उलूक टाइम्स: झण्डा
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बुधवार, 15 अगस्त 2018

बहुत खुश है गली के नुक्कड़ पर आजादी के दिन आजाद बाँटने के लिये खुशी के पकौड़े तल रहा है

कई दिन से
थोड़ा थोड़ा
फटे हुऐ
शब्दों को

एक
रफूगर
रफू कर रहा है

पूछने पर
बोला
बहुत धीमे से

बस
फुसफुसा कर

बहुत
दिनों में
मिला है
काम बाबू

एक पागल
दे गया है

कह रहा था
पन्द्रह अगस्त
नजदीक है

आजादी
लिखने का
बहुत मन
कर रहा है

फटे कपड़े
के कुछ टुकड़े

उसी गली के
अगले छोर
का एक दर्जी
मन लगा कर
सिल रहा है

किसलिये
और क्यों

क्या
नया कपड़ा
अब बाजार में
नहीं मिल रहा है

बहुत
आजाद हो चुके थे
कुछ रंगीन कपड़े

ढूँढ कर लाये
गये हैं जनाब

सिलने लगा
यूँ ही तब
देखा नहीं
गया जब

पुराना झंडा
आजादी का

अपने ही
टुकड़ों के लिये
बैचेनी में
मचल रहा है

बन्धन
नहीं है कुछ भी

कुछ भी कह देने
और
कुछ भी कर देने
को आतुर
आजाद

नये शब्दों की
नयी किताब के
आजाद पन्नों
को साथ लेकर

'उसके' घर से
तैयार होकर
बहस के लिये
अब निकल रहा है

आजादी
का मतलब
शायद इसीलिये
‘उलूक’ को

कहीं किसी भी
शब्दकोश में
नहीं मिल रहा है।

चित्र साभार: https://carwad.net

रविवार, 29 जुलाई 2018

बकवास करेगा ‘उलूक’ मकसद क्या है किसी दीवार में खुदवा क्यों नहीं देता है

उसकी बात
करना
सीख क्यों
नहीं लेता है

भीड़ से
थोड़ी सी
नसीहत क्यों
नहीं लेता है

सोचना
बन्द कर के
देख लिया
कर कभी

दिमाग को
थोड़ा आराम
क्यों नही देता है

तेरा मकसद
पूछता है
अगर
उसका झण्डा

झण्डा
नहीं हूँ
कहकर
जवाब क्यों
नहीं देता है

आइना
नहीं होता है
कई लोगों
के घर में

अपने
घर में है
कपड़े उतार
क्यों
नहीं लेता है

साथ में
रहता है
अंधा बन
पूरी आँखे
खोलकर

पूछता है

क्या
लिखता है
बता क्यों
नहीं देता है

शराफत से
नंगा हो
जाता है

भीड़ में भी
एक शरीफ

नंगों की
भीड़ को
अपना पता

पता नहीं
क्यों नहीं
देता है

बहुत कुछ
लिखना है

पता होता है
‘उलूक’
को भी
हर समय

उस के
ही लोग हैं
उसके ही
जैसे हैं

रहने भी
क्यों नहीं
देता है ।

चित्र साभार: www.fineartpixel.com