उलूक टाइम्स: बिजली
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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

खुजली कौन लिखता है सब बिजली लिखते हैं फिर भी नया साल मुबारक


खुजली
सब को होती है
लिखते
सब नहीं हैं

बिजली
सब लिखना चाहते हैं
वो भी
चार सौ चालीस वोल्ट की

झटके
सबको लगते हैं
दिखाते नहीं हैं
बस

बताते जरूर हैं
झटके
लगते हैं जोर के
सामने वाले को
कुछ भी
धीरे से कहने के बाद 

बंद होने
के कगार पर
लिखना लिखाना चला जाये
बुरी बात
नहीं होती है

कौन सा
बकवास को लिखना पढना
मान लेने वाले
विद्वानों की गिनती करनी है

एक दो
निकल भी गये तो
सिद्ध करवा दिया जा सकता है 
निरे बेवकूफ हैं

आध्यात्मिक लिखा हुआ
पढते समय
लेखक खुजलाता हुआ
सोच मे आ जाये
कौन सी बुरी बात है

होता है
होता रहेगा
जो लिखा दिखता है सामने
वो किसी एक घर पर
रोने वाले ने लिखा है

महीना डेढ़ से बंद लिखना
नहीं बता पाता है
लिखने वाला
कितना कितना खुजलाता है

अब
खुजलाना भी
बहुत बड़ा हो गया है
समझा और माना जाता है
जब लिखने वाला
लिखने ही नहीं आ पाता है

एक हाथ से लिखना
और दूसरे से
खुजला लेने की
महारत भी पायी जाती है
पर ना तो दिखाई जाती है
ना ही बताई जाती है

कोई बात नहीं
लिखना भी
जारी रहना जरूरी है
और खुजली को
खुजलाना भी जरूरी है

खुजलाइये प्रेम से
एक हाथ से
और लिखने भी आ जाइये
दूसरे हाथ से

‘उलूक’
ठीक बात नहीं है
खुजलाने के चक्कर में
लिख जाना भूल जाना

नया साल
नयी खुजलियाँ लाये
नयी विधियाँ पैदा की जायें 
 खुजली हो भी
और खुजली पर
कुछ लिख दिया जाये

खुजली जिंदाबाद
लिखना रहे आबाद

इसी तरह
फिर एक नये साल का हो
खुजलाता हुआ आगाज।

चित्र साभार: 
https://www.clipartmax.com/

सोमवार, 20 जनवरी 2014

अच्छा होता है कभी कभी बिजली का लम्बा गुल हो जाना

अपनी इच्छा से
नहीं कर लेना चाहता है
बिजली गुल
कोई कभी बहुत देर के लिये

पर बिजली आदमी तो नहीं होती है
फिर भी हो जाती है बंद भी कभी कभी

दूर बहुत दूर तक अंधेरा ही अंधेरा
जैसे थम सी जाती हो जिंदगी
फिर जलते हैं दिये और मोमबत्ती
जिनकी रोशनी में कर्कश शोर नहीं होता है

जो देता है बस एक सुकून सा

बारिश के बाद का आसमान धुला धुला सा
रात को भी काला नहीं
आसमानी हो उठता है
बहुत साफ नजर आते हैं तारे

जैसे पहचान के कुछ लोग
मिल उठे हों
एक बहुत लम्बी सी जुदाई के बाद

टिमटिमाते हुऐ जैसे पूछते भी हों
हाल दिल का

इच्छा भी उठती है कहीं से बहुत तीव्र
देख लेने की और सोच लेने की

कुछ देर के लिये ही सही
तारों की बस्ती में
ढूँढ रहा हो कोई अपना ही अक्स

कुछ ही क्षण में
हो जाता है जैसे आत्मावलोकन

साफ पानी में जैसे दिखा रहा हो
सब शीशे की तरह
तेज भागती हुई  जिंदगी का सच

कुछ देर का विराम
बता देता है असलियत
खोल देता है कुछ बंद खिड़कियाँ

जिनकी तरफ देखने की भी फुरसत
नहीं होती है दौड़ते हुऐ दिनों में

और बहना महसूस होता है
कुछ ठंडी सोच का

कुछ रुक रुक कर ही सही
बहुत आगे बढ़ जाने के बाद

ऐसे ही समय महसूस होता है
अच्छा होता है कभी कभी यूँ ही लौट लेना
बहुत और बहुत पीछे की ओर भी
जहाँ से चलना शुरु हुऐ थे हम कभी

पर ऐसा होता नहीं है
बिजली रोज आती है जाती बहुत कम है
बहुत कम कभी कभी बहुत दिनो के लिये ।

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

आज कुत्ते का ही दिन है समझ में आ रहा था

सियार को
खेत से
निकलता
हुआ देखते ही

घरेलू कुत्ता
होश खो बैठा

जैसे
थोड़ा नहीं
पूरा ही
पागल हो गया

भौंकना शुरु
हुआ और
भौंकता ही
चला गया

बहुत देर तक
इंतजार किया
कहीं कुछ
नहीं हुआ

इधर बाहर
से किसी
ने आवाज
लगाई

सुनकर
श्रीमती जी
रसोई से ही
चिल्लाई

देख भी दो
बाहर कोई
बुला रहा है

कितनी देर से
बाबू जी बाबू जी
चिल्ला रहा है

उधर बंदरों
की टोली
ने लड़ना
शुरु किया
एक के
बाद दूसरे ने
खौं खौं
चीं चीं पीं पीं
करना शुरु किया

छत से पेड़ पर
पेड़ से छत पर
एक दूसरे
के पीछे
लड़ते मरते
कूदते फाँदते
भागना शुरु किया

उसी समय
बिजली ने
बाय बाय
कर अंधेरा
करते हुऐ
एक और
झटका दे दिया

इंवर्टर
चला कर
वापस
लौटा ही था
फोन तुरंत
घनघना उठा

बगल के
घर से ही
कोई बोल
रहा था
दो कदम
चलने से भी
परहेज कर
रहा था

टेलीफोन
डायरेक्टरी
देख किसी
का नम्बर
बताने को
बोल रहा था

झुंझुलाहट
शुरु हो
चुकी थी
मन ही मन
खीजना
मुँह के अंदर
बड़बड़ाने को
उकसा चुका था

बीस मिनट
दिमाग खपाने
के बाद भी
माँगे गये
नंबर का
अता पता
नहीं था

फोन पर
माफी मांग
थोड़ा चैन से
बैठा ही था

इंवर्टर ने
लाल बत्ती
जला कर
बैटरी डिसचार्ज
होने का
ऐलार्म बजाना
शुरु कर दिया था

कुत्ता अभी भी
पूरे जोश से
गला फाड़ कर
भौंके जा रहा था

श्रीमती जी
का
सुन्दर काण्ड
पढ़ना शुरु
हो चुका था

घंटी
बीच बीच में
कोई बजा
ले रहा था

लिखना शुरु
करते ही
जैसे पूरा
हो जा रहा था

आज इतने
में ही
सब कुछ
जैसे कह दिया
जा रहा था

बाकी सोचने
के लिये
कौन सा
कल फिर
नहीं आ
रहा था

कुत्ता
अभी भी
बिल्कुल
नहीं थका था

उसी अंदाज
में भौंकता
ही चला
जा रहा था ।