘नेवला’ जहाँ पाल रहा होता है

लिखे लिखाये में
ना तेरे होता है
ना मेरे होता है

सब कुछ उतार
के खड़ा होने
वाले के सामने
कोई नहीं होता है

जिक्र जरूर होता है
डरे हुऐ इंसानो के बीच

 शैतान की बात ही
अलग होती है
वो सबसे अलग होता है

आदमी तो बस
किसी का
एक कुत्ता होता है
आप परेशान ना होवें
कुत्ता होने से पहले
आदमी होना होता है

कोई नहीं लिख रहा है
कोई भी सच कहीं पर भी
झूठ लिखने वाला भी
हमेशा ही सच से डरा होता है

बड़ी तमन्ना है
देखने की
शक्ल बन्दूक की
और गोली की भी
वहाँ जहाँ
हर कोई बन्दूक है
और गोली ठोक रहा होता है

बहुत इच्छा है
‘उलूक’ की
किसी दिन
नंगा होकर नाचने की
देखकर
साथ के एक नंगे को
जो नंगई कर के भी
नाच रहा होता है |

चित्र साभार: https://www.123rf.com

मंगलवार, 15 अगस्त 2017

ऊँची उड़ान पर हैं सारे कबूतर सीख कर करना बन्द पंख उड़ते समय


किसी से
उधार 
ली गई बैसाखियों पर
करतब 
दिखाना सीख लेना 

एक दो का नहीं 
पूरी एक सम्मोहित भीड़ का 

काबिले तारीफ ही होता है 

सोच के हाथ पैरों को
आराम देकर 
खेल खेल ही में सही 
बहुत दूर के आसमान 
को छू लेने का प्रयास 

अकेले नहीं
मिलजुल कर एक साथ 

एक मुद्दे 
चाँद तारे उखाड़ कर 
जमीन पर बिछा देने को लेकर 

सोच का बैसाखी लिये
सड़क पर चलना दौड़ना 

नहीं जनाब
उड़ लेने का जुनून 
साफ नजर आता है आज 

बहुत बड़ी बात है 
त्याग देना अपना सब कुछ 
अपनी खुद की सोच को तक 

तरक्की के उन्माँद
की 
खुशी व्यक्त करना 
बहुत जरूरी होता है
 ‘उलूक’ 

त्यौहारों के
उत्सवों को मनाते हुऐ 

अपने पंखों को
बन्द कर 
उड़ते पंछियों को
एक ऊँची उड़ान पर
अग्रसर होते देख कर। 

चित्र साभार: NASA Space Place

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

एक रंग से सम्मोहित होते रहने वाले इंद्रधनुष से हमेशा मुँह चुरायेंगे

अपने
सुर पर
लगाम लगा

अपनी
ढपली
बजाने से
अब
बाज
भी आ

बजा
तो रहा हूँ
मैं भी ढपली
और
गा भी
रहा हूँ कुछ
बेराग ही सही

सुनता
क्यों नहीं

अब सब
अपनी अपनी
बजाना शुरु
हो जायेंगे तो

समझता
क्यों नहीं
काँव काँव
करते कौए
हो जायेंगे

और
साफ सफेद
दूध से धुले हुऐ
कबूतर फिर
मजाक उड़ायेंगे

क्या करेगा
उस समय

अभी नहीं सोचेगा
समय भूल जायेगा
तुझे
और मुझे

फिर
हर खेत में
कबूतरों की
फूल मालाऐं
पहने हुऐ
रंग बिरंगे
पुतले
नजर आयेंगे

पीढ़ियों दर
पीढ़ियों के लिये

पुतलों पर
कमीशन
खा खा कर

कई पीढ़ियों
के लिये
अमर हो जायेंगे

कभी
सोचना
भी चाहिये

लाल कपड़ा
दिखा दिखा कर

लोग क्या
बैलों को
हमेशा
इसी तरह
भड़काऐंगे

इसी तरह
बिना सोचे
जमा होते
रहेंगी सोचें

बिना
सोचे समझे
किसी एक
रंग के पीछे

बिना रंग के
सफेद रंग
हर गंदगी को
ढक ढका कर

हर बार
की तरह

कोपलों को
फूल बनने
से पहले ही

कहीं पेड़ की
किसी डाल पर

एक बार
फिर से

बार बार
और
हर बार
की तरह ही

भटका कर
ले जायेंगे ।

चित्र साभार: www.allposters.com

शनिवार, 9 अगस्त 2014

बचपन से चलकर यहाँ तक गिनती करते या नहीं भी करते पर पहुँच ही जाते

दिन के आसमान
में उड़ते हुऐ चील
कौओं कबूतरों के झुंड
और रात में
आकाश गंगा के
चारों ओर बिखरे
मोती जैसे तारों की
गिनती करते करते
एक दो तीन से
अस्सी नब्बे होते जाते
कहीं थोड़ा सा भी
ध्यान भटकते
ही गड़बड़ा जाते
गिनती भूलते भूलते
उसी समय लौट आते
उतनी ही उर्जा और
जोश से फिर से
किसी एक जगह से
गिनती करना
शुरु हो जाते
ऐसा एक दो दिन
की बात हो
ऐसा भी नहीं
रोज के पसंदीदा
खेल हो जाते
कोई थकान नहीं
कोई शिकन नहीं
कोई गिला नहीं
किसी से शिकवा नहीं
सारे ही अपने होते
और इसी होते
होते के बीच
झुंड बदल जाते
कब गिनतियाँ
आदमी और
भीड़ हो जाते
ना दिखते कहीं
तारे और चाँद
ना ही चील के
विशाल डैने
ही नजर आते
थकान ही थकान
मकान ही मकान
पेड़ पौँधे दूर दूर
तक नजर नहीं आते
गिला शिकवा
किसी से करे या ना करें
समझना चाह कर
भी नहीं समझ पाते
समझ में आना शुरु
होने लगता यात्रा का
बहुत दूर तक आ जाना
कारवाँ में कारवाँओं
के समाते समाते
होता ही है होता ही है
कोई बड़ी बात फिर
भी नहीं होती इस सब में
कम से कम अपनापन
और अपने अगर
इन सब में कहीं
नहीं खो जाते ।
  

मंगलवार, 6 मई 2014

जिसको काम आता है उसको ही दिया जाता है

अपनी
प्रकृति के
हिसाब से

हर
किसी को

अपने
लिये काम
ढूँढ लेना

बहुत
अच्छी तरह
आता है

एक
कबूतर
होने से
क्या होता है

चालाक
हो अगर

कौओं को
सिखाने
के लिये भी
भेजा जाता है

भीड़
के लिये
हो जाता है
एक बहुत
बड़ा जलसा

थोड़े से
गिद्धों को
पता होता है

मरा
हुआ घोड़ा
किस जगह
पाया जाता है

बहुत
अच्छी बात है

अगर कोई
काली स्याही
अंगुली में
अपनी
लगाता है

गर्व करता है

इतराता हुआ
फोटो भी
कई खिंचाता है

चीटिंयों की
कतार चल
रही होती है
एक तरफ को

भेड़ो
का रेहड़
अपने हिसाब से

पहाड़ पर
चढ़ना चाहता है

एक
खूबसूरत
ख्वाब

कुछ दिनों
के लिये ही सही
फिल्म की तरह
दिखाया जाता है

देवता लोग
नहीं बैठते हैं
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे में

हर कोई
भक्तों से
मिलने
बाहर को
आ जाता है

भक्तों
की हो रही
होती है पूजा

न्यूनतम
साझा कार्यक्रम
के बारे में

किसी
को भी
कुछ नहीं
बताया जाता है

चार दिन
शादी ब्याह
के बजते
ढोल नगाड़ों
के साथ

कितना भी
थिरक लो

उसके बाद

दूल्हा
अकेले दुल्हन के
साथ जाता है

तुझे
क्या करना है

इन
सब बातों से
बेवकूफ ‘उलूक’

तेरे पास
कोई
काम धाम
तो है नहीं

मुँह उठाये
कुछ भी
लिखने को
चला आता है ।

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

समझाने वाले की बात को समझना जरूरी समझा जाता है

पूरी जिंदगी बीतती है  
किसी की कुछ कम
किसी की कुछ ज्यादा
लम्बी ही खींचती है
पर समझ में सबके
सबकुछ अपने अपने
हिसाब का कम या
ज्यादा आ ही जाता है
फिर भी कोशिश
जारी रहती है
समझाने वाले की
हमेशा ही कुछ
ना कुछ समझाने की
सामने वाले को भी
समझाने वाला समझ
में पूरा ही आता है
ये बात अलग है
पता होता है
समझाने वाले को भी
जो वो समझाना
किसी को भी चाहता है
खुद की समझ में
उसके भी जिंदगी भर
बस वही नहीं आ पाता है
समझने वाला पूरी जिंदगी
समझाने वाले से
पीछा नहीं छुड़ा पाता है
समझाने वाले के साथ
भी कोई ना कोई
एक रंगीन छतरी लेकर
जरूर ही इधर या उधर
खड़ा हुआ पाया जाता है
एक श्रँखला बन जाती है
कबूतर के आगे कबूतर
कबूतर के पीछे कबूतर
और बीच वाला कबूतर
अपनी जान साँसत में
हमेशा इस तरह
फँसा ले जाता है
ना निगला जाता है
ना उगला जाता है 

उलूक आधी सदी 
बीत गई तुझे
समझते समझते
तू ही कुछ शरम
कर लेता कुछ
समझ ही लेता
समझाने वालों को
शरम आने की बात
तेरी सोच में भी
कैसे आ जाती है
समझाने वाला
समझने वाले से
हमेशा बीस ही
माना जाता है । 

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

कौन जानता है किस समय गिनती करना बबाल हो जाये

गिनती करना
जरूरी नहीं हैं
सबको ही आ जाये
कबूतर और कौऐ
गिनने को अगर
किसी से कह
ही दिया जाये
कौन सा बड़ा
गुनाह हो गया
अगर एक कौआ
कबूतर हो जाये
या एक कबूतर की
गिनती कौओं
मे हो जाये
कितने ही कबूतर
कितने ही कौऔं को
रोज ही जो देखता
रहता हो आकाश में
इधर से उधर उड़ते हुऐ
उससे कितने आये
कितने गये पूछना ही
एक गुनाह हो जाये
सबको सब कुछ
आना भी तो
जरूरी नहीं
गणित पढ़ने
पढ़ाने वाला भी
हो सकता है कभी
गिनती करना
भूल जाये
अब कोई
किसी और ज्ञान
का ज्ञानी हो
उससे गिनती
करने को कहा
ही क्यों जाये
बस सिर्फ एक बात
समझ में इस सब
में नहीं आ पाये
वेतन की तारीख
और
वेतन के नोटों की
संख्या में गलती
अंधा भी हो चाहे
भूल कर भी
ना कर पाये
ज्ञानी छोड़िये
अनपढ़ तक
का सारा
हिसाब किताब
साफ साफ
नासमझ के
समझ में
भी आ जाये !