रोज जब चोरों से सामना होता है
अलीबाबा तुम बहुत याद आते हो
सारे चोर खुश नजर आते हैं
जब भी चोर चोर खेल रहे होते हैं
और जोर जोर से चोर चोर चिल्लाते हैं
चोर अब चालीस ही नहीं होते हैं
मरजीना अब नाचती भी नहीं है
अशर्फियाँ तोलने के तराजू
और अशर्फियाँ भी अब नहीं होते हैं
खुल जा सिमसिम अभी भी कह रहे हैं लोग
खड़े हैं चट्टानों के सामने से
इंतजार में खुलने के किसी दरवाजे के
अलीबाबा बस एक तुम हो
कि दिखाई ही नहीं देते हो
आ भी जाओ
इससे पहले हर कोई
इससे पहले हर कोई
निशान लगाने लगे दरवाजे दरवाजे
इस देश में
और पैदा होना शुरु हों गलतफहमियाँ
लुटने शुरु हों घर घर में ही घर घर के लोग
डर अंदर के फैलने लगें बाहर की तरफ
मिट्टी घास और पेड़
पानी बादल और काले सफेद धुऐं में भी
रहम करो
ले आओ कुछ ऐसा जो ले पाये जगह
खुल जा सिमसिम की
और पिघलना शुरु हो जायें चट्टाने
बहने लगे वो सब
जो मिटा दे सारे निशान और पहचान
सारी कायनात एक हो जाये
और समा जाये सब कुछ कुछ कुछ ही में
आ भी जाओ अलीबाबा
इस से पहले कि देर हो जाये
और ‘उलूक’ को नींद आ जाये
एक नये सूरज उगने के समय ।
चित्र साभार: www.bpiindia.com