उलूक टाइम्स: "पाँच लिंकों का आनन्द"
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गुरुवार, 26 जून 2025

शुभकामनाएं जन्मदिन की पाँच लिंक्स

 

चिट्ठियाँ ना जाने कब का सो गयीं
या शायद रास्ते में कहीं खो गयीं
लेकर के झोले डाकिए दिखते तो हैं 
कुछ सामान शायद अभी भी बिकते तो हैं
चिट्ठे होश खो रहे हों जैसे
चिट्ठाकार कुछ बेहोश हो रहे हों जैसे
कलम हाथ में रहती है जैसे
जुबां तक फिसल कर बात बस बहती है जैसे
कहीं कुछ नशा है कहीं कुछ जहर है
पर है कुछ कहीं मीठी सुबह मीठा दोपहर है
अपने में मगन है अपने ही शगुन हैं
सिमटते गाँव घर सड़क नदी सिमटते हुए शहर हैं
बैचेन जानवर हैं पंछी नदारत हैं
हवा बहक रही हो जैसे उदास सी कुछ इमारत है
फिर भी उठाता है कोई कभी किसी को
जगाता है नींद से यूं ही कोई कहीं किसी को
लिखने लिखाने की बातें इधर से उधर से
उठा कर जमा कर एक चौपाल पर कब से
लाता बताता जागते रहो कि आवाज सुनाता किसी को
शुभकामनाएं 'उलूक' की इसको उसको सभी को
जन्मदिन मनाता "पाँच लिंकों का आनंद"
साथ में रथयात्रा का निमंत्रण दे जाता है सबको

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

    बुधवार, 3 जुलाई 2019

    शुभकामनाएं पाँचवें वर्ष में कदम रखने के लिये "पाँच लिंको का आनन्द"


    बकबक-ए-उलूक 
    समझ में नहीं आता है 
    जब कभी किसी बात पर 
    कुछ कहने के लिये 
    कह दिया जाता है 

    ऐसे ही किसी क्षण 
    एक पहाड़ बना दिया गया 
    राई का दाना बहुत घबराता है 
    पता ही नहीं चल पाता है 
    भटकते भटकते 
    एक गाँव कब और कैसे 
    शहरों के बीच घुस के 
    घिर घिरा जाता है 

    कविता कहानी की 
    बाराहखड़ी से डरते हुऐ 
    किताबों के पन्नों के सपनों के बीच 
    खुद को खुद ही दबा ले जाता है 

    हकीकत जान लेवा होती है 
    सब को पता होती है 
    कोई पचा लेता है 
    कोई पचा दिया जाता है 

    समझना आसान भी है कठिन को 
    समझना बहुत कठिन है सरल को भी 
    लिखना लिखाना भी 
    कभी यूँ ही उलझा ले जाता है 

    कैसे बताये पूछने वाले को 
    बकवास करने वाले से 
    जब सीधा सपाट कुछ लिखने को 
    बोला जाता है 

    बस चार लाईन लिखने की ही 
    आदत नहीं है ‘उलूक’ की 
    हर सीधे को जलेबी जरूर 
    बना ले जाता है 
    पाँच लिंको के आनन्द के 
    पाँचवे साल में 
    कदम रखने के अवसर पर 

    पता नहीं क्यों 
    ‘ठुमुक चलत राम चंद्र बाजत पैजनियाँ’ 
    और धीरे धीरे कदम
    आगे बढ़ाता हुआ 
    छोटा सा नन्हा सा 
     ‘राम’ याद आता है 

    राजा दशरथ और
    रानियों से भरे दरबार में
    लोग मोहित हैं 
    हर कोई तालियाँ बजाता है 

    शुभकामनाएं इसी तरह से 
    हर आने वाला देता हुआ 
    ‘राम’ के साथ बढ़ते हुऐ 
    ‘राम राज्य’  की ओर 
    चलना चाहता है 

    पुन:
    शुभकामनाएं 

    "पाँच लिंको का आनन्द"
     ।