सीधे सीधे
लिख देने में
क्या परेशानी है
किसलिये
टेढ़ा कर के ही
बेचने की
ठानी है
सब की
समझ में
सब बात
आती नहीं है
हमने मानी है
खिचड़ी
बना कर उसकी
रोज परोस देना
मनमानी है
बड़ा देश
अनगिनत लोग
समस्याएं
समस्याएं
आनी जानी हैं
आदत
लक्ष्मी की
ना टिकने की
पुरानी है
सरकार
बदल देने से
थोड़े
बदल जानी हैं
नाली
छोटी
पैसों की
अल्पमत
गरीब ने
बनानी हैं
किसे पता है
किस
अमीर के
सागर में
जा समानी हैं
गालियाँ
बेचारी
बहुमत की
सरकार को
खानी हैं
बस कुछ
शुरु ही हुयी है
छोटी सी
कहानी है
मेरे घर की
नहीं राख
कहीं दूर के
जले घर की
पुरानी है
ट्रेलर के
मजे लीजिये
मौज से
हीरो
मान लो
हो चुका
अब
खानदानी है
खुद
सोच लेना
पूरी कहानी
हड़बड़ी में
नादानी है
जरा रुक के
पूरी
फिल्म
अभी तो
सामने से
आनी है
झटके का
नहीं आता है
खेल उसे
बेवकूफ ‘उलूक’
हलाल
सब को
सिखाने की
जिसने
मन में ठानी है ।
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