उलूक टाइम्स: मुखौटे
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गुरुवार, 13 मई 2021

कुछ शेर हैं दूर से शायर दिख रहे हैं कुछ भीगे बिल्ले बेचारे बिल्लियाँ लिख रहे हैं

 


कुछ
प्रायश्चित कर रहे हैं

कुछ
सच में
सच लिख रहे हैं

कुछ
बकवास के पन्ने
कई दिन हो गये
कहीं नहीं दिख रहे हैं

कुछ 
नहीं लिखा
कुछ
नहीं लिखा जा रहा है

कुछ पन्ने
ठण्डी धूप में सिक रहे हैं

कुछ ने लिखा है
कुछ कुछ

कुछ
लिख दिए सब कुछ
सब्जी मण्डी में दिख रहे हैं

कुछ
कुछ से बहुत कुछ तक
पहुँच गये हैं

कुछ
कुछ में ही
कुछ टिक रहे हैं

कुछ
भर रहे हैं कुछ
कुछ
भर लिये हैं बहुत कुछ

कुछ
रास्ते में हैं लबालब
कुछ
कुछ रिस रहे हैं

कुछ
कुछ लिखने के लिये
दिख रहे हैं
कुछ
कुछ दिखने के लिये
लिख रहे हैं

कुछ
चल दिये हैं
कुछ लिखते लिखते
कुछ
रास्ते में हैं
 बस जूते घिस रहे हैं

कुछ
मुखौटे कुछ
चेहरों से उतर रहे हैं
कुछ
मुखौटे
शहर दर शहर बिक रहे हैं

कुछ बाजार
कुछ उजड़ रहे हैं

कुछ बाजार 
श्मशान में
सजते हुऐ कुछ दिख रहे हैं

कुछ
डरों से
कुछ निजात मिले

धोबी के कुछ गधे
कुछ
कोशिश कर रहे हैं

‘उलूक’
कुछ लगाम
खींच कलम की
कुछ
लिख कर कभी

सोच के घोड़े मर रहे हैं

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

शनिवार, 1 अगस्त 2020

कलाकारों पर क्यों नहीं छोड़ देता है वो बना लेंगे पेंटिंग हूबहू


तू लिख
लेकिन चेहरे मत लिख
मुखौटे लिखना तेरे बस में नहीं है

चित्र सब सोच सकते हैं
उकेरने का लाइसेंस होना चाहिये
है तेरे पास ?
 फिर किसलिये प्रयास करता है?

 हाथ लिख पैर लिख अंगुलियाँ लिख
पेट लिख माँस लिख  हड्डियाँ लिख
 कौन रोकता है?
 बस चेहरे मत लिख

हर चेहरे के साथ एक मुखौटा होता है
हर मुखौटे के साथ एक चेहरा होता है
मुखौटे होना  बहुत जरूरी है भी

चेहरा हर समय मुखौटे के साथ हो
या
मुखौटा हर समय चेहरे के साथ हो
जरूरी नहीं भी होता है

मुखौटे लिखने की महारत
हर किसी के पास होती है

चेहरा लिखना किसी के बस में
होता भी है या नहीं होता है
इस पर ना किसी ने कभी कुछ कहा होता है
ना कुछ कहीं लिखा होता है

मुखौटे
एक चेहरे के कई हो सकते हैं
कई चेहरों पर
एक मुखौटा कभी हो ही नहीं सकता है

सारा लिखा लिखाया
मुखौटा ओढ़ कर ही लिखा जाता है

कोई हो
तुलसी हो कबीर हो सूर हो
सबके मुखौटे की छाया
लिखा लिखाया साफ साफ दिखा जाता है

लिखने वाले ने लिखा होता है
मुखौटा ओढ़ कर जो कुछ भी
‘उलूक’

हर किसी को मुखौटा उतार कर
लिखे लिखाये का मुखौटा उतारना
बड़ी सफाई के साथ आता है

तू लिखता रह
मुखौटा लगाये आँखें छुपाये
अंधेरे की बातें

पढ़ने वाले को कौन सा पढ़ना होता है
मुखौटा लगा कर

लिखते समय याद रहता है

पढ़ते समय मुखौटा लगाना
भूला ही जाता है।

चित्र साभार:
https://www.newsgram.com/

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

समय ही इश्क हो लेता है समय से जब इश्क होता है

ऐसा नहीं है कि
नहीं लिखे गये
कभी कुछ शब्द
इश्क पर भी

ऐसा भी नहीं है
कि इश्क अब
लिखने का मौजू
रहा ही नहीं है

इश्क बुढ़ाता है
कहा जाना भी
ठीक नहीं है

हाँ बदल लेता है
इश्क नजरिया अपना

उम्र ढलने के साथ
कमजोर होती
जाती है जैसे आँख

दिखता नहीं है
चाँद भी
उतना सुन्दर
तारे गिने भी
नहीं जाते हैं जब
बैठे हुऐ छत पर
रात के समय
अन्धेरे से
बातें करते करते

बहुत कुछ होता है
आस पास ही अपने
फैला हुआ
समेटने के लिये

खुद 
अपने लिये
कुछ कौढ़ियाँ
जमा कर
गिनते गिनते
गिनना भूल जाना
भी इश्क होता है

उम्र बदलती है
नजर बदलती है
इश्क भी
बदल लेता है

तितलियों
फूल पत्तियों
इंद्रधनुष
बादल कोहरे
पहाड़ बर्फ
नदी नालों
से होते हुऐ
इश्क
मुड़ जाता है

कब किस समय
पहाड़ी पगडंडियों
से अचानक उतर कर
बियाबान भीड़ में
अपने जैसे कई
मुखौटों से खेलते
चेहरों के बीच

पता चलता है तब
जब कहने लगती हैं
हवायें भी
फुसफुसाती हुई
इश्क इश्क
और
याद आने शुरु होते हैं
फिर से ‘उलूक’ को

जलाये गये
किसी जमाने में
इश्क से भरे
दिवाने से मुढ़े तुढ़े
ढेरी बने कुछ कागज

कुछ डायरियाँ
थोड़े से सूखे हुऐ
कुछ फूल
कुछ पत्तियाँ

और धुँधली सी
नजर आना
शुरु होती है
उसी समय
इश्क के कागज
से बनी एक नाव

तैरते हुऐ
निकल लेती है
जो बरसाती नाले में
और
बचा रह जाता है
गंदला सा
मिट्टी मिट्टी पानी

लिखने के लिये
बहता हुआ
थोड़ा सा
कुछ इश्क
समय के साथ ।

चित्र साभार: business2community.com

सोमवार, 6 मार्च 2017

सुना है फिर से आ गयी है होली

चल
बटोरें रंग
बिखरे हुऐ
इधर उधर
यहाँ वहाँ

छोड़ कर
आ रहा है
आदमी

आज
ना जाने सब
कहाँ कहाँ


सुना है
फिर से
आ गयी है

होली

बदलना
शुरु हो गया
है मौसम


चल
करें कोशिश

बदलने
की व्यवहार
को अपने

ओढ़
कर हंसी
चेहरे पर

दिखाकर
झूठी ही सही
थोड़ी सी खुशी
मिलने की
मिलाने की


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
दिखायें रास्ते
शब्दों को
भटके हुऐ

बदलें
मतलब
वक्तव्य के
दिये हुए

अपनों के
परायों के

करें काबू
जबानें
लोगों की

सभी
जो आते हैं नजर
इधर और उधर
सटके हुऐ


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
चढ़ाये भंग
उड़ायें रंग
जगायें ख्वाब

सिमटे हुऐ
सोते हुऐ
यहाँ से
वहाँ तक के
सभी के

जितने
भी दिखें
समय के
साथ लटके हुऐ


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
करें दंगा
करें पंगा

लेकिन
निकल बाहर
हम्माम से

कुछ ही
दिन सही
सभी नंगों के
साथ हो नंगा


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली


चल
उतारें रंग
चेहरे के
मुखौटों के

दिखायें
रंग
अपने ही
खुद के होठों के

कहें
उसकी नहीं
बस अपनी ही

कहें

अपनों से

कहें

किसलिये
लुढ़कना
हर समय
है जरूरी
साथ लोटों के


सुना है
फिर से
आ गयी
है होली

सुना है
फिर से
आ गयी
है होली ।


चित्र साभार: Happy Holi 2017

शुक्रवार, 17 मई 2013

मुखौटे हम लगाते हैं !

उसे पता होता है
मुझे पता होता है

उसके पास होता है
मेरे पास होता है

 हम दोनो लगाते हैं
बस यूँ मुस्कुराते हैं

खुश बहुत हो जाते हैं
जैसे कुछ पा जाते हैं

बस ये भूल जाते हैं
समझ सब सब पाते हैं

वो जब हमें बनाते हैं
साँचे एक ही लगाते हैं

पढ़ते हैं और पढ़ाते हैं
किताबें साथ लाते हैं

स्कूल साथ जाते हैं

घर को साथ आते हैं

समझते हैं समझाते हैं

फोटो सुंदर लगाते हैं

हंसते हैं मुस्कुराते हैं

बातें खूब बनाते हैं

इसको ये दिखाते हैं

उसको वो दिखाते हैं

 बिना पहने ही आते हैं

आते ही बनाते हैं


बिना पहने ही जाते हैं
जाते हुऎ छोड़ जाते हैं

ना आते में दिखाते हैं

ना जाते में दिखाते हैं

सब के पास पाते हैं

मिलते ही लगाते हैं

दिल खोल के दिखाते हैं

खुली किताब है बताते हैं

विश्वास में ले आते हैं

विश्वास फिर दिलाते हैं

कुछ कुछ भूल जाते हैं

कुछ कुछ याद लाते हैं

कितना कुछ
कर ले जाते हैं

कितना कुछ ले आते हैं
कितना कुछ दे जाते हैं

ना जाने क्यों फिर भी

हम जब भी मिलते हैं
मिलते ही लगाते हैं

ना जाने क्यों लगाते हैं

ना जाने क्यों बनाते हैं
ना जाने क्यों छिपाते हैं

मुखौटे मेरे और उसके

कब किस समय आके
चेहरे पर हमारे बस
यूँ ही लग जाते हैं

ना वो बताते हैं

ना हम बताते हैं

उनको पता होता है

हमको पता होता है
उनके पास होता है
मेरे पास होता है

हम दोनो लगाते हैं

मुखौटे सब लगाते हैं

सब कुछ बताते हैं

बस मुखौटे छिपाते हैं ।