सबके पास
होती हैं
कहानियाँ
कुछ पूरी
कुछ अधूरी
अपंग
कहानियाँ
दबी होती है
पूरी कहानियोँ
के ढेर के नीचे
कलेजा
बड़ा होना
जरूरी
होता है
हनुमान जी
की तरह
चीर कर
दिखाने
के लिये
आँखे
सबकी
देखती हैं
छाँट छाँट
कर कतरने
कहानियोँ
के ढेर
में अपने
इसके उसके
कुछ
कहानियाँ
पैदा होती हैं
खुद ही
लकुआग्रस्त
नहीं चाहती हैं
शामिल होना
कहानियों
के ढेर में
संकोचवश
इच्छायें
आशायें
रंगीन
नहीं भी सही
काली नहीं
होना चाहती हैं
अच्छा होता है
धो पोछ कर
पेश कर देना
कहानियोँ को
कतरने बिखेरते
हुऐ सारी
इधर उधर
कहानियों की
भीड़ में छुपी
लंगडी
कहानियाँ
दिखायी ही
नहीं देती
के बहाने से
अपंंग
कहानियों से
किनारा करना
आसान हो जाता है
‘उलूक’
कहानियों
के ढेर से
एक लंगड़ी
कहानी
उठा कर
दिखाने वाला
जानता है
कहानियाँ
बेचने वाला
ऐसे हर
समय में
दूसरी तरफ
की गली से
होता हुआ
किसी और
मोहल्ले की ओर
निकल जाता है।
चित्र साभार: https://es.123rf.com
होती हैं
कहानियाँ
कुछ पूरी
कुछ अधूरी
अपंग
कहानियाँ
दबी होती है
पूरी कहानियोँ
के ढेर के नीचे
कलेजा
बड़ा होना
जरूरी
होता है
हनुमान जी
की तरह
चीर कर
दिखाने
के लिये
आँखे
सबकी
देखती हैं
छाँट छाँट
कर कतरने
कहानियोँ
के ढेर
में अपने
इसके उसके
कुछ
कहानियाँ
पैदा होती हैं
खुद ही
लकुआग्रस्त
नहीं चाहती हैं
शामिल होना
कहानियों
के ढेर में
संकोचवश
इच्छायें
आशायें
रंगीन
नहीं भी सही
काली नहीं
होना चाहती हैं
अच्छा होता है
धो पोछ कर
पेश कर देना
कहानियोँ को
कतरने बिखेरते
हुऐ सारी
इधर उधर
कहानियों की
भीड़ में छुपी
लंगडी
कहानियाँ
दिखायी ही
नहीं देती
के बहाने से
अपंंग
कहानियों से
किनारा करना
आसान हो जाता है
‘उलूक’
कहानियों
के ढेर से
एक लंगड़ी
कहानी
उठा कर
दिखाने वाला
जानता है
कहानियाँ
बेचने वाला
ऐसे हर
समय में
दूसरी तरफ
की गली से
होता हुआ
किसी और
मोहल्ले की ओर
निकल जाता है।
चित्र साभार: https://es.123rf.com