उलूक टाइम्स: चौदहवाँ
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रविवार, 9 नवंबर 2014

हैप्पी बर्थ डे उत्तराखंड

अब एक
चौदह बरस
के बच्चे से
क्यों उम्मींदे
अभी से
लगा रहे हो

सपने बुनने
के लिये
कोई सीकें
सलाई की
जरूरत तो
होती नहीं है
इफरात से
बिना रात हुऐ
बिना नींद आये
सपने पकौड़ियों
की तरह पकाये
जा रहे हो

कुछ बालक की
भी सोचो जरा
चौदह साल में
कितने बार
पिताजी बदलते
जा रहे हो
बढ़ने क्यों
नहीं देते हो
पढ़ने क्यों
नहीं देते हो
एक नन्हें बालक
को आदमी
क्यों नहीं कुछ
जिम्मेदार जैसा
होने देते हो

सारे बंजर
पहाड़ों के
खुरदुरे सपने
उसके लिये
अभी से
बिछा रहे हो
माना कि
चौदहवाँ
जन्मदिन है
मनाना
भी चाहिये
कुछ केक सेक
काट कर
जनता में
क्यों नहीं
बटवा रहे हो

अच्छे दिन
आयेंगे के
सपने देख
दिये तुमने
जन्म लेते
ही बच्चे के
इस बात का
कसूरवार
कितनो को
ठहरा रहे हो

घर छोड़
छा‌‌ड़ कर
पलायन करने
के लिये किसी
ने नहीं
कहा तुमसे
अपनी मर्जी से
भाग रहे हो
नाम बेचारी
सरकारों का
लगा रहे हो

समुद्र मंथन में
निकली थी सुरा
किस जमाने में
पहुँचा भी दी
जा रही है
दुर्गम से दुर्गम
स्थानों में
आभार जताने
के बजाये
सुगम दुर्गम के
बेसुरे गाने
गाये जा रहे हो

अभी अभी तो
पर्दा उठा है
नाटक का
मंचन होने से
पहले ही बिना
देखे सुने
भाग जा
रहे हो

मान लो
एक छोटा
सा राज्य है
आपका
और हमारा
ये भाग्य है
खुश होना
चाहिये
आज के दिन
कम से कम
रोना धोना
छोड़ कर
जय हो
उत्तराखंड
देवों की भूमि
की जय हो
के नारे
हम जैसे
यहाँ बसे
सारे असुरों
के साथ
मिल कर
क्यों नहीं
लगा रहे हो ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

धीरे से लाईन के अंदर चले जाना बस वहीं का रहता है मौसम आशिकाना

साल भी चौदहवां
दिन भी चौदहवा
दसवीं बार आ गया
फिर इस बार
दो बार और आयेगा
अब चौदहवाँ महीना
तो होता नहीं है जो
चौदाह चौदाह चौदाह
भी हो जायेगा
दिमाग लगाने की
जरूरत नहीं है
इस सब में
ये तो बस बात
शुरु करने को एक
शगूफा छोड़ना है
और जो दिमाग है
बस आज वही कुछ
यहाँ नहीं कहना है
इसलिये ऐसा
कह दिया है
नहीं तो कहने को
वैसे भी बहुत
कुछ होता है
भिखारी की फटी
झोली में तक
फिर भी कौन
नजर डालता है
अंदर कुछ नहीं
भी होता है और
बहुत कुछ
होता भी है
सड़क में लाईन
के पीछे या आगे
या बीच में कहीं भी
रहने की आदत
नहीं होने से
यही सब होता है
सब के लिये
सब कुछ सही
होते हुऐ भी
लाईन से बाहर
सड़क के किनारे से
दूर चलने वाले
की तरह काम की
बातें छूट जाती हैं
बाहर से बहुत सी
चीजें नजर आना
शुरु हो जाती हैं
अभी भी सुधर जा
सब की तरह
किसी भी बात को
बुरा मत बता
वो सब जो
हो रहा होता है
सही हो रहा होता है
क्योंकि वो
हो रहा होता है
चैन से चैन लिखने
की भी सोच
बैचेन आत्मा की
तरह खुद को मत नोच
लाईन में चला जा
कहीं से भी
कभी भी
हाँ में हाँ मिला
गाना गा पर
बस झूम बराबर
झूम तक ही
ये नहीं कि
शराबी भी हो जा
चल अब सुधर जा
सड़क होती है
चलने के लिये
किनारे के मोह से
बाहर निकल आ
लिखने को कोई
 मना नहीं कर रहा है
अंदर जा कर देख
लाईन वाला
हर कोई तेरे से
बहुत अच्छा
लिख रहा है ।

चित्र साभार: http://www.clipartof.com/