बहुत
बेचैनी है तुझे
कभी कभी
समझ से
बाहर
हो जाती है
अपनी अपनी
सबकी
हैसियत होती है
दिखानी भी
बहुत जरूरी
हो जाती है
जरूरत की
होती हैं चीजें
तभी
उधार लेकर भी
खरीदी जाती हैं
कौन सा
देना होता है
किसी को
एक साथ
वापस
कुछ किश्तें
ही तो बांध
दी जाती हैं
गर्व की
बात हो जाये
कोई चीज
किसी के लिये
ऐसे वैसे ही
बिना जेब
ढीली किये
तो नहीं
हो जाती है
जब
जा रही हो
बहुत ही
दूर कहीं
पगड़ी
देश की
क्या
होना है
रास्ते में
थोड़ा सा
सर से नीचे
अगर खिसक
भी जाती है
लाख करोड़
की
कई थैलियां
यूं ही
इधर से उधर
हो जाती हैं
ध्यान भी
नहीं देता कोई
ऐसे समाचारों पर
जब
रोज ही
आना इनका
आम सी बात
हो जाती है
महान है
गाय तक
जहां की
करोड़ों की
घास खा जाती है
तीसरी कक्षा
तक पहुंचने
के बाद ही तो
लड़खड़ाया है
वो भी
थोड़ा सा
की खबर
देश की
धड़कन को
अगर
कुछ बढ़ाती है
तेरा
कौन सा
क्या
चला जाने
वाला है
इस पर
यही बात
उलूक के
बिल्कुल भी
समझ में
नहीं आती है ।
बेचैनी है तुझे
कभी कभी
समझ से
बाहर
हो जाती है
अपनी अपनी
सबकी
हैसियत होती है
दिखानी भी
बहुत जरूरी
हो जाती है
जरूरत की
होती हैं चीजें
तभी
उधार लेकर भी
खरीदी जाती हैं
कौन सा
देना होता है
किसी को
एक साथ
वापस
कुछ किश्तें
ही तो बांध
दी जाती हैं
गर्व की
बात हो जाये
कोई चीज
किसी के लिये
ऐसे वैसे ही
बिना जेब
ढीली किये
तो नहीं
हो जाती है
जब
जा रही हो
बहुत ही
दूर कहीं
पगड़ी
देश की
क्या
होना है
रास्ते में
थोड़ा सा
सर से नीचे
अगर खिसक
भी जाती है
लाख करोड़
की
कई थैलियां
यूं ही
इधर से उधर
हो जाती हैं
ध्यान भी
नहीं देता कोई
ऐसे समाचारों पर
जब
रोज ही
आना इनका
आम सी बात
हो जाती है
महान है
गाय तक
जहां की
करोड़ों की
घास खा जाती है
तीसरी कक्षा
तक पहुंचने
के बाद ही तो
लड़खड़ाया है
वो भी
थोड़ा सा
की खबर
देश की
धड़कन को
अगर
कुछ बढ़ाती है
तेरा
कौन सा
क्या
चला जाने
वाला है
इस पर
यही बात
उलूक के
बिल्कुल भी
समझ में
नहीं आती है ।