शनिवार, 16 अगस्त 2025
“बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी” मेंहदी हसन की गाई ज़फ़र की गजल की ही बात करें
शनिवार, 2 अगस्त 2025
नागा बाबा होना साधू साधू से अच्छा होता है का मतलब समझ में आ जाता है
सारे साधू एक ही होते हैं
पता चल जाता है
एक साधू साधू की खबर
खुद अपने पैसे
दे कर
अखबार में छपवाता है
साधू साधू
किसलिए कहा जाता है
तब समझ में आता है
जब टाई
पहना हुआ एक साधू
सामने से आके
आपसे हाथ मिलाता है
और मुस्कुराता है
साधुओं से मिलकर
अंतरात्मा खुश ही नहीं तृप्त हो जाती है
साधू ही धर्म होता है
साधू ही जाति होती है
साधू ही मानवता होती है
साधू ही कृष्ण साधू ही राम हो जाता है
सबसे बड़ा साधू
आपके आस
पास ही होता है
साधू साधू खेलता है
आपको पता ही नहीं चल पाता है
हम सब कितने भ्रमित होते हैं
कहां जा रहे होते हैं
क्या कर रहे होते हैं
साधू हमें भटकने से बचाता है
समय बदल गया है
साधू
इसे भी समझाता है
साधू साधू जपिए
फायदे गिनाता
है
साधू की एक मुहिम होती है
कुछ भी कर ले जाने के लिए
किसी भी एक साधू को
तीर बनाता
है
एक साधू धनुष हो जाता है
एक साधू अर्जुन हो जाता है
एक साधू मछली की आंख हो जाता
है
साधू साधू है
सभी साधुओं के लिए
‘उलूक’ को गर्व है
कलयुगी ऐसे सारे साधुओं में
उसे
नागा बाबा होना
साधू साधू से अच्छा होता है
का मतलब समझ में आ जाता है |
चित्र साभार:
https://www.vecteezy.com/
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024
अवतार है इक चुनाव मैदान में ब्रह्मा विष्णु महेश को कौन बताएगा
मत कहां जा कर गिरेगा पता चल जाएगा
चिंता किसी को हो ना हो क्या फर्क पड़ता है
इतिहास में पक्का दर्ज किया जाएगा |
बुधवार, 31 अगस्त 2022
साथ में लेकर चलें एक कपड़े उतारा हुआ बिजूका
एक कपड़े उतारा हुआ बिजूका
जो चिल्ला सके सामने खड़े उस आदमी पर
जिसको नंगा घोषित
कर ले जाने के सारे पैंतरे उलझ चुके हों
ताश के बावन पत्तों के बीच कहीं किसी जोकर से
बस शराफत चेहरे की पॉलिश कर लेना बहुत जरूरी है ध्यान में रखना
सारे शराफत चमकाए हुऐ
एक साथ एक जमीन पर एक ही समय में
साथ में नजर नहीं आने चाहिये लेकिन
बिजूका के अगल बगल आगे और पीछे
हो सके तो ऊपर और नीचे भी
सारी मछलियों की आखें
तीर पर चिपकी हुई होनी चाहिये
और अर्जुन झुकाए खड़ा हुआ होना जरूरी है अपना सिर
सड़क पर पीटता हुआ अपनी ही छाती
गीता और गीता में चिपके हुऐ
कृष्ण के उपदेशों को
फूल पत्ते और अगरबत्ती के धुऐं की निछावर कर
दिन की शुरुआत करने वाले
सभी बिजूकों का
जिंदा रहना भी उतना ही जरूरी है
जितना
रोज का रोज सुबह शुरु होकर शाम तक
मरते चले जाने वाले शरीफों की दुकान के
शटर और तालों की धूप बत्ती कर
खबर को अखबार के पहले पन्ने में दफनाने वाले खबरची की
मसालेदार हरा धनिया छिड़की हुई खबर का
सठियाये झल्लाये खुद से खार खाये ‘उलूक’ की बकवास
बहुत दिनों तक कब्र में सो नहीं पाती है
निकल ही आती है महीने एक में कभी किसी दिन
केवल इतना बताने को कि जिंदा रहना जरूरी है
सारी सड़ांधों का भी
खुश्बुओं के सपने बेचने वालों के लिये।
शनिवार, 18 मार्च 2017
निगल और निकल यही रास्ता सबसे आसान नजर आता है
सब कुछ
शून्य हो
जाता है
सामने से
खड़ा नजर
आता है
कुछ किया
नहीं जाता है
कुछ समझ
नहीं आता है
कुछ देर
के लिये
समय सो
जाता है
घड़ी की
सूंइयाँ
चल रही
होती है
दीवार पर
सामने की
हमेशा की तरह
जब कभी
डरा जाता है
उस डर से
जो हुआ ही
नहीं होता है
बस आभास
दे जाता है
कुछ देर
के लिये
ऐसे
समय में
बहुत कुछ
समझा
जाता है
समय
समझाता है
समझाता
चला जाता है
समय के साथ
सभी को
कौन याद
रख पाता है
कहाँ याद
रहती हैं
ठोकरें
किसी को
बहुत लम्बे
समय तक
हर किसी
की आदत
नहीं होती है
हर कोई
सड़क पर
पड़े पत्थर को
उठा कर
किनारे
कहाँ
लगाता है
कृष्ण भी
याद ऐसे ही
समय में
आता है
ऐसे ही समय
याद आती है
किताबें
किताबों में
लिखी इबारतें
नहीं समझी
गई कहावतें
जो हो रहा
होता है
सामने सामने
सत्य बस
वही होता है
पचता
नहीं भी है
फिर भी
निगलना
जरूरी
हो जाता है
‘उलूक’
चूहों की दौड़
देखते देखते
कब चूहा हो
लिया जाता है
उसी समय
पता समझ
में आता है
जब टूटती है
नींद अचानक
दौड़
खत्म होने
के शोर से
और कोई
खुद को
अपनी ही
डाल पर
चमगादड़ बना
उल्टा लटका
हुआ पाता है ।
चित्र साभार: www.gitadaily.com
शनिवार, 5 सितंबर 2015
‘उलूक’ व्यस्त है आज बहुत एक सपने के अंदर एक सपना बना रहा है

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015
शिक्षक दिवस इस बार राधा के साथ कृष्ण और राधाकृष्णन साथ मनाते होंगे
होने वाले कुछ
कृष्ण हो जायेंगे
कुछ बांसुरी भी छेड़ेंगे
कुछ अपनी कुछ
राधाओं के संग
कुछ रास रचायेंगे
कुछ अर्जुन भी होंगे
कुछ दुर्योधनों के
साथ चले जायेंगे
कुछ कहीं गीता
व्यास की बाँचेंगे
कुछ गुरु ध्यान
करना शुरु हो जायेंगे
शिक्षा की कुछ बातें
कुछ की कुछ बातों
में से ही निकल
कर बाहर
कुछ आयेंगी
कुछ शिक्षा
और कुछ
शिक्षकों के
संदर्भ की
नई कहानियाँ
बन जायेंगी
कुछ गीत होंगे
कुछ कविताऐं भी
सुनाई जायेंगी
कुछ शिक्षक होंगे
कुछ फूल होंगे
कुछ शाल होंगे
कुछ मालायें होंगी
कुछ चेहरे होंगे
कुछ मोहरे होंगें
कुछ खबरों में होंगे
कुछ तस्वीरों में होंगे
बनेगा अवश्य ही
कुछ अद्भुत संयोग
कुछ इस बार के
शिक्षक दिवस पर
कुछ ना कुछ तो
बन ही रहा है योग
शिक्षा के पीले वृक्ष
को जड़ उखाड़ कर
कुछ परखा जायेगा
मिट्टी पानी
हवा हटा कर
कंकरीट डाल फिर
मजबूत किया जायेगा
हर बार की तरह नहीं
इस बार कुछ अलग
कुछ नये इरादे होंगे
राधाकृष्णन
की यादें होंगी और
वहीं साथ में राधा के
कृष्ण के साथ किये
कुछ पुराने वादे होंगे
‘उलूक’ पता नहीं
कौन सा दिन मनायेगा
कुछ तो करेगा ही
हेड टेल करने के लिये
एक सिक्का पुराना
ढूँढ कर कहीं से
जरूर ले कर आयेगा।
चित्र साभार:
www.pinterest.com
livechennai.com
बुधवार, 15 जुलाई 2015
चलो ऊपर वाले से पेट के बाहर चिपकी कुछ खाली जेबें भी अलग से माँगते हैं
खाया जाता है
थोड़े से में पेट
ऊपर कहीं
गले गले तक
भर जाता है
महीने भर
का अनाज
थैलों में नहीं
बोरियों में
भरा आता है
खर्च थोड़ा
सा होता है
ज्यादा बचा
घर पर ही
रह जाता है
एक भरा
हुआ पेट
मगर भर ही
नहीं पाता है
एक नहीं बहुत
सारे भरे पेट
नजर आते हैं
आदतें मगर
नहीं छोड़ती
हैं पीछा
खाना खाने
के बाद भी
दोनो हाथों की
मुट्ठियों में भी
भर भर कर
उठाते हैं
बातों में यही
सब भरे
हुऐ पेट
पेट में भरे
रसों से
सरोबार हो
कर बातों
को गीला
और रसीला
बनाते हैं
नया सुनने
वाले होते हैं
हर साल ही
नये आते हैं
गोपाल के
भजनों को सुन
कल्पनाओं में
खो जाते हैं
सुंदर सपने
देखतें हैं
बात करने
वालों में
उनको कृष्ण
और राम
नजर आते हैं
पुराने मगर
सब जानते हैं
इन सब भरे पेटों
की बातों में भरे
रसीले जहर को
पहचानते हैं
ऊपर वाले से
पूछते भी हैं हमेशा
बनाते समय ऐसे
भरे पेटों के
पेटों के
अगल बगल
दो चार जेबें
बाहर से उनके
कारीगर लोग
अलग से क्यों
नहीं टांगते हैं ।
चित्र साभार: theinsidepress.com
गुरुवार, 7 मई 2015
रोज होता है होता चला आ रहा है बस मतलब रोज का रोज बदलता चला जाता है
और कृष्ण
के बीच का
वार्तालाप
अभी भी
होता है
उसी तरह
जैसा हुआ
करता था
तब जब
अर्जुन
और
कृष्ण थे
युद्ध के
मैदान
के बीच में
जो नहीं
होता है
वो ये है कि
व्यास जी ने
लिखने
लिखाने से
तौबा कर ली है
वैसे भी
उन्हे अब
कोई ना कुछ
बताता है
ना ही उन्हे
कुछ पता
चल पाता है
अर्जुन
और कृष्ण
के बीच
बहुत कुछ था
और
अभी भी है
अर्जुन के
पास अब
गाँडीव
नहीं होता है
ना ही
कृष्ण जी
को शंखनाद
करने की
जरूरत होती है
दिन भर
अर्जुन अपने
कामों में
व्यस्त रहता है
कृष्ण जी
को भी
फुरसत
नहीं मिलती है
दिन डूबने
के बाद
युद्ध शुरु
होता है
अर्जुन
अपने घर पर
कृष्ण
अपने घर पर
गीता के
पन्ने गिनता है
दोनो
दूरभाष पर ही
अपनी अपनी
गिनतियों
को मिला लेते हैंं
सुबह सवेरे
दूसरे दिन
संजय को
खबर भी
पहुँचा देते है
संजय भी
शुरु हो जाता है
अंधे
धृतराष्ट्रों को
हाल सुनाता है
सजा होना
फिर
बेल हो जाना
संवेदनशील
सूचकाँक
का लुढ़ककर
नीचे घुरक जाना
शौचालयों
के अच्छे
दिनों का
आ जाना
जैसी
एक नहीं कई
नई नई
बात बताता है
अर्जुन
अपने काम
पर लग जाता है
कृष्ण
अपने आफिस
में चला जाता है
‘उलूक’
अर्जुन और
कृष्ण के
बीच हुऐ
वार्तालाप
की खुश्बू
पाने की
आशा और
निराशा में
गोते लगाता
रह जाता है ।
चित्र साभार: vector-images.com
मंगलवार, 21 अप्रैल 2015
अर्जुन और मछली की कहानी आज भी होती है
अब अपनी मछली को साथ में रखता है
कृष्ण जी भी चैन से बंसी बजाते है
अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे
उसे हमेशा की तरह
चित्र साभार: www.123rf.com
रविवार, 17 अगस्त 2014
हे कृष्ण जन्मदिन की शुभकामनाऐं तुम्हें सब मना रहे हैं और जिसे देने तुम्हें सारे कंस मामा भी हमारे साथ ही आ रहे हैं
तुझे भोग लगा कर खुद खा
दादा दादी माँ पिताजी से बचपन में सुनी कहानियाँ
याद साथ साथ करते भी जा रहे हैं
कितने मारे कितने तारे गिनती करने में
आज ही की बात नहीं है कृष्ण
नहीं हुई भेंट तुझसे कहीं घर में मंदिर में
कंस से लेकर शकुनि ही शकुनि
गीता देकर गये थे तुम अपनी याद दिलाने के लिये
हैप्पी बर्थ डे कृष्ण जी कहने हमेशा हर साल
उस समय के और इस समय के
हो चुके तुम्हारे भक्त गण
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
रविवार, 9 फ़रवरी 2014
तू कर अपने मन की हम अपनी करनी करवाते हैं
आम चोर रहा हो
और दूसरा उसे
देखते हुऐ भी
कुछ भी नहीं
कह रहा हो
हो सकता है
उसकी नजर
सेबों पर हो
सेबों के गायब
होते समय
आम खाने वाला
चुप हो जायेगा
उस समय भी तू
मामले को उठा कर
उसका पोस्ट मार्टम
करना शुरु हो जायेगा
पता नहीं क्या क्या
फितूर उठा उठा
के ले आता है
फिर कभी इधर
कभी उधर जा
कर बताता है
इस जमीन पर भी
तेरे जैसे और
कितने तरह के
जोकर पैदा हो जाते हैं
खुद तो कुछ नहीं
कर पाते हैं और
दूसरों के करने पर
पता नहीं क्यों
फाल्तू में खौराते हैं
अब कोई आम चोरे
कोई सेब चोरे
कोई ना चोरे
इस सब को
लिखने दिखाने
के लिये तेरे जैसे ही
यहाँ चले आते हैं
अपने धंधों की बात
तुझ जैसे ही लोग
लोगों को बताते हैं
किसी को भी
नहीं देखा जाता
अपनी पोल पट्टी
सभी यहाँ आने से
पहले सँभाल के
कहीं जरूर आते हैं
कहीं भी कुछ
कर के आते हैं
यहाँ पर्देदारी की
इज्जत पूरी बनाते हैं
पता नहीं तेरे
जैसे लोग भजन
वजन में ध्यान
क्यों नहीं लगाते हैं
लोग पूजा पाठ
भी करते हैं
भागवत सागवत
भी करवाते हैं
पंडाल लगवाते हैं
और मैय्या मोरी
मैं नहीं माखन खायो
गाना जरूर बजवाते है
समझाते हैं चोरी करना
जब भगवान कृष्ण ही
नहीं छोड़ पाते हैं
तो तेरे जैसे के
कहने सुनने पर
कौन बेवकूफ लोग हैं
जो ध्यान लगाते हैं ।
शनिवार, 16 जून 2012
प्रेम की परिभाषा
बंद कर
जैसे कहीं
खो बैठे वो
प्रेम के
सागर में
गोते जैसे
खाने
अचानक
लगे हों
पूछने लगे
हमसे
भैया जी
प्रेम की कोई
परिभाषा
जरा हमेंं
बताइये
प्रेम है
क्या बला
जरा हमेंं
आप आज
समझाइये
'प्रेमचंद' की
'ईदगाह'
के
'हामिद' का
उसकी
दादीजान से
'मीराबाई'
का 'कृष्ण'से
पिता का पुत्र से
या फिर
किसी भी
तरह का प्रेम
जो आपकी
समझ में
आता हो
प्रेम के
सागर की
लहरों में
हिलोरों में
झूला आपको
कभी झुलाता हो
बडा़ झंझट
है जी
हमारे
साथ ही
अक्सर
ऎसा क्यों
हो जाता है
जो सबको
मुर्गा दिखाई
दे रहा हो
हमारे सामने
आते ही
कौआ काला
बन जाता है
'हामिद' सुना
था कुछ
फालतू काम
करके आया था
अपनी दादीजान
की उंगलियां
आग से बचाने
के लिये मेले से
चिमटा एक
बेकार का
खरीद कर
लाया था
'मीराबाई'
भी जानती थी
शरीर नश्वर है
और
'कृष्ण' उसके
आसपास भी
कभी नहीं
आया था
मरने मरने
तक उसने
अपने को यूँ ही
कहीं भरमाया था
किसने
देखा प्रेम
किसी
जमाने की
कहानियाँ
हुआ करती थी
प्रेम
अब लगता है
वाकई में
इस जमाने
में ही खुल
कर आया है
सब कुछ
आकर देखिये
छोटे छोटे
एस एम एस
में ही समाया है
जिंदगी के
हर पड़ाव
में बदलता
हुआ नये
नये फंडे
सिखाता
हमें आया है
नये रंग के साथ
प्रेम ने नया एक
झंडा हमेशा ही
कहीं फहराया है
चाकलेट
खेल खिलौने
जूते कपड़े
स्कूल की फीस
छोटे छोटे
उपहार
कर देते थे
तुरंत ही
आई लव यू
का इजहार
प्रेम की
वही खिड़की
विन्डो दो हजार
से अपडेट हो कर
विन्डो आठ जैसी
जवान हो कर
आ गयी है तैयार
तनिश्क
के गहने
बैंक बैलेंस
प्रोपर्टी
कार
हवाई यात्रा
के टिकट के
आसपास
होने पर
सोफ्टवेयर
कम्पैटिबल है
करके बता जाती है
खस्ता हाल
हो कोई अगर
उसके प्रेम
के इजहार पर
अपडेट कर लीजिये
का एक
संदेश दे कर
हैंग अपने आप
ही हो जाती है।