अरे
सब तो
लिख रहे हैं
लिख रहे हैं
कुछ ना कुछ
मेरे लिखे से क्या परेशानी है
मैं तो
कब से
लिख रहा हूँ
मुझे खुद पता नहीं है
मेरे लिखे लिखाये में कितना पानी है
मेरे
लिखने से
किसलिये परेशान हैं
आपके लिये
उठाने वाले कलम
गिन लीजियेगा हजूर
हर
डेढ़ शख्स
फिदा है आप पर
बाकी आधा
है या नहीं भी किसलिये सोचना है
है या नहीं भी किसलिये सोचना है
लिख दीजियेगा
आँकड़े की कोई बेईमानी है
मेरा लिखना
मेरा देखना
मेरी अपनी बीमारी है
अल्लाह करे
किसी को ना फैले
ये कोरोना नहीं रूमानी है
सब
देख कर लिखते हैं
फूल खिले अपने आसपास के
देख कर लिखते हैं
फूल खिले अपने आसपास के
झाड़ पर
लिखने की
मेरे जैसे खड़ूस ने खुद ही ठानी है
लिखने की
मेरे जैसे खड़ूस ने खुद ही ठानी है
सब अमन चैन तो है
सुबह के अखबार क्यों नहीं देखता है
कहाँ भुखमरी है
कहाँ गरीबी है कहाँ कोई बैचेन है
तेरे शहर की
हर हो रही गलत बात पर
नजर डालने वाला
जरूर
कोई चीनी है
या पाकिस्तानी है
पता नहीं
क्या सोचता है
क्या लिखता है
पागलों के शहर का एक पागल
काँग्रेस और भाजपा तो
आनीजानी है
शहर
पागल नहीं है
हवा पानी में
कुछ मिला कर रखा है किसी ने
ना कहना
कितनी बेईमानी है
कत्ल से लेकर
आबरू लूटने की भी
नहीं छपी
इस शहर की कई कहानी है
कोई
कुछ नहीं
कहता है यहाँ ‘उलूक’
यही तो
एक अच्छे शहर की निशानी है ।
चित्र साभार: https://nohawox.initiativeblog.com/
कुछ नहीं
कहता है यहाँ ‘उलूक’
यही तो
एक अच्छे शहर की निशानी है ।
चित्र साभार: https://nohawox.initiativeblog.com/