उलूक टाइम्स: राम को लिखते हैं खत बस एक डाकखाना नहीं मिलता

बुधवार, 17 सितंबर 2025

राम को लिखते हैं खत बस एक डाकखाना नहीं मिलता

 


तेरे लिखे हुए में अपना अक्स नहीं मिलता  
और अपने लिखे हुए में आईना नहीं मिलता  
ख्वाहिश देखने की खुद को अपने हिसाब से अपनी
कहीं भी देखो खुद का चेहरा खुद से नहीं मिलता  

क्या क्या लिखे और कितना लिखे लिखने वाला  
मौजूँ के ढेर हैं और गिनतियां अंगुलियों के पोरों पर
जोड़ने घटाने में लिखे को लिखे लिखाए के पैमाने में
कलम को कागज पे चलाने का बहाना नहीं मिलता

रोज आते हैं अपने अपने रास्ते से यहां आदतन सभी
अपने रास्ते पर आने जाने का नाम और निशाना नहीं मिलता
वो खुदा में मसरूफ़ हैं इन्हें अल्लाह नहीं मिलता
ये राम को लिखते हैं खत बस एक डाकखाना नहीं मिलता

पुरानी आदत है तेरी बक बकाने की उलफ़त में ‘उलूक’
तू भी गा जन्मदिन मना केक खाएगा तेरे साथ में जमाना
नहीं लिखेगा अपने लिखे लिखाए में आबोदाना नहीं मिलता

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/  

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 सितंबर 2025 को लिंक की जाएगी है....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. वाह! सोचने को मजबूर करती बहुत गहरी बातें,

    आईना तो सच को बनाना होगा, अपना अक्स फिर उसमें झलकाना होगा, राम और रहीम दोनों को सलाम कर, ख़ुद को पूरी तरह आज़माना होगा

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  3. आपकी एक-एक लाइन जैसे खुद से लड़ाई करती है, और सच कहूँ तो पढ़ते वक्त अपना चेहरा भी कहीं धुंधला सा दिखता है। लिखते-लिखते इंसान खुद को ढूँढता रहता है और जवाब हमेशा अधूरा निकलता है। मज़ेदार बात ये है कि आपने तंज भी मारा और दर्द भी दिखा दिया।

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