दो वर्ग
किलोमीटर के
मेरे शहर की
कैन्टोंन्मेंट
की दीवार
उस पर लिखी
ये इबारत
अब मुंह चिढ़ाती है
किलोमीटर के
मेरे शहर की
कैन्टोंन्मेंट
की दीवार
उस पर लिखी
ये इबारत
अब मुंह चिढ़ाती है
शहर के लोग
अब
सब्जी खरीदने
कार में
आने लगे हैं
वो
उनके बच्चे
दोपहियों
पर भी
ऎसे उड़ते हैं
जैसे
शहर पर
आने वाली है
कोई आफत
वो नहीं पहुंचे
अन्ना हजारे
और जलूस
दूर निकल जायेंगे
बाबा रामदेव
भाषण खत्म
कर उड़ जायेंगे
जिस दिन
बढ़ जाते हैं
पैट्रोल के दाम
और दौड़ने
लगती हैं
चमकती दमकती
कुछ और
मोटरसाईकिलें
मालरोड पर
थरथराने
लगते हैं
बच्चे बूढ़े
सूखे पत्तों
की तरह
पट्टी बंधवाते
दिखते हैं
कुछ लोग
हस्पताल में
चेहरे पर रौनक
दिखाई देती है
पुलिस वालो के
महसूस होती है
जरूरत
एक सीटर
हैलीकोप्टर की
मेरे शहर के
जांबाज बच्चो,
बच्चियों, मांओं
पिताओं के
हवा में
उड़ने के लिये
बच्चियों, मांओं
पिताओं के
हवा में
उड़ने के लिये
गर्व से कहें वो
हम पायलट है
जमीन पर नहीं
रखते कदम
और
जमीन पर
चलने वाले
बच्चे बूढ़े
कर सकें
कुछ देर
मुस्कुराते हुवे
सड़कों पर
कदमताल ।