अजीब सी
बात है
पर
पता नहीं
सुबह से
दिमाग में
एक शब्द
घूम रहा है
टट्टी
तेरी टट्टी
मेरी टट्टी से
खुशबूदार कैसे
या
तेरी टट्टी
मेरी टट्टी से
ज्यादा
असरदार कैसे
पाठकों
को भी
लग रहा होगा
टट्टी भी
कोई
बात करने
का विषय
हो सकता है
सुबह
उठता है
आदमी
खाता है
शाम होती है
फिर से खाता है
खाता है
कम या बहुत
लेकिन
रोज सबेरे
कुछ ना कुछ
जरूर हगने
चला जाता है
जो हगता है
उसे ही टट्टी
कहा जाता है
टट्टी बात
करने का
विषय नहीं है
हर कोई
हगने
और टट्टी
जैसे शब्दों के
प्रयोग से
बचना
चाहता है
टट्टी पर या
हगने जैसे
विषय पर
गूगल करने
वाला भी
कोई एक
कविता
लिखा हुआ
नहीं पाता है
कविता
और टट्टी
हद हो गई
कविता
शुद्ध होती है
शुद्ध मानी
जाती है
टट्टी को
अशुद्ध में
गिना जाता है
अपने
आस पास
हो रहा
कुछ भी
आज
क्यों इतना ज्यादा
टट्टी
जिसे
गू भी
कहा जाता है
याद दिलाता है
‘उलूक’ को
हर तरफ
हर आदमी
अपने
आसपास का
टट्टी पाने की
लालसा के साथ
दौड़ता हुआ
नजर आता है
पागल कौन हुआ
‘उलूक’
या दौड़ता
हुआ आदमी
टट्टी के पीछे
समझाने वाला
कोई कहीं
बचा नहीं
रह जाता है ।
चित्र साभार: Weclipart
बात है
पर
पता नहीं
सुबह से
दिमाग में
एक शब्द
घूम रहा है
टट्टी
तेरी टट्टी
मेरी टट्टी से
खुशबूदार कैसे
या
तेरी टट्टी
मेरी टट्टी से
ज्यादा
असरदार कैसे
पाठकों
को भी
लग रहा होगा
टट्टी भी
कोई
बात करने
का विषय
हो सकता है
सुबह
उठता है
आदमी
खाता है
शाम होती है
फिर से खाता है
खाता है
कम या बहुत
लेकिन
रोज सबेरे
कुछ ना कुछ
जरूर हगने
चला जाता है
जो हगता है
उसे ही टट्टी
कहा जाता है
टट्टी बात
करने का
विषय नहीं है
हर कोई
हगने
और टट्टी
जैसे शब्दों के
प्रयोग से
बचना
चाहता है
टट्टी पर या
हगने जैसे
विषय पर
गूगल करने
वाला भी
कोई एक
कविता
लिखा हुआ
नहीं पाता है
कविता
और टट्टी
हद हो गई
कविता
शुद्ध होती है
शुद्ध मानी
जाती है
टट्टी को
अशुद्ध में
गिना जाता है
अपने
आस पास
हो रहा
कुछ भी
आज
क्यों इतना ज्यादा
टट्टी
जिसे
गू भी
कहा जाता है
याद दिलाता है
‘उलूक’ को
हर तरफ
हर आदमी
अपने
आसपास का
टट्टी पाने की
लालसा के साथ
दौड़ता हुआ
नजर आता है
पागल कौन हुआ
‘उलूक’
या दौड़ता
हुआ आदमी
टट्टी के पीछे
समझाने वाला
कोई कहीं
बचा नहीं
रह जाता है ।
चित्र साभार: Weclipart