कान आँख नाक जिह्वा त्वचा
को इंद्रियां कहा जाता है
को इंद्रियां कहा जाता है
इन पाँचों के अलावा
ज्ञानी एक और की बात बताता है
ज्ञानी एक और की बात बताता है
छटी इंद्री जिसे कह दिया जाता है
गाँधी जी ने तीन बंदर चुने
कान आँख और जिह्वा बंद किये हुऐ
जिनको बरसों से
यहाँ वहाँ ना जाने कहाँ कहाँ दिखाया जाता है
सालों गुजर गये
थका नहीं एक भी बंदर उन तीनों में से
भोजन पानी का समय तक आता है
और चला जाता है
नाक बंद किया हुआ बंदर
क्यों नहीं था साथ में इन तीनो के
इस बात को पचाना मुश्किल हो जाता है
गाँधी जी बहुत समझदार थे
ऐसा कुछ किताबों में लिखा पाया जाता है
झाड़ू भी नहीं दे गये किसी एक बंदर के हाथ में
ये भी अपने आप में एक पहेली जैसा हो जाता है
जो भी है
अपने लिये तो आँखो से देखना ही बबाल हो जाता है
आँखे बंद भी कर ली जायें तो कानो में कोई फुसफुसा जाता है
कान बंद करने की कोशिश भी की कई बार
पर अंदर का बंदर चिल्लाना शुरु हो जाता है
एक नहीं अनेकों बार महसूस किया जाता है
‘उलूक’ तुझ ही में या तेरी इंद्रियों में ही है
कोई खराबी कहीं
कोई खराबी कहीं
आशाराम और रामपाल की शरण में
क्यों नहीं चला जाता है
ज्यादा लोग
देखते सूँघते सुनते महसूस करते हैं
जिन जिन बातों को
जिन जिन बातों को
तेरे किसी भी कार्यकलाप में
उसका जरा सा भी अंश नहीं आता है
सब की इंद्रियाँ सक्रिय होती हैं
हर कोई कुछ ना कुछ कर ही ले जाता है
तुझे गलतफहमी हो गई है लगता है
छटी इंद्री कहीं होने की तेरे पास
इसीलिये जो कहीं नहीं होता है
उसके होने ना होने का वहम तुझे जाता है ।
चित्र साभार: bibliblogue.wordpress.com