उलूक टाइम्स: टेढ़ा
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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

झटके का नहीं आता है खेल उसे हलाल सब को सिखाने की जिसने मन में ठानी है

सीधे सीधे
लिख देने में 

क्या परेशानी है 

किसलिये 
टेढ़ा कर के ही 

बेचने की 
ठानी है 

सब की 
समझ में 
सब बात 
आती नहीं है 

हमने मानी है 

खिचड़ी 
बना कर उसकी

रोज परोस देना 
मनमानी है 

बड़ा देश 
अनगिनत लोग

समस्याएं
आनी जानी हैं 

आदत 
लक्ष्मी की 
ना टिकने की 

पुरानी है 

सरकार 
बदल देने से 

थोड़े
बदल जानी हैं 

नाली 
छोटी 
पैसों की 

अल्पमत 
गरीब ने
बनानी हैं 

किसे पता है 
किस 
अमीर के 
सागर में

जा समानी हैं 

गालियाँ 

बेचारी 
बहुमत की 
सरकार को
खानी हैं 

बस कुछ 
शुरु ही हुयी है 

छोटी सी
कहानी है 

मेरे घर की 
नहीं राख 

कहीं दूर के 
जले घर की 
पुरानी है 

ट्रेलर के 
मजे लीजिये 
मौज से 

हीरो 
मान लो
हो चुका 
अब

खानदानी है 

खुद 
सोच लेना 
पूरी कहानी 
हड़बड़ी में 

नादानी है 

जरा रुक के 

पूरी 
फिल्म 
अभी तो 
सामने से

आनी है 

झटके का 
नहीं आता है
खेल उसे 

बेवकूफ ‘उलूक’ 

हलाल 
सब को 
सिखाने की 

जिसने
मन में ठानी है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

रविवार, 23 अगस्त 2015

कहते कहते ही कैसे होते हैं कभी थोड़ी देर से भी होते हैं



तुम तो पीछे ही पड़ गये दिनों के 
दिन तो दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

अच्छी और बुरी तो सोच होती है 
उसी में कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं कोई लोच होती है 

सब की समझ में सब कुछ 
अच्छी तरह आ जाये 
ऐसा भी नहीं होता है 

आधी दुनियाँ में उधर रात 
उसके इधर होने से नहीं होती है 

इधर की दुनियाँ में दिन होने से 
रात की बात नहीं होती है 

किसी से 
नाँच ना जाने आँगन टेढ़ा 
कहना भी
बहुत अच्छी बात नहीं होती है 

पहले ही
पूछ लेने की आदत ही 
सबसे अच्छी एक आदत होती है 

जो हमेशा
भले लोगों की 
हर भली बात के साथ होती है 

लंगड़ा कर
यूँ ही शौक से 
नहीं चलना चाहता है कोई भी कभी भी 

सोच में
नहीं होती है 
दायें या बाँयें पाँव में से 
किसी एक में कहीं थोड़ी बहुत 
मोच पड़ी होती है 

अच्छा अगर
नहीं
दिख रहा होता है 
सामने से कहीं 

कहीं ना कहीं 
रास्ते में होती है
उस अच्छे की गाड़ी 
और
थोड़ा सा
लेट हो रही होती है 

दिन तो
दिन होते हैं 
अच्छे और बुरे नहीं होते हैं 

किस्मत
भी होती है 
भेंट नहीं हो पा रही होती है 

वैसे भी 
सबके
एक साथ नहीं होते हैं 
जिसके हो चुके होते है 
'उलूक' 

उसके
अगली बार 
तक
तो
होने भी नहीं होते हैं । 

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

कविता को टेढ़ा मेढ़ा नहीं सीधे सीधे सीधा लिखा जाता है

मन करता है

किसी समय

एक
सादे सफेद
पन्ने पर

खींच दी जायें

कुछ
आड़ी तिरछी रेखायें

फिर
बनाये जायें
कुछ नियम

उन
आड़ी तिरछी
रेखाओं के
आड़े पन
और
तिरछे पन के लिये

जिससे
आसान
हो जाये
समझना

किसी भी
आड़े
और
तिरछे को

कहीं से भी
कभी भी
सीधे खड़े होकर

बहुत कुछ
बहुत
सीधा सीधा
दिखता है

मगर
बहुत ही
टेढ़ा होता है

बहुत कुछ
टेढ़ा
दिखता है

टेढ़ा
दिखाता है

जिसको
सीधा करने
के चक्कर में

सीधा
करने वाला
खुद ही
टेढ़ा
हो जाता है

टेढ़े होने
ना होने का
कहीं कोई
नियम
कानून भी
नजर
नहीं आता है

ऐसा भी
नहीं होता है

टेढ़ा
हो जाने
के कारण
कोई टेढ़ी
सजा भी
पाता है

नियम
कानून
व्यवस्था
के सवाल

अपनी
जगह
पर होते हैं

लेकिन
सीधा
सीधा है
का पता

टेढ़ों
के साथ
रहने उठने
बैठने के साथ
ही पता
चल पाता है

‘उलूक’
लिखने दे
सब को
उन के
अपने अपने
नियमों
के हिसाब से

सीधा
होने की
कतई
जरूरत नहीं है

कुछ चीजें
टेढ़ी ही
अच्छी
लगती हैं

उन्हें
टेढ़ा ही
रहने दिया
जाता है

क्यों
झल्लाता है

अगर
तेरे लिखे को
किसी से
भूल वश

कविता है
कह दिया
जाता है ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

कभी तो लिख यहाँ नहीं तो और कहीं दो शब्द प्यार पर भी झूठ ही सही

फर्माइश
आई एक

इसी
तरह की कुछ

लिखता हुआ
देख कर
किसी को रोज

सीधे रास्ते पर
कुछ कुछ
हमेशा ही
टेढ़ा मेढ़ा

प्यार पर
दो शब्द
लिखने की
चुनौती
या
ललकार देकर

किसी ने
पता नहीं
जाने अंजाने में
या सच ही में
जान बूझ कर
जैसे हो छेड़ा

प्यार पर
तो लिख रहा है
हर जगह हर तरफ
पूरा का पूरा संसार

पढ़ रहा है
उस प्यार को भी
आ आ कर कई बार
प्यार से

सारा संसार
फैला हुआ हो जो
अथाह
एक समुद्र जैसा
मन में सब के
इस पार से उस पार

उस पर
कैसे लिखे
वो प्यार पर
बस दो शब्द केवल

जिसके दिमाग में
हर वक्त
चलता रहता हो
कोई ना कोई
उतपाती कीड़ा

प्यार पर लिखते हैं

विशेषज्ञ
प्यार में
माहिर प्रवीण या दक्ष

बिना
देखे सुने कुछ भी
अपने आस पास

सोच कर
महसूस कर
कुछ ऐसा ही खास

जिसमें होती भी है
और नहीं भी कोई पीड़ा

‘उलूक’ को
लिखने की
आदत है

रोज की
दिनचर्या

रोज का
देखा सुना सच झूठ

अपना
इसका या उसका

यहाँ
उठाया है उसने
इस बात का
ही जैसे बीड़ा

सबूत है भी
और नहीं भी
इसका

कि
माना जाता है

पर
कहता कोई
नहीं है
उसको येड़ा

प्यार पर
लिखने को
सोचे
दो शब्द

तेरे कहने पर
आज ही जैसे

देख ले
क्या क्या
लिख दिया

जैसे
होना शुरु
हो गया हो

सोच की
लेखनी 
का
मुँह
आकार टेढ़ा।

चित्र साभार: www.clker.com

बुधवार, 26 सितंबर 2012

मसला कुत्ते की टेढ़ी पूँछ

वैसे तो 
कुत्ते के पास मूँछ है 

पर 
ध्यान में ज्यादा रहती 
उसकी टेढ़ी पूँछ है 

उसको 
टेढ़ा रखना अगर उसको भाता है 

हर कोई 
क्यों उसको फिर
सीधा करना चाहता है 

उसकी 
पूँछ तक रहे बात 
तब भी समझ में आती है 

पर 
जब कभी किसी को 
अपने सामने वाले की 
कोई बात पागल बनाती है 

ना जाने तुरंत उसे 
कुत्ते की टेढ़ी पूँछ ही 
क्यों याद आ जाती है 

हर किसी की 
कम से कम 
एक पूँछ तो होती है 
किसी की जागी होती है 
किसी की सोई होती है 

पीछे 
होती है
इसलिये 
खुद को दिख नहीं पाती है 

पर 
फितरत देखिये जनाब 
सामने वाले की
पूँछ पर 
तुरंत नजर चली जाती है 

अपनी पूँछ उस समय 
आदमी भूल जाता है 

अगले की पूँछ पर 
कुछ भी कहने से बाज 
लेकिन नहीं आता है 

अच्छा किया हमने 
अपनी श्रीमती की सलाह पर 
तुरंत कार्यवाही कर डाली 

अपनी 
पूँछ कटवा कर 
बैंक लाकर में रख डाली 

अब 
कटी पूँछ पर कोई 
कुछ नहीं कह पाता है 

पूँछ 
हम हिला लेते हैं 
किसी के सामने 
जरूरत पड़ने पर कभी
तो 
किसी को 
नजर भी नहीं आता है 

इसलिये 
अगले की पूँछ पर 
अगर 
कोई कुछ
कहना चाहता है 

तो 
पहले अपनी पूँछ 
क्यों नहीं
कटवाता है । 

चित्र सभार: https://gfycat.com/

सोमवार, 13 अगस्त 2012

एक सीधा सा टेढ़ा

सालों साल लग गये
यहाँ तो समझने में
कि आँखिर किसे
कैसे क्या किसको
समझाना आता है
सीधा सीधा कहने
वाले को कहाँ बेवकूफ
बनाना आता है
अपनी भी समझ में
कुछ आया तो वो भी
कभी भी सीधा कहाँ आया
उसका कहना ही
समझ पाये हम
जिसे उल्टा कर के
समझाना आता है
ये भी समझ में आया
कि उल्टा कर के
समझाना सबसे अच्छा
समझाना होता है
पूरा उल्टा नहीं भी
कर के आओ तो
बस थोड़ा सा टेढा़
करके आना होता है
लेकिन इस टेढा़ करके
समझाने वाले को
खुद भी टेढ़ा हो
जाना होता है
धीरे धीरे ऎसे टेढे़ को
सामने वाले से केकड़ा
कहलवाना होता है
कोई काम दुनिया के
ऎसे हो या वैसे हों
कहाँ कभी रुकते हैं
उनको करने वाले को
अपने अपने ढंग से
करते ही जाना होता है
केकडे़ भी आदत से
मजबूर होते हैं
उनको भी केकड़ापन
अपना दिखाना होता है
तब तक सब अपनी
जगह पर जैसे तैसे
चलाना होता है
पर मुसीबत तो
तब आती है जब
टेढे़ के सामने किसी
एक टेढे़
को दूसरे टेढे़ को
समझाना होता है

टेढे़ टेढे़
होकर
एक दूसरे के नजदीक
जाना होता है
केकड़ापन अपने अपने
भूल कर सीधा
हो जाना होता है
जो भी समझाना होता है
ऎसे में बिल्कुल सीधा ही
समझाना होता है ।