उलूक टाइम्स: कहानियाँ
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सोमवार, 26 अगस्त 2019

बकवास भटक जाती हैं जब आस पास की लाजवाब कविताएं लेख कहानियाँ बहुत सारी आ कर इठलाती हैं



जन्म
लेने के
साढ़े पाँच
दशक से
थोड़ा
ऊपर जा कर

थोड़ा थोड़ा
अब समझ में
आने लगे हैं
मायने
कुछ
महत्वपूर्ण
शब्दों के

ना
माता पिता
सिखा पाये
ना शिक्षक
ना ही
आसपास
का परिवेश
और
ना ही समाज

ये भी
पता
नहीं लग पाया
कि
ये कुछ शब्द
निर्णय करेंगे
अस्तित्व का

होने
या
ना होने
के बीच
की
रेखा के
इस तरफ
या
उस तरफ

प्रेम
द्रोह
और
देश

आत्मग्लानि
और
आत्मविश्वास
कतार से
आता है

कतार
देख कर
आता है

कोई
कैसे

सीख
सकता है

स्वत: ही
काटते हुऐ
अपने अंगूठे

विसर्जन
करते हुऐ
गुरु के लिये

चीटियाँ
और
उनके
सामाजिक
व्यवहार
की परिभाषाओं
से
सम्मोहित होकर
मान लेना
नियम
प्रकृति के
पीड़ा दे जाये
असंभव है

संभव
दिखाया
जाता है

महसूस
कराया जाता है

और
वही शाश्वत है

जो
दिख रहा है
उसपर
विश्वास मत कर

जो
सुनाई दे रहा है
वो झूठ है

सबसे
बुरी बात
अपनी इंद्रियों पर
भरोसा करना है

इधर उधर
देख
और
समझ
विद्वान की विद्वता

जब तक
किसी के द्वारा
परखी ना गयी हो

उसका
कोई प्रमाण पत्र
कम से कम
तीन हस्ताक्षरों
के साथ ना हो
बेकार है

कतार
बेतार का तार है

बेकतार
सब बेकार है

कुछ
बच्चों से सीख

कुछ
उनके
नारों से सीख

कुछ
कतार
लगाने वालों
से सीख

दिमाग खोल
और
प्रेमी बन

द्रोही
किसलिये

तुझे
समझाने वाले
सब

कहीं ना कहीं
किसी ना किसी
कतार से जुड़े हैं
‘उलूक’

ये सोच लेना
कि
अकेला चना
भाड़ नहीं
फोड़ सकता है

चनों की
बेइज्जती है

उस
चने की
सोच

जिसने
प्रेम द्रोह
और देश
को
परिभाषित
कर दिया है

और
सब कुछ
कतार में है
आज चने की ।

चित्र साभार: https://longfordpc.com

सोमवार, 19 जून 2017

बे सिर पैर की उड़ाते उड़ाते यूँ ही कुछ उड़ाने का नशा हो जाता है

सबके पास
होती हैं
कहानियाँ
कुछ पूरी
कुछ अधूरी

अपंग
कहानियाँ
दबी होती है
पूरी कहानियोँ
के ढेर के नीचे

कलेजा
बड़ा होना
जरूरी
होता है
हनुमान जी
की तरह
चीर कर
दिखाने
के लिये

आँखे
सबकी
देखती हैं
छाँट छाँट
कर कतरने
कहानियोँ
के ढेर
में अपने
इसके उसके

कुछ
कहानियाँ
पैदा होती हैं
खुद ही
लकुआग्रस्त

नहीं चाहती हैं
शामिल होना
कहानियों
के ढेर में
संकोचवश

इच्छायें
आशायें
रंगीन
नहीं भी सही
काली नहीं
होना चाहती हैं

अच्छा होता है
धो पोछ कर
पेश कर देना
कहानियोँ को
कतरने बिखेरते
हुऐ सारी
इधर उधर

कहानियों की
भीड़ में छुपी
लंगडी
कहानियाँ
दिखायी ही
नहीं देती
के बहाने से
अपंंग
कहानियों से
किनारा करना
आसान हो जाता है

‘उलूक’
कहानियों
के ढेर से
एक लंगड़ी
कहानी
उठा कर
दिखाने वाला
जानता है

कहानियाँ
बेचने वाला
ऐसे हर
समय में

दूसरी तरफ
की गली से
होता हुआ
किसी और
मोहल्ले की ओर
निकल जाता है।

चित्र साभार: https://es.123rf.com

शनिवार, 25 जुलाई 2015

किया कराया दिख जाता है बस देखने वाली आँखों को खोलना आना चाहिये

बहुत कुछ
दिख जाता है
सामने वाले
की आँखों में

बस देखने का
एक नजरिया
होना चाहिये

सभी कुछ
एक सा ही
होता है
जब आदमी
के सामने से
आदमी होता है

बस चश्मा
सामने वाले
की आँखों में
नहीं होना चाहिये

आँखों में आँखे
डाल कर देखने
की बात ही कुछ
और होती है

कितनी भी
गहराई हो
आँख तो बस
आँख होती है

तैरना भी हो
सकता है वहीं
डूबना भी हो
सकता है कहीं

बस डूबने मरने
की सोच कर
डरना नहीं चाहिये

निपटा दिया गया
कुछ भी काम
छुप नहीं पाता है

कितना भी ढकने
की कोशिश
कर ले कोई
छुपा नहीं पाता है

मुँह से राम
निकलता हुआ
सुनाई भी देता है

पर आँखों में
सीता हरण साफ
दिखाई दे जाता है

आँखों में देखना
शुरु कर ही दिया
हो अगर फिर

आँखों से आँखों
को हटाना
नहीं चाहिये

निकलती हैं
कहानियाँ
कहानियों
में से ही
बहुत
इफरात में
‘उलूक’

कितना भी
दफन कर ले
कोई जमीन
के नीचे
गहराई में

बस मिट्टी
को हाथों
से खोदने में
शर्माना
नहीं चाहिये ।

चित्र साभार: www.123rf.com

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

लो मित्र तुम्हारे प्रश्न का उत्तर हम यूं लेकर आते हैं


सुनो मित्र 
तुम्हारे सुबह किये गये
प्रश्न का
उत्तर देने जा रहा हूँ

पूछ रहे थे तुम
कौन सी कहानी ले कर
आज शाम को आ रहा हूँ

कहानी और कविता 
लेखक और कवि लिखा करते हैं जनाब

मैं तो
बस रोज की तरह
वही कुछ बताने जा रहा हूँ
जो देख सुन कर आ रहा हूँ

कहानियाँ बनाने वाले
कहानियाँ रोज ही बनाते हैं
उनका काम ही होता है
कहानियां बनाना
वो कहानियां बना कर
इधर उधर फैलाते हैं

कुछ फालतू लोग
जो उन कहानियों को समझ नहीं पाते हैं
उठा के यहां ले आते हैं

कहानियाँ
बनाने वाले को चलानी होती है
कोई ना कोई कार या सरकार
कहीं ना कहीं

उनके पास होते हैं
अपने काम को छोड़ कर
काम कई
वो काम करते हैं
बकवास करने से हमेशा कतराते हैं

सारे के सारे कर्मयोगी
इसीलिये
हमेशा एक साथ
एक जगह पर नजर आते हैं

कहानियाँ बनाने वाले
जन्म देते हैं
एक ही नहीं कई कहानियों को

त्याग देखिये उनका
कभी किसी कहानी को
खुद पढ़ने के लिये कहीं नहीं जाते हैं

काम के ना काज के दुश्मन अनाज के
कुछ लोग कहानियाँ 
बताने वाले बन जाते हैं

पूरा देश ही चल रहा है
कहानी बनाने वालों से

आप और हम तो बस
एक कहानी को पीटने के लिये
रोज यहां चले आते हैं । 

चित्र सभार: https://www.dreamstime.com/

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

कहानी की भी होती है किस्मत ऐसा भी देखा जाता है

कहानियाँ
बनती हैं
एक नहीं बहुत

हर जगह पर
अलग अलग

पर
हर कहानी
एक जगह नहीं
बना पाती है

कुछ
छपती हैं
कुछ
पढ़ी जाती हैं

अपनी अपनी
किस्मत होती है
हर कहानी की

उस
किस्मत के
हिसाब से ही
एक लेखक
और
एक लेखनी
पा जाती हैं

एक
बुरी कहानी
को एक अच्छी
लेखनी ही
मशहूर बनाती है

एक
अच्छी कहानी
का बैंड भी एक
लेखनी ही बजाती है

पाठक
अपनी
सोच के
अनुसार ही
कहानी का
चुनाव कर पाता है

इस मामले में
बहुत मुश्किल
से ही अपनी
सोच में कोई
लोच ला पाता है

मीठे का शौकीन मीठी
खट्टे का दीवाना खट्टी
कहानी ही लेना चाहता है

अब कूड़ा
बीनने वाला भी
अपने हिसाब से ही
कूड़े की तरफ ही
अपना झुकाव
दिखाता है

पहलू होते हैं ये भी
सब जीवन के ही

फ्रेम देख कर
पर्दे के अंदर रखे
चित्र का आभास
हो जाता है

इसी सब में
बहुत सी
अनकही
कहानियों की
तरफ किसी का
ध्यान नहीं जाता है

क्या किया जाये
ये भी होता है
और
बहुत होता है

एक
सर्वगुण
संपन्न भी
जिंदगी भर
कुँवारा
रह जाता है ।