तैयार
हो जाइये
खबर आई है
अलीबाबा की
मेहनत रंग लायी है
गुफा
खुल गयी है
अशर्फियाँ
दिखने लगी हैं
मतलब मिल गयी हैं
चालीस
चोरों का
पता नहीं
चल पा रहा है
खबर के
चलने के
बाद से ही
उनका
सरदार भी
मुँह छुपा रहा है
जल्दी ही
तराजुओं की
दुकानें खुलना
शुरु हो जायेंगी
तली में
गोंद लगाने की
जरूरत नहीं पड़ेगी
अशर्फियाँ
खुद ही आ आ
कर चिपक जायेंगी
मरजीना के
खुद के नाचने
का जमाना
अब रहा नहीं
इशारे
भर से उसके
नाचने
वालोंं की
लम्बी लाईनें
अपने आप
लगना शुरु
हो जायेंगी
बस
जरूरत है
महसूस करने की
एक
छोटी सी
गुफा को
खोल ले जाने के
छोटे छोटे
खुल जा सिम सिम को
यही मंत्र है
यही तंत्र है
हर बार
यही वाली सिम
सिम सिम की
काम में आयेंगी
जरूरत है
समझने की
ऐसी ही
छोटी छोटी गुफाएं
किस तरह बस
कुछ ही बचे महीनों में
बड़ी एक गुफा के
दरवाजे तक
पूरे देश को ले जायेंगी
फिर शुरु होगा
अलीबाबा का खेल
फिर से
सिम सिम
कहते ही
अशर्फियाँ दिखना
शुरु हो जायेंगी
लोग
करना शुरु
हो जायेंगे साफ
अपने अपने तराजू
अशर्फियों
के सपने
पुराने सालों के
फिर से हरे
हो जायेंगे
ढोल नगाड़े
पठाखे के
शोर के बीच
‘उलूक’
सोचना
शुरु कर देगा
कुछ नयी
बकवासों
के शीर्षक
अगले
पाँच सालों में
शायद उसकी
बकवासों की
घड़ी की सुई
क्या पता
उसके लिये
पच्चीस छब्बीस
सताईस बजाना
शुरु हो जायेगी।
चित्र साभार: http://www.ssdsnassau.org
हो जाइये
खबर आई है
अलीबाबा की
मेहनत रंग लायी है
गुफा
खुल गयी है
अशर्फियाँ
दिखने लगी हैं
मतलब मिल गयी हैं
चालीस
चोरों का
पता नहीं
चल पा रहा है
खबर के
चलने के
बाद से ही
उनका
सरदार भी
मुँह छुपा रहा है
जल्दी ही
तराजुओं की
दुकानें खुलना
शुरु हो जायेंगी
तली में
गोंद लगाने की
जरूरत नहीं पड़ेगी
अशर्फियाँ
खुद ही आ आ
कर चिपक जायेंगी
मरजीना के
खुद के नाचने
का जमाना
अब रहा नहीं
इशारे
भर से उसके
नाचने
वालोंं की
लम्बी लाईनें
अपने आप
लगना शुरु
हो जायेंगी
बस
जरूरत है
महसूस करने की
एक
छोटी सी
गुफा को
खोल ले जाने के
छोटे छोटे
खुल जा सिम सिम को
यही मंत्र है
यही तंत्र है
हर बार
यही वाली सिम
सिम सिम की
काम में आयेंगी
जरूरत है
समझने की
ऐसी ही
छोटी छोटी गुफाएं
किस तरह बस
कुछ ही बचे महीनों में
बड़ी एक गुफा के
दरवाजे तक
पूरे देश को ले जायेंगी
फिर शुरु होगा
अलीबाबा का खेल
फिर से
सिम सिम
कहते ही
अशर्फियाँ दिखना
शुरु हो जायेंगी
लोग
करना शुरु
हो जायेंगे साफ
अपने अपने तराजू
अशर्फियों
के सपने
पुराने सालों के
फिर से हरे
हो जायेंगे
ढोल नगाड़े
पठाखे के
शोर के बीच
‘उलूक’
सोचना
शुरु कर देगा
कुछ नयी
बकवासों
के शीर्षक
अगले
पाँच सालों में
शायद उसकी
बकवासों की
घड़ी की सुई
क्या पता
उसके लिये
पच्चीस छब्बीस
सताईस बजाना
शुरु हो जायेगी।
चित्र साभार: http://www.ssdsnassau.org