ऐसा नहीं है कि
नहीं लिखे गये
कभी कुछ शब्द
इश्क पर भी
ऐसा भी नहीं है
कि इश्क अब
लिखने का मौजू
रहा ही नहीं है
इश्क बुढ़ाता है
कहा जाना भी
ठीक नहीं है
हाँ बदल लेता है
इश्क नजरिया अपना
उम्र ढलने के साथ
कमजोर होती
जाती है जैसे आँख
दिखता नहीं है
चाँद भी
उतना सुन्दर
तारे गिने भी
नहीं जाते हैं जब
बैठे हुऐ छत पर
रात के समय
अन्धेरे से
बातें करते करते
बहुत कुछ होता है
आस पास ही अपने
फैला हुआ
समेटने के लिये
खुद अपने लिये
कुछ कौढ़ियाँ
जमा कर
गिनते गिनते
गिनना भूल जाना
भी इश्क होता है
उम्र बदलती है
नजर बदलती है
इश्क भी
बदल लेता है
तितलियों
फूल पत्तियों
इंद्रधनुष
बादल कोहरे
पहाड़ बर्फ
नदी नालों
से होते हुऐ
इश्क
मुड़ जाता है
कब किस समय
पहाड़ी पगडंडियों
से अचानक उतर कर
बियाबान भीड़ में
अपने जैसे कई
मुखौटों से खेलते
चेहरों के बीच
पता चलता है तब
जब कहने लगती हैं
हवायें भी
फुसफुसाती हुई
इश्क इश्क
और
याद आने शुरु होते हैं
फिर से ‘उलूक’ को
जलाये गये
किसी जमाने में
इश्क से भरे
दिवाने से मुढ़े तुढ़े
ढेरी बने कुछ कागज
कुछ डायरियाँ
थोड़े से सूखे हुऐ
कुछ फूल
कुछ पत्तियाँ
और धुँधली सी
नजर आना
शुरु होती है
उसी समय
इश्क के कागज
से बनी एक नाव
तैरते हुऐ
निकल लेती है
जो बरसाती नाले में
और
बचा रह जाता है
गंदला सा
मिट्टी मिट्टी पानी
लिखने के लिये
बहता हुआ
थोड़ा सा
कुछ इश्क
समय के साथ ।
चित्र साभार: business2community.com
नहीं लिखे गये
कभी कुछ शब्द
इश्क पर भी
ऐसा भी नहीं है
कि इश्क अब
लिखने का मौजू
रहा ही नहीं है
इश्क बुढ़ाता है
कहा जाना भी
ठीक नहीं है
हाँ बदल लेता है
इश्क नजरिया अपना
उम्र ढलने के साथ
कमजोर होती
जाती है जैसे आँख
दिखता नहीं है
चाँद भी
उतना सुन्दर
तारे गिने भी
नहीं जाते हैं जब
बैठे हुऐ छत पर
रात के समय
अन्धेरे से
बातें करते करते
बहुत कुछ होता है
आस पास ही अपने
फैला हुआ
समेटने के लिये
खुद अपने लिये
कुछ कौढ़ियाँ
जमा कर
गिनते गिनते
गिनना भूल जाना
भी इश्क होता है
उम्र बदलती है
नजर बदलती है
इश्क भी
बदल लेता है
तितलियों
फूल पत्तियों
इंद्रधनुष
बादल कोहरे
पहाड़ बर्फ
नदी नालों
से होते हुऐ
इश्क
मुड़ जाता है
कब किस समय
पहाड़ी पगडंडियों
से अचानक उतर कर
बियाबान भीड़ में
अपने जैसे कई
मुखौटों से खेलते
चेहरों के बीच
पता चलता है तब
जब कहने लगती हैं
हवायें भी
फुसफुसाती हुई
इश्क इश्क
और
याद आने शुरु होते हैं
फिर से ‘उलूक’ को
जलाये गये
किसी जमाने में
इश्क से भरे
दिवाने से मुढ़े तुढ़े
ढेरी बने कुछ कागज
कुछ डायरियाँ
थोड़े से सूखे हुऐ
कुछ फूल
कुछ पत्तियाँ
और धुँधली सी
नजर आना
शुरु होती है
उसी समय
इश्क के कागज
से बनी एक नाव
तैरते हुऐ
निकल लेती है
जो बरसाती नाले में
और
बचा रह जाता है
गंदला सा
मिट्टी मिट्टी पानी
लिखने के लिये
बहता हुआ
थोड़ा सा
कुछ इश्क
समय के साथ ।
चित्र साभार: business2community.com