उलूक टाइम्स: लम्बाई
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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

ना इसका हूँ ना उसका हूँ क्या करूं इधर भी हूँ उधर भी रहना ही रहना है


मत नाप
लिखे हुऐ वाक्यों की लम्बाई को 
पैमाना हाथ में लेकर अपने 
कुछ भी तो कहीं भी नहीं होना है 

दो इंच बड़ा भी हो जाये
या तीन इंच आगे या पीछे से कहीं 
कम भी अगर
कहीं किसी बात को होना है 

इधर का इधर और उधर का उधर
बस बहस के लिये 
कैमरे के सामने बैठ कर दिखाने सुनाने का रोना है 

नहीं समझेगा फिर भी 
पता है तुझे
तेरे अपने फटे में खुद ही हाथ डाल कर 
सोचना अपने ही खेलने के लिये कोई खिलौना है 

लिख कुछ बोल कुछ दिखा कुछ बता कुछ 
छपा कुछ दे कुछ दिला कुछ 
पता किसी को कुछ भी नहीं होना है 

काले कोयले का धुआँ सफेद राख सफेद 
बचा कहीं उसके बाद कहीं कुछ नहीं होना है 

लगा रह
देखने में कुछ कलाबाजी कुछ कलाकारी 
दिखना
सब सफेद है साफ सुथरा 
कुछ दिनो के बाद
कौन सा किस को कहाँ उसी जगह पर 
लम्बे समय तक
खसौटे गये को दिखने दिखाने के लिये रहना है 

‘उलूक’ की आदत है 
उसको भी कुछ भी कभी भी कहीं भी 
कहने के लिये ही बस कुछ कहना है । 

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

शनिवार, 8 सितंबर 2012

बात की लम्बाई

कभी
लगता है
बात
बहुत लम्बी
हो जाती है

क्यों नहीं
हाईकू
या हाईगा
के द्वारा
कही जाती है

घटना
का घटना
लम्बा
हो जाता है

नायक
नायिका
खलनायक
भी उसमें
आ जाता है

उसको
पूरा बताने
के लिये
पहले खुद
समझा जाता है

जब
लगता है
आ गई
समझ में
कागज
कलम दवात
काम में आता है

सबसे
मुश्किल काम
अगले को
समझाना
हो जाता है

कहानी
तो लिखते
लिखते
रेल की
पटरी में
दौड़ती
चली जाती है

ज्यादा
हो गयी
तो हवाई
जहाज भी
हो जाती है

समझ
में तो
अपने जैसे
दो चार
के ही
आ पाती है

उस समय
निराशा
अगर
हो जाती है

तुलसीदास जी
की बहुत
याद आती है

समस्या
तुरंत हल
हो जाती है

उनकी
लिखी हुई
कहानी
भी तो
बहुत लम्बी
चली जाती है

आज नहीं
सालों पूर्व
लिखी जाती है

अभी तक
जिन्दा भी
नजर आती है

उस किताब
को भी
बहुत कम
लोग पढ़
पाते है

पढ़ भी
लेते है
कुछ लोग
पर
समझ
फिर भी
कहाँ पाते हैं ।