किसलिये
खोलता है
खुद ही
हमेशा
अपनी पोल
तेरी सोच में
और
तुझमें भी हैं
ना जाने
कितने झोल
दुनियाँ पढ़
दुनियाँ लिख
कभी
बक बक छोड़
दुनियाँ सोच
की आँखें खोल
पण्डित है
सुना है
पण्डिताई
तक नहीं
दिखला
पाता है
घर के
मन्दिर के
अन्दर कहीं
पूजा करवाता है
बाहर किसी
मन्दिर को
जाता हुआ
नजर नहीं
आता है
गणपति
पूजा के
ढोल नगाढ़े
पड़ोसी एक
एक और एक
ग्यारह दिन तक
अपने घर में
बजवा जाता है
कान में
ठूस कर रूई
इतने दिन
पता नहीं
अपने घर के
किस कोने में
तू घुस जाता है
दशहरा आता है
राम की लीला
शुरु होती है
दुर्गा का पण्डाल
घर की छत से
नजर आता है
सोने की जरूरत
खत्म हो जाती है
सुबह
पौ फटते ही
फटी आवाज
का एक मंत्र
अलार्म
हो जाता है
सारा
मोहल्ला
जा जा कर
भजनों में
भाग लगाता है
तू
फिर अपने
कानों में
अंगुली ठूसे
घर के किसी
कमरे में
चक्कर
लगाता है
कोरट
कचहरी
में भी शायद
होता होगा
तेरा जैसा ही
कोई बेवकूफ
हल्ला गुल्ला
शोर शराबे पर
कानून बना कर
थाने थाने
भिजवाता है
भक्ति पर जोर
कहाँ चलता है
जोर लगा कर
हईशा के साथ
भगतों का रेला
ऐसे कागजों में
मूँगफली
बेच जाता है
कैसी तेरी पूजा
कैसी तेरी भक्ति
'उलूक'
कहीं भी तेरी
पूजा का भोंपू
किसी को
नजर नहीं
आता है
बिना
आवाज करे
बिना नींद
हराम करे
जमाने की
कैसे
तू ऊपर
वाले को
मक्खन
लगा कर
चुपचाप
किनारे से
निकल जाता है
समझ में
नहीं आता है
पूजा
करने वाला
ढोल नगाड़े
भोंपू के बिना
कैसे ईश्वर को
पा जाता है
और
समझ में
आता है
किसलिये
तू कभी भी
हिन्दू नहीं
हो पाता है ।
चित्र साभार: https://www.hindustantimes.com/mumbai-news/noise-can-make-you-deaf-this-diwali-turn-a-deaf-ear-to-noise/
खोलता है
खुद ही
हमेशा
अपनी पोल
तेरी सोच में
और
तुझमें भी हैं
ना जाने
कितने झोल
दुनियाँ पढ़
दुनियाँ लिख
कभी
बक बक छोड़
दुनियाँ सोच
की आँखें खोल
पण्डित है
सुना है
पण्डिताई
तक नहीं
दिखला
पाता है
घर के
मन्दिर के
अन्दर कहीं
पूजा करवाता है
बाहर किसी
मन्दिर को
जाता हुआ
नजर नहीं
आता है
गणपति
पूजा के
ढोल नगाढ़े
पड़ोसी एक
एक और एक
ग्यारह दिन तक
अपने घर में
बजवा जाता है
कान में
ठूस कर रूई
इतने दिन
पता नहीं
अपने घर के
किस कोने में
तू घुस जाता है
दशहरा आता है
राम की लीला
शुरु होती है
दुर्गा का पण्डाल
घर की छत से
नजर आता है
सोने की जरूरत
खत्म हो जाती है
सुबह
पौ फटते ही
फटी आवाज
का एक मंत्र
अलार्म
हो जाता है
सारा
मोहल्ला
जा जा कर
भजनों में
भाग लगाता है
तू
फिर अपने
कानों में
अंगुली ठूसे
घर के किसी
कमरे में
चक्कर
लगाता है
कोरट
कचहरी
में भी शायद
होता होगा
तेरा जैसा ही
कोई बेवकूफ
हल्ला गुल्ला
शोर शराबे पर
कानून बना कर
थाने थाने
भिजवाता है
भक्ति पर जोर
कहाँ चलता है
जोर लगा कर
हईशा के साथ
भगतों का रेला
ऐसे कागजों में
मूँगफली
बेच जाता है
कैसी तेरी पूजा
कैसी तेरी भक्ति
'उलूक'
कहीं भी तेरी
पूजा का भोंपू
किसी को
नजर नहीं
आता है
बिना
आवाज करे
बिना नींद
हराम करे
जमाने की
कैसे
तू ऊपर
वाले को
मक्खन
लगा कर
चुपचाप
किनारे से
निकल जाता है
समझ में
नहीं आता है
पूजा
करने वाला
ढोल नगाड़े
भोंपू के बिना
कैसे ईश्वर को
पा जाता है
और
समझ में
आता है
किसलिये
तू कभी भी
हिन्दू नहीं
हो पाता है ।
चित्र साभार: https://www.hindustantimes.com/mumbai-news/noise-can-make-you-deaf-this-diwali-turn-a-deaf-ear-to-noise/