कुछ लोग
भगवान
नहीं होते हैं
बस उनका
होना ही
काफी होता है
किसी को भी
अपने बारे में
उतना पता
नहीं होता है
जितना
कुछ लोगों को
सारे लोगों
के बारे में
पता होता है
रात के देखे
सभी सपने
सुबह होने होने
तक बहुत ही
कम याद रहते हैं
बिना धुले
साबुन के
मटमैले कपड़े
जैसे ही धुँधले
हो चुके होते हैं
उन सारे
सपनों की
खबर को
लोगों को
सुनाने में
इन कुछ
लोगों को
महारत
हासिल होती है
अलसुबह
मुँह धोने
से पहले
आईने के
सामने खड़ा
जब तक
कोई खुद
को परख
रहा होता है
इन लोगों
की तीसरी
आँख से
देखा सब कुछ
बिस्तरे की
सिलवट की
गिनतियों के
साथ कहीं
किसी सुबह
के अखबार
के मुख्य
पृष्ठ पर
बड़े अक्षरों में
छप रहा होता है
ये लोग
अपने जैसे
सभी भगवानों
को बारीकी से
पहचानते हैं
बोलते
नहीं है
कुछ भी
कहीं भी
किसी से
किसी के लिये
लेकिन
हवा हवा में
हवा की
धूल मिट्टी को
भी छानते हैं
सारा सब कुछ
इन्हीं की
सदभावनाओं
पर टिका
और चल
रहा होता है
अपने बारे में
अच्छी दो चार
गलफहमियाँ
पाला हुआ
कोई अपनी
अच्छाइयों के
जनाजों को
कहीं गिन
रहा होता है
उसकी गिनती
सही है और
गलत है
यही
कुछ लोग
बताते हैं
जानकारी
आदमी की
आदमी के
अंदर से
निकाल कर
आदमी को
बेच जाते हैं
आदमी
अपने बारे में
सोचता रहता है
होने ना
होने के
हिसाब से
कुछ लोग
उसका
कहीं भी
नहीं होना
हर जगह
जा जा
कर बताते हैं
भगवानों
में भगवान
धरती में
पैदा हुऐ
इन्सानों
से अलग
कुछ अलग
तरह के लोग
सब कुछ
हो जाते हैं
‘उलूक’
भगवान की पूजा
करने से नहीं
मिलता है मोक्ष
कुछ लोगों
की शरण में
जाना पड़ता है
आज के
जमाने में
भगवान भी
उन्ही लोगों
से पूछने
कुछ ना
कुछ आते हैं ।
चित्र साभार: fremdeng.ning.com
भगवान
नहीं होते हैं
बस उनका
होना ही
काफी होता है
किसी को भी
अपने बारे में
उतना पता
नहीं होता है
जितना
कुछ लोगों को
सारे लोगों
के बारे में
पता होता है
रात के देखे
सभी सपने
सुबह होने होने
तक बहुत ही
कम याद रहते हैं
बिना धुले
साबुन के
मटमैले कपड़े
जैसे ही धुँधले
हो चुके होते हैं
उन सारे
सपनों की
खबर को
लोगों को
सुनाने में
इन कुछ
लोगों को
महारत
हासिल होती है
अलसुबह
मुँह धोने
से पहले
आईने के
सामने खड़ा
जब तक
कोई खुद
को परख
रहा होता है
इन लोगों
की तीसरी
आँख से
देखा सब कुछ
बिस्तरे की
सिलवट की
गिनतियों के
साथ कहीं
किसी सुबह
के अखबार
के मुख्य
पृष्ठ पर
बड़े अक्षरों में
छप रहा होता है
ये लोग
अपने जैसे
सभी भगवानों
को बारीकी से
पहचानते हैं
बोलते
नहीं है
कुछ भी
कहीं भी
किसी से
किसी के लिये
लेकिन
हवा हवा में
हवा की
धूल मिट्टी को
भी छानते हैं
सारा सब कुछ
इन्हीं की
सदभावनाओं
पर टिका
और चल
रहा होता है
अपने बारे में
अच्छी दो चार
गलफहमियाँ
पाला हुआ
कोई अपनी
अच्छाइयों के
जनाजों को
कहीं गिन
रहा होता है
उसकी गिनती
सही है और
गलत है
यही
कुछ लोग
बताते हैं
जानकारी
आदमी की
आदमी के
अंदर से
निकाल कर
आदमी को
बेच जाते हैं
आदमी
अपने बारे में
सोचता रहता है
होने ना
होने के
हिसाब से
कुछ लोग
उसका
कहीं भी
नहीं होना
हर जगह
जा जा
कर बताते हैं
भगवानों
में भगवान
धरती में
पैदा हुऐ
इन्सानों
से अलग
कुछ अलग
तरह के लोग
सब कुछ
हो जाते हैं
‘उलूक’
भगवान की पूजा
करने से नहीं
मिलता है मोक्ष
कुछ लोगों
की शरण में
जाना पड़ता है
आज के
जमाने में
भगवान भी
उन्ही लोगों
से पूछने
कुछ ना
कुछ आते हैं ।
चित्र साभार: fremdeng.ning.com