गुपचुप गुपचुप गुमसुम गुमसुम
अंधेरे में खड़ी हुई तुम
अलसाई सी घबराई सी
थोड़ा थोड़ा मुरझाई सी
बोझिल आँखे पीला चेहरा
लगा हुवा हो जैसे पहरा
सूरज निकला प्रातः हुवी जब
आँखों आँखों बात हुवी तब
तब तुम निकली ली अंगड़ाई
आँखो में फिर लाली छाई
चेहरा बदला मोहरा बदला
घबराहट का नाम नहीं था
चोली दामन साँथ नहीं था
हँस कर पूछा क्या आओगे
दिन मेरे साथ बिताओगे
अब साया मेरी मजबूरी थी
ड्यूटी बारह घंटे की पूरी थी
पूरे दिन अपने से भागा
साया देख देख कर जागा
सूरज डूबा सांझ हुवी जब
कानो कानो बात हुवी तब
तुम से पूछा क्या आओगे
संग मेरे रात बिताओगे
सूरज देखो डूब गया है
साया मेरा छूट गया है
बारह घंटे बचे हुए हैं
आयेगा फिर से वो सूरज
साया मेरा जी जायेगा
तुम जाओगे सब जायेगा
अब यूँ ही मैं घबरा जाउंगा
गुपचुप गुपचुप गुमसुम गुमसुम
अपने में ही उलझ पडूंगा ।