कोई नई बात नहीं कही गई है
कोई गीत गजल कविता भी नहीं बनी है
बहुत जगह एक ही चीज बने
वो भी ठीक जैसा तो नहीं है
इसलिये हमेशा कोशिश की गई है
सारी अच्छी और सुन्दर बातें
खुश्बू वाले फूलों के लिये
कहने सुनने के लिये रख दी गई हैं
अपने बातों के कट्टे में
सीमेंट रेते रोढ़ी की जैसी कहानियाँ
कुछ सँभाल कर रख दी गई हैं
बहुत सारी
इतनी सारी जैसे आसमान के तारों की
एक आकाशगंगा ही हो गई है
खत्म नहीं होने वाली हैं
एक के निकलते पता चल जाता है
कहीं ना कहीं तीन चार और
तैयार होने के लिये चली गई हैं
रोज रोज दिखती है एक सी शक्लें अपने आस पास
वाकई में बहुत बोरियत सी अब हो गई है
बहुत खूबसूरत है ये आभासी दुनियाँ
इससे तो अब मोहब्बत सी कुछ हो गई है
बहुत से आदमियों के जमघट के बीच में
अपनी ही पहचान जैसे कुछ कहीं खो गई है
हर कोई बेचना चाहता है कुछ नया
अपने कबाड़ की भी कहीं तो अब खपत
लगता है हो ही गई है ।