उलूक टाइम्स: खानसामा
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मंगलवार, 28 जनवरी 2014

क्या किया जाये अगर कोई कुछ भी नहीं बताता है


चलिये

आज
आप 
से ही
पूछ लेते हैं 

कुछ
लिखा जाये 
या
रहने दिया जाये 

रोज लिख लेते हैं 
अपने मन से
कुछ भी 

पूछते भी नहीं 

फिर
आज कुछ 
अलग सा
क्यों 
ना
कर लिया जाये 

अपना लिखना 
अपना पढ़ना 
अपना समझना 
सभी करते हैं 

कौन
किसी से 
पूछ कर लिखता है 

चलिये
कुछ 
नया कर लेते हैं 

आप बताइये 
किस पर लिखा जाये 
क्या
लिखा जाये 
कैसे
लिखा जाये 

जैसे
खाना पकाना 
सब का
अलग 
अलग
होता है 

एक
जैसा भी 
होने से कुछ 
नहीं होता है 

बैगन की
सब्जी 
ही होती है 

एक
बनाता है 
तो
कद्दू
का 
स्वाद होता है 

दूसरे
के बनाने पर 
पूछना
पड़ जाता है 
बैगन
जैसा कुछ 
लग रहा है 

हमारे
शहर के 
पाँच सितारा होटल 
का
एक बहुत
प्रसिद्ध 
खानसामा
इसी तरह 
का
बनाता है 

अरे
परेशान होने 
को
यहाँ कोई भी 
नहीं आता है 

सबको पता होता है 
सब कुछ हमेशा 

कोई
अनपढ़ 
सुना है

क्या 
कहीं कमप्यूटर 
भी चलाता है 


ये तो बस कुछ 
देर का शगल है 

नये जमाने के 
नये लोगों का 

क्या
यहाँ कोई 
किसी बंदर के 
हाथ में अदरख 
है या नहीं 
देखने आता है 

एक जमाने में 
डायरी हुआ करती थी 

कोई
नहीं परेशान 
होता था
इस बात से 
शाम होते ही 
लिखने वाला

अपनी 
दिन भर की कमाई 
सब से छुपा कर 
किस किताब के 
किस पन्ने में 
जमा कर जाता है 

आज
बस रूप 
बदल गया पन्ने का 
आदमी
उसकी पतंग 
बना कर भी 
अगर
उड़ाता है 

कोई
उस पतंग की 
उड़ान को देखने के 
लिये नहीं आता है 

कटी
पतंगें होती है 
कुछ कुछ 
पतंग बाजों की 
उनका आना एक 
मजबूरी उनकी 
हो जाता है 

ये
शक की बीमारी भी 
बहुत बर्बादी ले 
कर आती है 

वो
बस ये देखने 
के लिये आता है 

कहीं
कोई उसकी 
पतंग उड़ाने तो 
नहीं आता जाता है 

बहुत देर से 
पूछ रहा था “उलूक” 
क्या करना है 

नहीं मिला
कोई जवाब 
बाद में मत कहना 
जो मन में आये 
यहाँ लिख लिखा कर 
चला जाता है ।