साल भी चौदहवां
दिन भी चौदहवा
दसवीं बार आ गया
फिर इस बार
दो बार और आयेगा
अब चौदहवाँ महीना
तो होता नहीं है जो
चौदाह चौदाह चौदाह
भी हो जायेगा
दिमाग लगाने की
जरूरत नहीं है
इस सब में
ये तो बस बात
शुरु करने को एक
शगूफा छोड़ना है
और जो दिमाग है
बस आज वही कुछ
यहाँ नहीं कहना है
इसलिये ऐसा
कह दिया है
नहीं तो कहने को
वैसे भी बहुत
कुछ होता है
भिखारी की फटी
झोली में तक
फिर भी कौन
नजर डालता है
अंदर कुछ नहीं
भी होता है और
बहुत कुछ
होता भी है
सड़क में लाईन
के पीछे या आगे
या बीच में कहीं भी
रहने की आदत
नहीं होने से
यही सब होता है
सब के लिये
सब कुछ सही
होते हुऐ भी
लाईन से बाहर
सड़क के किनारे से
दूर चलने वाले
की तरह काम की
बातें छूट जाती हैं
बाहर से बहुत सी
चीजें नजर आना
शुरु हो जाती हैं
अभी भी सुधर जा
सब की तरह
किसी भी बात को
बुरा मत बता
वो सब जो
हो रहा होता है
सही हो रहा होता है
क्योंकि वो
हो रहा होता है
चैन से चैन लिखने
की भी सोच
बैचेन आत्मा की
तरह खुद को मत नोच
लाईन में चला जा
कहीं से भी
कभी भी
हाँ में हाँ मिला
गाना गा पर
बस झूम बराबर
झूम तक ही
ये नहीं कि
शराबी भी हो जा
चल अब सुधर जा
सड़क होती है
चलने के लिये
किनारे के मोह से
बाहर निकल आ
लिखने को कोई
मना नहीं कर रहा है
अंदर जा कर देख
लाईन वाला
हर कोई तेरे से
बहुत अच्छा
लिख रहा है ।
चित्र साभार: http://www.clipartof.com/
दिन भी चौदहवा
दसवीं बार आ गया
फिर इस बार
दो बार और आयेगा
अब चौदहवाँ महीना
तो होता नहीं है जो
चौदाह चौदाह चौदाह
भी हो जायेगा
दिमाग लगाने की
जरूरत नहीं है
इस सब में
ये तो बस बात
शुरु करने को एक
शगूफा छोड़ना है
और जो दिमाग है
बस आज वही कुछ
यहाँ नहीं कहना है
इसलिये ऐसा
कह दिया है
नहीं तो कहने को
वैसे भी बहुत
कुछ होता है
भिखारी की फटी
झोली में तक
फिर भी कौन
नजर डालता है
अंदर कुछ नहीं
भी होता है और
बहुत कुछ
होता भी है
सड़क में लाईन
के पीछे या आगे
या बीच में कहीं भी
रहने की आदत
नहीं होने से
यही सब होता है
सब के लिये
सब कुछ सही
होते हुऐ भी
लाईन से बाहर
सड़क के किनारे से
दूर चलने वाले
की तरह काम की
बातें छूट जाती हैं
बाहर से बहुत सी
चीजें नजर आना
शुरु हो जाती हैं
अभी भी सुधर जा
सब की तरह
किसी भी बात को
बुरा मत बता
वो सब जो
हो रहा होता है
सही हो रहा होता है
क्योंकि वो
हो रहा होता है
चैन से चैन लिखने
की भी सोच
बैचेन आत्मा की
तरह खुद को मत नोच
लाईन में चला जा
कहीं से भी
कभी भी
हाँ में हाँ मिला
गाना गा पर
बस झूम बराबर
झूम तक ही
ये नहीं कि
शराबी भी हो जा
चल अब सुधर जा
सड़क होती है
चलने के लिये
किनारे के मोह से
बाहर निकल आ
लिखने को कोई
मना नहीं कर रहा है
अंदर जा कर देख
लाईन वाला
हर कोई तेरे से
बहुत अच्छा
लिख रहा है ।
चित्र साभार: http://www.clipartof.com/
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार 15 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआजकल शुगुफा छोड़ना और फैदा उठाना सब चाहते हैं -सुन्दर
जवाब देंहटाएंखुदा है कहाँ ?
कार्ला की गुफाएं और अशोक स्तम्भ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (16-10-2014) को "जब दीप झिलमिलाते हैं" (चर्चा मंच 1768) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut hi adbhut prastuti :)
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