उलूक टाइम्स: भक्ति
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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

कुछ शब्दों के अर्थ तभी खोजने जायें जब उन्हे आपकी तरफ उछाल कर कोई आँखें बड़ी कर गोल घुमाये


कौन जायज कौन नाजायज
प्रश्न जब औलाद किस की पर आ कर खड़ा हो जाये

किस तरह खोज कर
जायज उत्तर को लाकर इज्जत के साथ बैठाया जाये

कौन समझाये किसे समझाये
लिखने लिखाने से कब पता चल पाये
कौन जायज नाजायज और कौन नाजायज जायज
सिक्का उछालने वाले के
सिक्के में हर तरफ तस्वीर जब एक हो जाये

चित भी उसकी
पट भी उसके ही किसी उसकी हो धमकाये
जिसका वो खुद जायज होना
नाजायज बता सामने वाले को जायज समझाये

जायजों की कतार में
अनुशाशितों के भाई भतीजे चाचा ताऊ का
प्रमाण पत्र जायज होने के बटवाये

जिसमें लिखा जाये
लाईन को बाहर से खड़े देखते बाकी बचे खुचे
अपने आप नाजायजों में गिनती किये जायें
जो दिखायी दे उसपर ध्यान ना लगाये

कुछ सोच से परे भी सोच रखने के
योग ध्यान अभ्यास सिखाने पढ़ाने वालों की शरण में जाये
कल्याण करे खुद का पहले
जायजों के करे धरे नाजायज से ध्यान हटवाये

एकरूपता की सारे देश में
जायजों की कक्षाएं लगा लगा कर भक्ति पढ़ाये
नाजायज पर पर्दा फहराये
जायज होने के पुरुस्कारों के साथ
प्रतिष्ठित किसी मुकाम पर आसीन हो जाये

फिर घोषित जायजों को एक तरफ करवाये
और अघोषित नाजायजों की वाट लगवाये
समझ में आ रहा है कहते हते हैं 
‘उलूक’ जैसे नाजायज हर ठूँठ पर बैठे

ऐसे नालायक को हट हट करते हुऐ
जायजों के सिंहारूढ़ होने के जयकारों में
अपनी जायज आवाज मिलायें
निशान लगाये नाजायजों को
मिलजुल कर आँख दिखायें
हो सके तो मंच पर किसी चप्पल से पिटवायें ।

चित्र साभार: https://drawception.com

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

धरम बिना आवाज का कैसा होता है रे तेरा कैसे बिना शोर करे तू धार्मिक हो जाता है

किसलिये
खोलता है

खुद ही

हमेशा
अपनी पोल

तेरी सोच में

और
तुझमें भी हैं

ना जाने
कितने झोल

दुनियाँ पढ़
दुनियाँ लिख

कभी
बक बक छोड़

दुनियाँ सोच
की आँखें खोल

पण्डित है 


सुना है
पण्डिताई
तक नहीं
दिखला 

पाता है

घर के
मन्दिर के
अन्दर कहीं
पूजा करवाता है

बाहर किसी
मन्दिर को
जाता हुआ
नजर नहीं
आता है

गणपति
पूजा के
ढोल नगाढ़े
पड़ोसी एक

एक और एक
ग्यारह दिन तक

अपने घर में
बजवा जाता है

कान में
ठूस कर रूई
इतने दिन

पता नहीं
अपने घर के
किस कोने में

तू घुस जाता है

दशहरा आता है
राम की लीला
शुरु होती है

दुर्गा का पण्डाल
घर की छत से
नजर आता है

सोने की जरूरत
खत्म हो जाती है

सुबह
पौ फटते ही

फटी आवाज
का एक मंत्र
अलार्म
हो जाता है

सारा
मोहल्ला
जा जा कर
भजनों में
भाग लगाता है

तू
फिर अपने
कानों में
अंगुली ठूसे
घर के किसी
कमरे में
चक्कर
लगाता है

कोरट
कचहरी
में भी शायद
होता होगा

तेरा जैसा ही
कोई बेवकूफ

हल्ला गुल्ला
शोर शराबे पर
कानून बना कर

थाने थाने
भिजवाता है

भक्ति पर जोर
कहाँ चलता है

जोर लगा कर
हईशा के साथ

भगतों का रेला

ऐसे कागजों में
मूँगफली
बेच जाता है

कैसी तेरी पूजा
कैसी तेरी भक्ति
'उलूक'

कहीं भी तेरी
पूजा का भोंपू

किसी को
नजर नहीं
आता है

बिना
आवाज करे
बिना नींद
हराम करे

जमाने की

कैसे
तू ऊपर
वाले को
मक्खन
लगा कर

चुपचाप
किनारे से
निकल जाता है

समझ में
नहीं आता है

पूजा
करने वाला
ढोल नगाड़े
भोंपू के बिना

कैसे ईश्वर को
पा जाता है

और
समझ में
आता है

किसलिये
तू कभी भी
हिन्दू नहीं
हो पाता है ।

चित्र साभार: https://www.hindustantimes.com/mumbai-news/noise-can-make-you-deaf-this-diwali-turn-a-deaf-ear-to-noise/