उलूक टाइम्स: झटके
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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

झटके का नहीं आता है खेल उसे हलाल सब को सिखाने की जिसने मन में ठानी है

सीधे सीधे
लिख देने में 

क्या परेशानी है 

किसलिये 
टेढ़ा कर के ही 

बेचने की 
ठानी है 

सब की 
समझ में 
सब बात 
आती नहीं है 

हमने मानी है 

खिचड़ी 
बना कर उसकी

रोज परोस देना 
मनमानी है 

बड़ा देश 
अनगिनत लोग

समस्याएं
आनी जानी हैं 

आदत 
लक्ष्मी की 
ना टिकने की 

पुरानी है 

सरकार 
बदल देने से 

थोड़े
बदल जानी हैं 

नाली 
छोटी 
पैसों की 

अल्पमत 
गरीब ने
बनानी हैं 

किसे पता है 
किस 
अमीर के 
सागर में

जा समानी हैं 

गालियाँ 

बेचारी 
बहुमत की 
सरकार को
खानी हैं 

बस कुछ 
शुरु ही हुयी है 

छोटी सी
कहानी है 

मेरे घर की 
नहीं राख 

कहीं दूर के 
जले घर की 
पुरानी है 

ट्रेलर के 
मजे लीजिये 
मौज से 

हीरो 
मान लो
हो चुका 
अब

खानदानी है 

खुद 
सोच लेना 
पूरी कहानी 
हड़बड़ी में 

नादानी है 

जरा रुक के 

पूरी 
फिल्म 
अभी तो 
सामने से

आनी है 

झटके का 
नहीं आता है
खेल उसे 

बेवकूफ ‘उलूक’ 

हलाल 
सब को 
सिखाने की 

जिसने
मन में ठानी है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

रविवार, 9 जून 2013

क्या होता है जब कोई पेड़ हो गया होता है

पेड़ पेड़ होता है
कोई छोटा होता है
कोई बड़ा होता है
पेड़ किसी से कभी
कुछ नहीं कहता है
पेड़ अपनी धुन में
हमेशा रहता है
भूकंप के झटके हों
चाहे हवा के थपेडे़
इधर का उखडे़
उधर का उखडे़
पेड़ की कभी
कोई प्रतिक्रिया
नहीं होती है
पेड़ अपने
आसपास से
अपना पेट
भर लेता है
कोई अगर भूखा
सो गया होता है
वो पेड़ को पता
होता है या नहीं
ये किसी को भी
कहाँ पता होता है
पेड़ एक
योगी होता है
यही सब तो आज
लगता है हर किसी
ने सीखा होता है
पेड़ की तरह बस
खड़ा नहीं होता है
चल रहा होता है
लेकिन एक छोटा
या एक बड़ा पेड़
जरूर हो गया होता है
चारों तरफ कुछ भी
कहीं घट रहा होता है
निर्विकार योगीभाव
देखिये तो जरा
उसे कुछ नहीं होता है
दिमाग मत लगाइये
सोचने में इतना कि
कोई कुछ क्यों नहीं
कह रहा होता है
पेड़ होने के नुकसान
कम और फायदे ज्यादा
वो गिन रहा होता है
जिसके लिये हर चीज
एक छोटा या बड़ा पेड़
हो गयी होती है
वो चल रहा होता है
उसे खुद भी पता
हो गया होता है
तुझे ये सब आज
दिख रहा होता है
वो तो कब का एक
पेड़ हो गया होता है ।