उलूक टाइम्स: कहना
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मंगलवार, 6 अक्टूबर 2015

ना इसका हूँ ना उसका हूँ क्या करूं इधर भी हूँ उधर भी रहना ही रहना है


मत नाप
लिखे हुऐ वाक्यों की लम्बाई को 
पैमाना हाथ में लेकर अपने 
कुछ भी तो कहीं भी नहीं होना है 

दो इंच बड़ा भी हो जाये
या तीन इंच आगे या पीछे से कहीं 
कम भी अगर
कहीं किसी बात को होना है 

इधर का इधर और उधर का उधर
बस बहस के लिये 
कैमरे के सामने बैठ कर दिखाने सुनाने का रोना है 

नहीं समझेगा फिर भी 
पता है तुझे
तेरे अपने फटे में खुद ही हाथ डाल कर 
सोचना अपने ही खेलने के लिये कोई खिलौना है 

लिख कुछ बोल कुछ दिखा कुछ बता कुछ 
छपा कुछ दे कुछ दिला कुछ 
पता किसी को कुछ भी नहीं होना है 

काले कोयले का धुआँ सफेद राख सफेद 
बचा कहीं उसके बाद कहीं कुछ नहीं होना है 

लगा रह
देखने में कुछ कलाबाजी कुछ कलाकारी 
दिखना
सब सफेद है साफ सुथरा 
कुछ दिनो के बाद
कौन सा किस को कहाँ उसी जगह पर 
लम्बे समय तक
खसौटे गये को दिखने दिखाने के लिये रहना है 

‘उलूक’ की आदत है 
उसको भी कुछ भी कभी भी कहीं भी 
कहने के लिये ही बस कुछ कहना है । 

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

रोज सुनता है मेरे यहाँ की कभी अपने यहाँ की क्यों नहीं कहता है

क्या तुम्हारे यहाँ भी
वही सब हुआ होता है
जो जो जैसा जैसा
मेरे यहाँ रोज का
रोज हुआ होता है
लगता तो नहीं है
एक जैसा ही
हुआ होता होगा
मेरे यहाँ का हुआ हुआ
हो रहा और होने वाला जितना भी जो भी
पता हुआ होता है
शाम होने होने तक
शराब की तरह
कलम से निकल कर
पन्ने के गले के नीचे
उतर चुका होता है
नशा पन्ने को
हुआ होता है या
नहीं हुआ होता है
तुड़ा मुड़ा कागज
कमरे के किसी कोने
में बेजान बेसुद सा
जरूर पड़ा होता है
तुम्हारे यहाँ का हुआ
शायद मेरे यहाँ के हुऐ से
कुछ अलग हुआ होता है
उसके यहाँ का हुआ
वो अपने यहाँ पर
कह रहा होता है
इसके यहाँ का हुआ
ये अपने यहाँ पर
कह रहा होता है
उसका उसका जैसा
इसका इसका जैसा
मेरे यहाँ का मेरे
जैसा ही होता है
तेरे यहाँ कैसा
कैसा होता है तू तो
कहीं भी कभी भी
कुछ भी नहीं कहता है
कबीर ने कहा हो
या ना कहा हो पर
सबसे अच्छा तो
वही होता है ‘उलूक’
जो सबकी सुनता है
अपनी करता है और
कहीं भी अपने यहाँ के
हुऐ और होने वाले के
बारे में कुछ भी
नहीं कहता है ।

चित्र साभार: www.clipartof.com

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

उसके कुछ भद्दे कहे गये पर बौखलाने से कहीं भी कुछ भी नहीं होता है

तुम्हारे
बौखलाने से
अगर उसे
या
उसके जैसे
सभी अन्य
लोगों को
कोई असर
होने वाला होता
तो वो पहले ही
कोशिश करता

एक
भद्दा गाना
नहीं गाता
ऐसा एक ना
एक गाना
रोज ही
उसके ही किसी
स्टूडियो में
जानबूझ कर
तैयार किया
जाता है

और उसकी
जैसी सोच के
सभी लोगों
की सहमति
के साथ
उसके ही
बाजार में
पेश कर
दिया जाता है

तुम सुनो
ना सुनो
नाक भौं
सिकौड़ो
उसे कोसो
गालियाँ दो
अखबार
में लिखो
आकाशवाणी
दूरदर्शन
में खुली
बहसें रखो
ब्लाग में
पोस्ट करो
उसके बाद
चर्चा में
उसे लाकर
सजाकर धरो

इसके गुस्से
पर किसी
उसकी टिप्प्णी
उसके
खिसियाने पर
किसी इसकी
झिड़कियों
को पढ़ो
कुछ लिखो

होना कुछ
नहीं है
सारी
मसालेदार मिर्ची
भरी तीखी
फूहड़ बातें
करते समय
उसके दिमाग
में अपने जैसे
उसके सभी
वो लोग होते हैं
जिन्होने उसे
और उसके
जैसे लोगों को
ताज पहना कर
बादशाह
बनाया होता है

और
उनकी
अपेक्षाओं में
खरा उतरने
के लिये बहुत
जरूरी होता है

कुछ ऐसी भद्दी
बात कर देना
जिससे
कहीं ना कहीं
कोई नंगा होता है

और इसी सीढ़ी
पर चढ़ कर
उसे अगली बार
कुर्सी पर
चढ़ना होता है

इसलिये
फिर से सुन लो
थोड़े तुम्हारे
हमारे जैसों
के बौखलाने
से उसके
और उसके
समर्थकों का
हौसला बुलंद
ही होता है

हम्माम
भी उसका
पानी भी
उसका
नहाना
उसमें उसे
और उसके
जैसे लोगों
को ही होता है

उसके कुछ
भद्दे कहे गये
पर बौखलाने
से कहीं भी
कुछ भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

रविवार, 28 जून 2015

नहीं भी हुआ हो तब भी हो गया है हो गया है कह देने से कुछ नहीं होता है

बहुत सारे लोग
कह रहे होते हैं
एक बार नहीं
बार बार
कह रहे होते हैं
तो बीच में
अपनी तरफ से
कुछ भी कहना
नहीं होता है
जो भी कहा
जा रहा होता है
नहीं भी समझ में
आ रहा होता है
तो भी समझ में
अच्छी तरह से
आ रहा है ही
कहना होता है
मान लेना होता है
हर उस बात को
जिसको पढ़ा
लिखा तबका
बिना पढ़े लिखे
को साथ में लेकर
मिलकर जोर शोर
से हर जगह
गली कूँचे
ऊपर से नीचे
जहाँ देखो वहाँ
कह रहा होता है
नहीं भी दिख
रहा होता है
कहीं पर भी
कुछ भी उस
तरह का जिस
तरह होने का
शोर हर तरफ
हो रहा होता है
आने वाला है
कहा गया होता है
कभी भी पहले
कभी को
आ गया है
मान कर
जोर शोर से
आगे को बढ़ाने
के लिये अपने
आगे वाले को
बिना समझे
समझ कर
मान कर उसके
आगे वाले से
कहने कहाने
के लिये बस कह
देना होता है।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

कह दे कुछ भी कभी भी कहीं भी कुछ नहीं होता है

कुछ कहने
के लिये कुछ
करना जरूरी
नहीं होता है
कभी भी
कुछ भी
कहीं भी
कह लेना
एक मजबूरी
होता है
करने और
कहने या
कहने और
करने में
बस थोड़ा सा
अंतर होता है
कहने के बाद
करना जरूरी
नहीं होता है
खामियाजा
छोटा सा ही
बस रहने या
नहीं रहने
के जितना
ही होता है
एक बार
कह देने का
एक मौका
जरूर होता है
दूसरी बार
कहने का
मौका कोई
नहीं देता है
कहने के बाद
मिले मौके को
जो खो देता है
उसके पास
करने का मौका
अगली बार
नहीं होता है
जो दिख रहा
होता है वो ही
सही होता है
समझ ले जो
इसके साथ
इस बार होता है
उसी जैसा कुछ
अगली बार
उसके साथ
होता है
जो कहा है उसे
खुद ही समझ ले
अच्छी तरह
समझने के लिये
अलग से समय
नहीं होता है
कई बार हो
और बार बार हो
उससे पहले
कहे हुऐ
एक बार को
एक ही बार
याद क्यों नहीं
कर लेता है
सपने देखना
सभी चाहते हैं
सपने दिखाने
वाला एक बार
के बाद एक
सपना खुद का
खुद के लिये
हो लेता है
लोकतंत्र का
मंत्र खाली
किताबों में
लिखा नहीं
होता है
पढ़ने के साथ
स्वाहा भी
कहना होता है ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शनिवार, 23 अगस्त 2014

खुद को भी पता कहाँ कुछ भी होता है कहाँ किस समय कौन क्या किस के लिये इस तरह भी कह देता है

यूँ ही कुछ भी
कहीं भी
कहने वाला
नहीं कह देता है
हर किसी की
आदत सब कुछ
हर किसी से
कह देने की भी
नहीं होती है
कुछ कहने के
बारे में किसी से
कुछ पूछ लेना
कहने से पहले भी
बहुत जरूरी
नहीं होता है
फिर भी मन
करता है कह
लेना सब कुछ
सब से चिल्ला
चिल्ला कर
पर कौन कितना
बहरा होता है
देखने से कुछ भी
पता नहीं होता है
सब सामान्य
सा दिखता है
सामने वाला भी
अपने जैसा ही
आम लगता है
किसी का भी
होता होगा आदमी
लेबल लगा कर
कोई भी बेवकूफ
जनता के बीच
खड़ा नहीं होता है
इतना तो पक्का
ही होता है
घाव छोटा हो
या कुछ बड़ा भी
किसी ना किसी
के पास कहीं ना कहीं
जरूर बना होता है
बात उसी की
लेकर कहने के लिये
ही खड़ा होता है
माईक के सामने
शुरु करते ही
सब कुछ भूल कर
अपनी नहीं किसी
बड़ी तूफानी
शैतानी आत्मा
को जामा अच्छाई
का औढ़ा कर
अपनी सोच में
ओहदा भगवान
का दे देता है
अपनी बात किसी
और दिन कहने
के लिये रख कर
सबको पागल
बनाने वाले पागल
को भगवान तक
कह ही देता है
आज सोच बैठा
था ‘उलूक’ भी
कहने की सब कुछ
सब से यहाँ आकर
नहीं कह सका
रोज की तरह
सब को पता है
कुछ नहीं कहता है
बस कुछ कुछ
यूँ ही हमेशा
इसी तरह से
आ आ कर
कहने की सूचना
जरूर दे देता है
कुछ भी कहीं भी
यूँ ही कभी भी
किसी से भी
तो नहीं कह
देना होता है ।
 
   

रविवार, 1 जून 2014

जैसा यहाँ होता है वहाँ कहाँ होता है

कभी कभी
बहुत अच्छा
होता है

जहाँ आपको
पहचानने वाला
कोई नहीं होता है

कुछ देर के
लिये ही सही
बहुत चैन होता है

कोई कहने सुनने
वाला भी नहीं
कोई चकचक
कोई बकबक नहीं

जो मन में
आये करो
कुछ सोचो
कुछ और
लिख दो

शब्दों को
उल्टा करो
सीधा कर
कहीं भी
लगा दो

किसे पता
चल रहा है कि
अंदर कहीं कुछ
और चल रहा है

कोई भी
किसी को
देख भी नहीं
रहा होता है

सच सच
सब कुछ सच
और साफ साफ
बता भी देने से
कोई मान जो
क्या लेता है

वैसे भी
हर जगह
का मौसम
अलग होता है

सब की अपनी
लड़ाईयाँ
सबके अपने
हथियार होते हैं

किसी के दुश्मन
किसी और के
यार होते है

पर जो भी
होता है
यहाँ बहुत
ईमानदारी
से होता है

बेईमानी कर
भी लो थोड़ा
बहुत कुछ अगर
तब भी किसी को
कुछ नहीं होता है

सबको जो भी
कहना होता है
अपने लिये
कहना होता है

अपना कहना
अपने लिये
उसी तरह से

जैसे
अपना खाना
अपना पीना
होता है ।