अर्जुन
अब अपनी मछली को साथ में रखता है
अब अपनी मछली को साथ में रखता है
उसकी आँख पर अब भी उसकी नजर होती है
अर्जुन का निशाना आज भी नहीं चूकता है
बस जो बदल गया है वो
कि मछली भी मछली नहीं होती है
मछली भी अर्जुन ही होती है
दोनो मित्र होते हैं दोनों साथ साथ रहते हैं
अर्जुन के आगे बढ़ने के लिये
मछली भी और उसकी आँख भी जरूरी होती है
इधर के अर्जुन के लिये उधर का अर्जुन मछली होता है
और उधर के अर्जुन के लिये इधर का अर्जुन मछली होता है
दोनो को सब पता होता है
दोनो मछलियाँ अर्जुन अर्जुन खेलती हैं
दोनो का तीर निशाने पर लगता है
दोनो के हाथ में द्रोपदी होती है
चीर होता ही नहीं है कहीं
इसलिये हरण की बात कहीं भी नहीं होती है
कृष्ण जी भी चैन से बंसी बजाते है
‘उलूक’ की आदत
अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे
अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे
उसे हमेशा की तरह
इस सब में भी खुजली ही होती है ।
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