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रविवार, 20 सितंबर 2015

देखा कुछ ?

देखा कुछ ?
हाँ देखा
दिन में
वैसे भी
मजबूरी में
खुली रह जाती
हैं आँखे
देखना ही पड़ता है
दिखाई दे जाता है
वो बात अलग है
कोई बताता है
कोई चुप
रह जाता है
कोई नजर
जमीन से
घुमाते हुऐ
दिन में ही
रात के तारे
आकाश में
ढूँढना शुरु
हो जाता है
दिन तो दिन
रात को भी
खोल कर
रखता हूँ आँखें
रोज ही
कुछ ना कुछ
अंधेरे का भी
देख लेता हूँ
अच्छा तो
क्या देखा ? बता
क्यों बताऊँ ?
तुम अपने
देखे को देखो
मेरे देखे को देख
कर क्या करोगे
जमाने के साथ
बदलना भी सीखो
सब लोग एक साथ
एक ही चीज को
एक ही नजरिये
से क्यों देखें
बिल्कुल मत देखो
सबसे अच्छा
अपनी अपनी आँख
अपना अपना देखना
जैसे अपने
पानी के लिये
अपना अपना कुआँ
अपने अपने घर के
आँगन में खोदना
अब देखने
की बात में
खोदना कहाँ
से आ गया
ये पूछना शुरु
मत हो जाना
खुद भी देखो
औरों को भी
देखने दो
जो भी देखो
देखने तक रहने दो
ना खुद कुछ कहो
ना किसी और से पूछो
कि देखा कुछ ?

चित्र साभार: clipartzebraz.com

शनिवार, 29 अगस्त 2015

ले भी लीजिये हजूर छुट्टी के दिन ऐसा ही बेचा जायेगा

ले लीजिये
साहब
थोड़ा सा
बड़ा जरूर
हो गया है
पर सच में
बहुत अच्छा है
अच्छा है
सामने है
दिख ही
रहा है
स्वभाव दिख
ही जायेगा
कुछ दिनों बाद
सब कुछ
साफ साफ
इधर उधर
आगे पीछे
ऊपर नीचे
सब जगह
जगह जगह
नजर आयेगा
वैसे इसके
इलाके में
किसी से भी
पूछ लीजिये
ज्यादातर
कुछ भी
नहीं कहेंगे
चुप ही रहेंगे
कुछ बस
मुस्कुरायेंगे
एक दो
बेकार के
फालतू
हर जगह
होते ही है
आदत होती है
आदतन
कुछ ना कुछ
बड़बड़ायेंगे
कुछ पालतू
भी मिलेंगे
एक जैसे
नहीं हो
सकते हैं
कभी भी
फिर भी
जैसा ये है
वैसे ही नजर
भी आयेंगे
मिलेंगे नहीं भी
तब भी
आभास जैसा
ही दे जायेंगे
अच्छी जाति
दिखने से
कहाँ कहीं
पता चलती है
काम करने
के तरीके से
पता चल
ही जाती है
डी एन ए
की बात तभी
तो की जाती है
अब अपने
मुँह मियाँ
मिट्ठू भी
होना ठीक
नहीं होता है
‘उलूक’
माना दिन
में बस
सुनता है
कुछ भी
कहीं भी
नहीं देखता है
रख कर तो
देखिये हजूर
सबूत जरूर
मिल जायेंगे
काम करता
हुआ कभी
भी नजर
नहीं आयेगा
काम के समय
इधर उधर
चला जायेगा
दिखेगा
चुस्त बैठा
हमेशा
नजर आयेगा
कसम से
अभी कुछ भी
पता नहीं चलेगा
जाने के बाद
देखियेगा
हर जगह
खोदा खोदा
सा सब
नजर आयेगा
ले लीजिये साहब
दिखने दिखाने
में कुछ
नहीं रखा है
बहुत
काम का है
बहुत
काम आयेगा
आगे काम ही
काम दिखेगा
बचा कुछ भी
नहीं रह जायेगा
रख ही लीजिये
हजूर देखा जायेगा ।

 चित्र साभार: kennysclipart.com

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

बता देना तूने क्या कुछ अलग ही देखा है

बचपन से
आज तक

देखता
आ रहा हूँ

दौड़
बच्चों की

दौड़
जवानों की

दौड़
अधेड़ों की

और
बूढ़ों की दौड़

हर दौर में
दौड़ को
बदलते देखा है

हौले हौले
मुस्कुराते हुऐ
एक दूसरे को
पछाड़ते हुऐ

गले मिलते
खुश होते
और
रोते हुओं
को देखा है

दौर
बदले हैं

दौड़ें
भी बदली हैं

मैदान
बदले हैं
दौड़ने के
तरीके बदले हैं

नंगे पैर
दौड़ते हुऐ
बच्चे के पैरों से

खून
के साथ
आँख से
खुशी को
छलकते
हुऐ देखा है

सोच में
आ रही है
एक छोटी
सी बात
आज
की दौड़ों
के दौर में

क्या
ये सब
अकेले
मैंने ही
और
बस मैंने ही
यहाँ देखा है

कुछ
मौसम
का मिजाज
ही है ऐसा

या
तेरे यहाँ भी
यही सब कुछ
तून भी
कभी देखा है

साथ साथ
कदमताल
पर चल कर
दौड़ने पहुंचने
वाले को

दौड़ के
शुरु होते ही
बदलते हुऐ
देखा है

दौड़ेंं
होती है
आज भी
उसी तरह से

जैसे
हमेशा
होती रही हैंं
मैदान दर मैदान

लेकिन
किसी
गिरते हुऐ
के ऊपर से

किसी को
दौड़ते हुऐ
तो मैंने

इसी
दौर में

और
बस यहीं

और
यहीं देखा है ।

सोमवार, 29 जुलाई 2013

सभी देखते हैं, मोर नाचते हैं. कितने बाँचते हैं !

सभी को दिखाई
दे जाते हैं रोज
कहीं ना कहीं
कुछ मोर उनके
अपने जंगलों
में नाचते हुऎ
सब लेकिन
कहाँ बताते है
किसी और को
जंगल में मोर
नाचा था और
उन्होने उसे
नाचते हुए
देखा था
बस एक तेरे
ही पेट में
बातें जरा सा
रुक नहीं
पाती हैं
मोर के नाच
खत्म होते ही
बाहर तुरंत
निकल के
आती हैं
पता है तू
सुबह सुबह
जंगल को
निकल के
चला जाता है
शाम को लौट
के आते ही
मोर के नाच
की बात रोज
का रोज यहाँ
पर बताता है
बहुत सारे
मोर बहुत से
जंगलो में रोज
नाचते हैं
बहुत सारे
लोग मोर
के नाच को
देखते हैं फिर
मोर बाँचते हैं
कुछ मोर
बहुत ही
शातिर माने
जाते हैं
अपने नाचने
की खबर
खुद ही
आकर के
बता जाते हैं
क्यों बताते हैं
ये बात
सब की
समझ में
कहाँ आ
पाती है
कभी दूसरे
किसी जंगल
से भी एक
मोर नाचने
की खबर
आती है
यहाँ का
एक मोर
वहां बहुत
दिनो से
नाच रहा है
कोई भी
उसके नाच
को पता
नहीं क्यों
नहीं बाँच
रहा है
तब जाके
हरी बत्ती
अचानक ही
लाल हो
जाती है
बहुत दिनों
से जो बात
समझ में
नहीं आ
रही थी
झटके में
आ जाती है
मोर जब
भी कहीं
और किसी
दूसरे जंगल
में जाना
चाहता है
अपना नाच
कहीं और
जाकर दिखाना
चाहता है
जिम्मेदारी
किसी दूसरे को
सौंपना नहीं
चाहता है
बिना बताये
ही चला
जाता है
बस दूसरे
मोर को
जंगल में
नाचते रहना
का आदेश
फोन से
बस दे
जाता है
इधर उसका
मोर नाच
दिखाता है
उधर उसका
भी काम
हो जाता है
सब मोर
का नाच
देखते हैं
किसी को
पता नहीं
चल पाता है ।

शुक्रवार, 1 जून 2012

मुर्गी की दाल

समझदार मुर्गी
अपनी सूरत
और सेहत को
कभी नहीं
बढा़ती है
दुश्मनी होती है
जिस मुर्गी से
उसे खूब
खिलाती और
पिलाती है
वैसे तो हर बाडे़
में मुर्गियाँ ही
मुर्गियाँ हर तरफ
फड़फडा़ती हैं
लेकिन हर मुर्गी
की तरफ हर
किसी की नजर
कहाँ जाती है
ये वाकई
समझदारी
की बात सभी
के द्वारा
बताई जाती है
एक कानी मुर्गी
ही मुर्गियों के
द्वारा रानी
चुनवायी जाती है
बाड़े की सेहतमंद
खूबसूरत मुर्गी
सबकी नजर में
लाई जाती है
चाहने वालों
के हाथों कहीं
ना कहीं कटवा
दी जाती है
मर खप
जब जाती है
फिर पकवाई
भी जाती है
खाने वालों के
नखरे सहती है
और दाल
बताई जाती है
कानी मुर्गी
इसी बीच कहीं
जंगल में जाकर
नाच आती है
जंगल में मोर
नाचा की
एक खबर
अखबार
में आती है
कितने आसान
तरीके से
घर की मुर्गी
दाल बराबर
सबको समझा
जाती है।