उलूक टाइम्स: बाबा
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गुरुवार, 29 नवंबर 2018

क से कुत्ता डी से डोग भौँकना दोनों का एक सा ‘उलूक’ रात की नींद में सुबह का अन्दाज लगाये कैसे

भौंकने
की
आवाजें

कुछ
एक तरह की

कुछ
अलग तरह की

अलग अलग
तरह की पूँछें

अलग अलग
तरह का
उनका
लहराना

कुछ पूँछे
झबरीली

कुछ
पतली पलती

कुछ
काट दी
गयी पूँछे

कुछ
कुत्तों का

कुछ
जानी पहचानी
गलियों में
नजर आना

कुत्ते
काटने वाले

कुत्ते
खाली
भौंकने वाले

कुत्ते
खाली कुत्ते

कुत्ते 

बेकार के कुत्ते

कुत्ते
के लिये
जान दे
देने वाले

कुछ 

निर्भीक कुत्ते

 कुत्ते
की खाली

कुछ 

बात करने
वाले कुत्ते

 कुछ
अजीब से कुत्ते

कुछ
सजीव से कुत्ते

कुछ
नींद में कुत्ते

कुछ
उनीँदे से कुत्ते

सारे
के सारे
बहुत सारे
एक साथ
एक भीड़
वफादार
से कुत्ते

कुछ
सड़क छाप से

कुछ
सरकार के कुत्ते 

कुछ 

दूध पीते
शरमसार से 
कुत्ते
कुछ कुत्ते
खून पीते

कुछ कुत्ते
कुछ
मूँछ चाटते

कुछ
असरदार कुत्ते

कुछ
शराब पीते
शराबियों के
एक प्रकार के कुत्ते

कुछ
नहीं खाते
कुछ भी

कुछ 

बाबाओं के लिये
जाँनिसार कुछ कुत्ते

पढ़े लिखे
के घर के
पढ़े पढ़ाये
उमरदराज
कुछ कुत्ते

अनपढ़ के
घर के
आसपास के
अनपढ़
सूखे सुखाये
गली के
कुछ कुत्ते

किसलिये
तुझे
और क्यों
याद आये
कुछ कुत्ते
आज और
 बस
आज ही
‘उलूक’

जब
कुत्तों के चिट्ठे
कुत्तों की
अभिव्यक्ति के

कुत्तों ने
एक भी
अभी
तक भी

कहीं भी
बनाये
ही नहीं
‘उलूक’

चित्र साभार: https://friendlystock.com

मंगलवार, 9 जून 2015

हाय मैगी किसने किया ये हाल तेरा हिसाब नहीं लगा पा रहे हैं

हाय मैगी
तू शहीद होने
जा रही है और
हम कुछ नहीं
कर पा रहे हैं
बहुत शर्म
आ रही है
कैसे हुआ
किसने किया
पता ही नहीं
कर पा रहे हैं  

फिर कैसे कहा
जा रहा है

समझ में नहीं
आ रहा है कि
अच्छे दिन
आ रहे हैं
बगुले खुश हैं
मेरे आसपास के
भजन गा रहे हैं
मछलियाँ 
अब
दिख रही हैं 
सतह पर
घड़ियाल तक
आँसू नहीं
बहा रहे हैं
अमन है चैन है
बिक रहा है
बहुत सस्ते में
सब ही खरीद
कर अपने अपने
घर परिवार
के लिये लिये
जा रहे हैं
‘उलूक’ ही बस
एक है इन
सब के बीच में
जिसके गले में
ही कहीं शब्द
अटक जा रहे हैं
गीत गाना चाहता है
मैगी तेरे वियोग का
मगर सुर ही
बिगड़ जा रहे हैं
कब लौटेगी
कैसे लौटेगी
चिंता हो रही है
लोग समझ
नहीं पा रहे हैं
थोड़ी सी ही सही
सांत्वना मिली है
जब से सुना है
बाबा रामदेव
देश के लिये
देश की मिट्टी
से बनी देश
वासियों के लिये
जल्दी ही खुद
बनाने जा रहे हैं।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

रविवार, 14 सितंबर 2014

इस पर लिख उस पर लिख कह देने से ही कहाँ दिल की बात लिखी जाती है



डबलरोटी
और
केक 
की
लड़ाई
लड़ने वालों 
की
सोचते सोचते 

तेरी
खुद की सोच 
क्यों
घूम जाती है 

रोटी
मिल तो 
रही है तुझको 
क्या
वो भी तुझसे 
नहीं
खाई जाती है 

कल
लिखवा गया 
कुछ
उस्तादों के 
उस्ताद
और
उसके 
धूर्त शागिर्दों पर 

आज
बाबाओं और 
भक्तों पर
कुछ 
लिखने की
तेरी 
फरमाईश
सामने 
से आ जाती है 

बदल रही है 
दुनियाँ
बड़ी तेजी से 

घर घर में
खुलती 
बाजार पर
तेरी 
नजर
क्यों
फिर 
भी नहीं जाती है 

आदमी
बेच रहा है 
आज आदमी को 

इंसानियत
सबसे 
आसानी से 
जगह जगह 
बेची जाती है 

बाबा चेले गुरु शिष्य 
हुआ करते होंगे 
किसी जमाने 
की
परम्पराऐं 

आज
हर किसी की 
नजर
हजारों करोड़ों 
की
सम्पति होने 
पर ही
भक्तिभाव
और 
चमक दिखाती है 

ग्रंथ
श्रद्धा के प्रतीक 
हुआ करेंगे
सोच कर 
लिख गये योगी 

देखते
आज सामने 
से ही अपने 
मनन चिंतन
की 
सीमाओं को तोड़कर 

कैसे पाठकगण 
उपभोक्ता

और 
कल्पनाऐं
उपभोग 
की
वस्तु हो जाती हैं 

अच्छी सोच की 
कोपलें भी हैं 
बहुत सी डालों पर 
जैसे एक तेरी 

हर जगह अलग अलग 
रोज ही खिलती हैं
और 
रोज के रोज ही 
मुरझा भी जाती हैं 

‘उलूक’ देखता है 
सब कुछ अंधेरे में 

रोज का रोज 
लिखना लिखाना 
उसके लिये

बस एक 
आवारगी
हो जाती है ।
  
चित्र साभार: http://www.illustrationsof.com/

शनिवार, 18 अगस्त 2012

नागा बाबा

नागा बाबा 
एक
देखे मैंने
नंग धडंग
खडे़ 

एक टी वी 
की दुकान 
के सामने

देखते हुऎ
फ़ैशन
टी वी में
छोटे छोटे
कपड़ों में
माडलों का
कैट वाक

घर में टी वी
कभी भी
मैं नहीं
देखता हूँ
लेकिन
वहाँ
मैं भी तन
कर खड़ा
हो गया

जैसे चल
रहा हो
क्रिकेट मैच
कोई
भारत
पाकिस्तान का

फिर कीड़ा
कुलबुलाया

आम
आदमी
के पेट में
जैसे
पचती नहीं
कोई बात

टी वी को
कम
बाबा को
ज्यादा
देख रहा
था मैं
बहुत
देर तक
लेकिन
रुक
नहीं पाया
पूछ बैठा
बाबा से

बाबा जी
कौन सा
कपड़ा
आपको
पसंद आया

बाबा मुड़ा
मुझे घूरा
थोड़ा डर
भी लगा
लेकिन फिर
मुस्कुराया

पूछा मुझसे
उसने

ये बहुत
देर से
मैं भी
देख रहा हूँ
लेकिन
समझ नहीं
पा रहा था
कि
इनसे ऎसा
कौन है
जो ये
करवा
रहा था

यहाँ तो
हर आदमी
करता है
यही
कैट वाक
वो तो
टी वी में
कहीं नहीं
दिखाया
है जाता

देखते रहो
इनको
निर्विकार
भाव से
समझो
कैट और
कैट वाक
को इनके
और
मुस्कुरालो
तो जग है
जीत
लिया जाता

सभी तो
कर रहे हैं
कैट वाक
यहां
कपड़े अपने
उतार कर

पर कहलाना
नहीं चाहते
बस दिखवाना
चाहते है
अपने को
कैट वाक पर
कपड़े की बात
छोड़ कर

पर कौन
कर सकता
है ऎसा
करता तो
मेरे जैसे
बिना कपड़े
का एक
नागा बाबा
नहीं हो जाता

बच्चा
समझा कर
तू भी मुझ से
कहाँ फिर
कुछ
पूछ पाता

समझ में तेरे
कुछ आया है
तो यहाँ से
चला जा
नहीं तो
तू भी एक
नागा बाबा
बन जा
और मेरे
साथ आजा ।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

बाबा

पत्रकार मित्र
कई दिन से
पाल रहे थे
अपने मन में
एक विचार
भारत में
फलते फूलते
बाबा बाजार
को देख कर
उत्साहित
हो रहे थे
दिन में एक
नहीं कई बार
किसी एक दिन
दुकान पर बैठे
अखबारी मित्र
से कर रहे थे
मगन हो कर
इसी विषय पर
कुछ विचार

भूला भटका
पहुँच बैठा 

मैं भी उधर
पूछते पूछते
कटहल का
मीठा अचार
पहुंचते ही मेरे
मित्र के मित्र ने
मेरा किया
ऊपर से नीचे
तक मुआयना
और
पेश किया
फिर
तुरत फुरत
अपना विचार
ये कब हो
रहे हैं रिटायर
इनसे भी तो
काम चलाया
जा सकता है
एक सटीक
और मस्त बाबा
इनको भी
तो बनाया
जा सकता है

बस ये जबान
नहीं खोलेंगे
बाकी जनता
को तो हम
खुद ही धो लेंगे
मित्र ने
दिया जवाब
बहुत ही
लाजवाब
रिटायर होने
की प्रक्रिया
इन लोगों के
यहाँ धीरे धीरे
बंद ही हो
जाने वाली है
अभी ये पैंसठ
पर अढ़े हुवे हैं
उसके बार मरने
मरने तक की
जाने वाली है

अभी सरकार
से बोल रहे हैं
नहीं होंगे रिटायर
उसके बाद
भगवान की भी
बारी आने वाली है
भगवान से भी
ये कहने वाले हैं
तू हमे नहीं
उठा सकता
इस धरती से अभी
हम ऊपर नहीं
आने वाले हैं
वैसे भी बाबा
के कारोबार
और
इनकी दुकान
में मिलता है
एक तरह का
ही सामान
ये पढ़ाने लिखाने
के धंधे से
अनपढों को पैदा
करते जा रहे हैं
उधर इनकी
उगाई फसल से
बाबा लोग अपनी
फैक्ट्री चला रहे हैंं 
मेरी समझ में
भी कुछ कुछ
आने लगा था
विचार मित्र
का धीरे धीरे
पैठ मन में
बनाने लगा था

क्या नुकसान है
अगर मैं बाबा
भी बन जाता हूँ
कालेज में
वैसे भी
कक्षा में
जा कर भी
कहाँ कुछ
पढ़ा पाता हूँ
हाँ
अखबार वालोंं
बुला बुला कर
फोटो जरूर
छपवाता हूँ
बाबा बन जाउंगा
तो सारे काम
अपने आप ही
होते चले जायेंगे
मित्र लोग मेरे
मेरे लिये भीड़
को जुटवायेंगे
पत्रकार हैं तो
फोटो के लिये
भी किसी को
बुलाना
नहीं पड़ेगा
मौन रहना ही है
इशारे से 

ही काम
चलाना पड़ेगा

चल पड़ी
तो विदेश
जाने का
मौका भी
बिना कुछ
करे कराये
चुटकियों में
हासिल
हो जायेगा
वीसा पास्पोर्ट
कोई बेवकूफ
बना बनाया
लाकर बिना
पैसे का
हाथ में
दे जायेगा

ढोंगी बाबा
'उलूक'
तुम भी यहीं
हम भी यहीं
देख भी लेना
हाँका लगाने
वाला मदारी
प्रिय जमूरों
की खातिर
बाबा उद्योग
का अध्यादेश
आज नहीं तो
कल किसी दिन
ले कर आयेगा
और
पक्का आयेगा।


चित्र साभार: www.jagran.com

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

"Its fashion to walk in hills and not to ride a car"

दो वर्ग
किलोमीटर के
मेरे शहर की
कैन्टोंन्मेंट
की दीवार
उस पर लिखी
ये इबारत

अब मुंह चिढ़ाती है

शहर के लोग
अब
सब्जी खरीदने
कार में
आने लगे हैं

वो
उनके बच्चे
दोपहियों
पर भी
ऎसे उड़ते हैं
जैसे
शहर पर
आने वाली है
कोई आफत

वो नहीं पहुंचे
अन्ना हजारे
और जलूस
दूर निकल जायेंगे
बाबा रामदेव
भाषण खत्म
कर उड़ जायेंगे

जिस दिन
बढ़ जाते हैं
पैट्रोल के दाम
और दौड़ने
लगती हैं
चमकती दमकती
कुछ और
मोटरसाईकिलें
मालरोड पर

थरथराने
लगते हैं
बच्चे बूढ़े
सूखे पत्तों
की तरह

पट्टी बंधवाते
दिखते हैं
कुछ लोग
हस्पताल में

चेहरे पर रौनक
दिखाई देती है
पुलिस वालो के

महसूस होती है
जरूरत
एक सीटर
हैलीकोप्टर की
मेरे शहर के
जांबाज बच्चो,
बच्चियों, मांओं
पिताओं के
हवा में
उड़ने के लिये

गर्व से कहें वो

हम पायलट है
जमीन पर नहीं
रखते कदम

और

जमीन पर
चलने वाले
बच्चे बूढ़े
कर सकें
कुछ देर
मुस्कुराते हुवे
सड़कों पर
कदमताल ।