अपनी इच्छा से
नहीं कर लेना चाहता है
बिजली गुल
कोई कभी बहुत देर के लिये
पर बिजली आदमी तो नहीं होती है
फिर भी हो जाती है बंद भी कभी कभी
दूर बहुत दूर तक अंधेरा ही अंधेरा
जैसे थम सी जाती हो जिंदगी
फिर जलते हैं दिये और मोमबत्ती
जिनकी रोशनी में कर्कश शोर नहीं होता है
जो देता है बस एक सुकून सा
बारिश के बाद का आसमान धुला धुला सा
रात को भी काला नहीं
आसमानी हो उठता है
बहुत साफ नजर आते हैं तारे
जैसे पहचान के कुछ लोग
मिल उठे हों
एक बहुत लम्बी सी जुदाई के बाद
टिमटिमाते हुऐ जैसे पूछते भी हों
हाल दिल का
इच्छा भी उठती है कहीं से बहुत तीव्र
देख लेने की और सोच लेने की
कुछ देर के लिये ही सही
तारों की बस्ती में
ढूँढ रहा हो कोई अपना ही अक्स
कुछ ही क्षण में
हो जाता है जैसे आत्मावलोकन
साफ पानी में जैसे दिखा रहा हो
सब शीशे की तरह
तेज भागती हुई जिंदगी का सच
कुछ देर का विराम
बता देता है असलियत
खोल देता है कुछ बंद खिड़कियाँ
जिनकी तरफ देखने की भी फुरसत
नहीं होती है दौड़ते हुऐ दिनों में
और बहना महसूस होता है
कुछ ठंडी सोच का
कुछ रुक रुक कर ही सही
बहुत आगे बढ़ जाने के बाद
ऐसे ही समय महसूस होता है
अच्छा होता है कभी कभी यूँ ही लौट लेना
बहुत और बहुत पीछे की ओर भी
जहाँ से चलना शुरु हुऐ थे हम कभी
पर ऐसा होता नहीं है
बिजली रोज आती है जाती बहुत कम है
बहुत कम कभी कभी बहुत दिनो के लिये ।