उलूक टाइम्स: ठेका
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रविवार, 14 अप्रैल 2019

कुछ भी करिये कैसा भी करिये घर के अन्दर करिये बाहर गली में आ कर उसके लिये शरमाना नहीं होता है

गिरोहों
से घिरे हुऐ
अकेले को

घबराना
नहीं होता है

कुत्तों
के पास

भौंकने
के लिये

कोई
बहाना
नहीं होता है

लिखना
जरूरी है

सच
ही बस
बताना
नहीं होता है

झूठ
बिकता है

घर की
बातों को
कभी भी
कहीं भी

सामने से
लाना नहीं
होता है

जैसा
घर में होता है

और
जैसा
बताना
नहीं होता है

नंगई को
टाई सूट
पहना कर
नहलाना
नहीं होता है

भगवान के
एजेंटों को
कुछ भी
समझाना
नहीं होता है

मन्दिर
में ही हो पूजा

अब
उतनी
जरूरी 

नहीं होती है

भगवान
का ही जब
अब कहीं
ठिकाना 

नहीं होता है

कुछ
भी करिये

कैसा
भी करिये

करने
कराने को

देशभक्ति से

कभी भी
मिलाना
नहीं होता है

कुछ
पाने के लिये

किसी को
कुछ दे
कर आ जाना

हमाम में
नंगा होकर
नहाना
नहीं होता है

कुछ
पीटते हैं

ढोल

ईमानदारी का

ठेका लेकर

सारे
ईमानदारों
की ओर से

भगवान
और उनके
ऐजेंटों को

कुछ
बताना
नहीं होता है

उनसे कुछ
पूछने के लिये

इसीलिये
किसी को भी

कहीं आना
कहीं जाना
नहीं होता है

चोरों
उठाईगीरों
बे‌ईमानों को

खड़े
रहना होता है

उनके
सामने से
तराजू के
दूसरे पलड़े पर

 ईमानदारी को
तोलने के लिये

बे‌ईमानी
का बाँट

रखवाना 

ही होता है

इसीलिये

सजा
देकर उनको

जेल में
डालने के लिये

कहीं
जेलखाना
नहीं होता है 


‘उलूक’
देशद्रोही
की चिप्पियाँ

दूसरों में
चेपने के लिये

खुद
हमाम में
जा कर नहाना
नहीं होता है

कुछ
भी करिये

कैसा
भी करिये

घर के अन्दर करिये

बाहर
गली में
आ कर

उसके लिये
शरमाना
नहीं होता है

चित्र साभार: https://www.youtube.com/watch?v=hzefdiwf-dg

बुधवार, 23 अगस्त 2017

पढ़ने वाला हर कोई लिखे पर ही टिप्पणी करे जरूरी नहीं होता है



जो लिखता है उसे पता होता है 
वो क्या लिखता है किस लिये लिखता है 
किस पर लिखता है क्यों लिखता है

जो पढ़ता है उसे पता होता है 
वो क्या पढ़ता है किसका पढ़ता है क्यों पढ़ता है 

लिखे को पढ़ कर उस पर कुछ कहने वाले को पता होता है 
उसे क्या कहना होता है 

दुनियाँ में बहुत कुछ होता है 
जिसका सबको सब पता नहीं होता है 

चमचा होना बुरा नहीं होता है 
कटोरा अपना अपना अलग अलग होता है 

पूजा करना बहुत अच्छा होता है 
मन्दिर दूसरे का भी कहीं होता है 

भगवान तैंतीस करोड़ बताये गये हैं 
कोई हनुमान होता है कोई राम होता है 
बन्दर होना भी बुरा नहीं होता है 

सामने से आकर धो देना 
होली का एक मौका होता है 

पीठ पीछे बहुत करते हैं तलवार बाजी 

‘उलूक’ कहीं भी नजर नहीं आने वाले 
रायशुमारी करने वालों का 
सारे देश में एक जैसा एक ही ठेका होता है । 

चित्र साभार: Cupped hands clip art

बुधवार, 14 मई 2014

स्वर्ग जाना जरूरी नहीं होता है जब उसके बारे में बताने वाला आस पास ही पाया जाता है

काला चश्मा
पहन कर
अपने आस पास
की गंदगी को
रंगीन कपड़े
से ढक कर
उसके ऊपर से
खुश्बू छिड़क कर
उसके पास पूरी
जिंदगी बिता देना

बहुत से लोगों को
बहुत अच्छी तरह
से आता है

सबकी नहीं भी
होती होगी
पर बहुतों
की होती है
एक ऐसी ही आदत

उसमें शामिल
होते हैं हम भी
पूरी तरह
एक नहीं
कई बार

कथा भागवत
करने में माहिर
ऐसे लोगों को
गीता से लेकर
कुरान का भी ज्ञान
रुपिये पैसे के ऊपर
लगने वाले ब्याज
की तरह आता है

कीचड़ के ऊपर से
धोती को समेरते हुऐ
बातों बातों में एक
बहुत लम्बे रास्ते से
ध्यान हटाने की
कला में पारँगत
ऐसे ही लोग
स्वर्ग के बारे में
बताते चले जाते हैं

बहुत से लोगों की
इच्छा भी होती है
जिंदा ही स्वर्ग
भ्रमण करने की

उनके लिये ही
सारा इंतजाम
किया जाता है

देखते सुनते
सब लोग हैं
जानते बूझते
सब लोग है

यही सब लोग
बहुत दूर के
बजते हुऐ
ढोलों और
नगाड़ों की तरफ
कान लगाये हुऐ
खड़े होकर
काट लेते हैं समय

इनमें से कोई
भी कभी स्वर्ग
ना जिंदा जाता है
ना ही मरने के
बाद ही इनको
वहाँ आने
दिया जाता है

नगाड़ों
की आवाज
सुनाई भी
नहीं देती है

कुछ बज रहा है
कहीं दूर बहुत
बता दिया जाता है

क्या करे
कोई उनका
जिनको अपने
आसपास के
पेड़ पौंधों
को तक पागल
बनाना आता है

वो बताते
चले जाते हैं
स्वर्ग के इंद्र
के बारे में

कब वो स्वर्ग के
लायक नहीं
रह जाता है

ऐसे समय में
स्वर्ग को फिर से
स्वर्ग बनाने के लिये
नये इंद्र को लाने
ले जाने का ठेका
दूर कहीं बैठ कर
ही हो जाता है

कथाऐं
चलती रहती है
कथा वाचक
बताता चला जाता है

फिर से एक बार
स्वर्ग बनने बनाने की
कथा शुरु हो चुकी है

सीमेंट और रेत के
शेयरों का बहुत
तेजी से ऊपर चढ़ना
शुरु हो जाने का अब
और क्या मतलब
निकाला जाता है ।

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

तू आये निकले दिवाला वो आये होये दिवाली

एक तू है

कभी कहीं
जाता है

किसी को
कुछ भी
पता नहीं
चल पाता है

क्यों आता है
क्यों चला जाता है

ना कोई
आवाज आती है
ना कोई
बाजा बजाता है

क्या फर्क पड़ता है
अगर तुझे कुछ या
बहुत कुछ आता है

पढ़ाई लिखाई की
बात करने वाले
के पास पैसे का
टोटा हो जाता है

चंदे की
बात करता है
जगह जगह
गाली खाता है

नेता से सीखने में
काहे शरमाता है
कुछ ना भी बताये
किसी को कभी भी
अखबार में आ जाता है

शहर में लम्बी चौड़ी
गाड़ियों का मेला
लग जाता है

ट्रेफिक का सिपाही
कुछ कहना छोड़ कर
बस अपना सिर
खुजलाता है

चुनाव की बात
करने के लिये
किसी भी गरीब
को कष्ट नहीं
दिया जाता है

राजनैतिक
सम्मेलनों से
साफ नजर आता है

देश में गरीबों का
बहुत खयाल
रखा जाता है

दूर ही से नहीं
बहुत दूर से भी
सिखा दिया जाता है

क्यों परेशान होता है
काहे चुनावों में खड़ा
होना चाहता है

सूचना या समझने के
आधिकार से किसी भी
गरीब का नहीं
कोई नाता है

वोट देने का अधिकार
दिया तो है तुझे
खुश रह मौज कर

अगले साल
आने के लिये
अभी से बता
दिया जाता है

हम पे नजर
रखना छोड़
आधार कार्ड
बनाने के लिये
भीड़ में घुसने
का जुगाड़
क्यों नहीं
लगाता है

समझा कर
गरीबी की
रेखा का सम्मान
इस देश में हमेशा
ही किया जाता है

सेहत के लिये जो
अच्छा नहीं होता
ऐसा कोई भी ठेका
उनको नहीं
दिया जाता है ।

बुधवार, 18 सितंबर 2013

किसी का ठेका कभी तू भी तो ले, नहीं तो सबका ठेका हो जायेगा !

हर काम को ठेके के
हिसाब से करने की
आदतें हो जाती है
ठेकेदारी घर से ही
जब शुरु की जाती है
गली मौहल्ले शहर
राज्य से होते हुऐ
देश तक भी तभी
ले जाई जाती है
कहीं कोई निविदा
नहीं निकाली जाती है
काम ठेकेदार के हाथ में
दिखने के बाद ही
ठेके की कीमत
आंकी जाती है
ठेके लेने के लिये
किसी भी तरह की
योग्यता एक बना
ली जाती है जो
कभी कभी ठेके देने
वाले की मूंछ की
लम्बाई से भी
निकाली जाती है
आकाश पृथ्वी हवा
के ठेके तक भी
लिये जाते हैं
किसने दिये किससे लिये
कौन कहां किस किस को
जा जा कर बताते हैं
कोई भी अपने आप
को एक ठेकेदार
मान ले जाता है
जिस चीज पर दिल
आ जाये उस का वो
एक ठेकेदार हो जाता है
किसी दूसरी चीज पर
दूसरा ठेकेदार अपनी
किस्मत आजमाता है
ठेकेदार की भाषा को
ठेकेदार ही बस
समझ पाता है
एक ठेकेदार हमेशा
दूसरे ठेकेदार से
रिश्तेदारी पर
जरूर निभाता है
कभी खुद के लिये
एक तलवार कभी
दूसरे के लिये ढाल
तक हो जाता है
छोटे छोटे ठेकों से
होते हुऐ ठेकेदार
कब एक बड़ा
ठेकेदार हो जाता है
ठेकेदार को भी पता
नहीं चल पाता है
अपने घर को ठेके
पर लगाते लगाते
जिस दिन पूरे देश को
ठेके पर देने के लिये
उतर आता है
उसी दिन समझ में
ये सब आता है
ठेका लेना हो अगर
किसी भी चीज का
तो किसी से कुछ कभी
नहीं पूछा जाता है
बस ठेका ले ही
लिया जाता है।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

प्रकृति विकेंद्रीकरण सीख



हे प्रकृति

छोटी धाराओं को 
तू कब तक
यूं ही 
मिलाते ही चली जायेगी

लम्बी थकाने वाली
दूरी 
चला चला कर
समुद्र में 
डाल कर के आयेगी

कुछ सबक
आदमी से भी 
कभी
सीखने के लिये 
अगर आ जायेगी

तेरी
बहुत सी परेशानियां 
चुटकी में दूर हो जायेंगी

आदमी
कभी बड़ी चीज 
को
बड़ा बनाने के लिये 
नहीं कहीं जाता
अपने लिये
खुद ही किसी 
आफत को नहीं बुलाता

तेरी जगह
अगर 
इसी काम का ठेका वो पा जाता
तो 
धाराओं को थोड़ी देर को रुकने के लिये 
बोल कर आता

इसी बीच
समुद्र को भी 
जाकर कुछ समझा आता
उसके
बड़े होते जाने के 
नुकसान
उसको 
सारे के सारे गिनाता

ये भी साथ में बताता
बड़ी चीज को संभालना 
बहुत ही मुश्किल
आगे 
जा कर कभी है हो जाता

समुद्र को
छोटे छोटे कुओं में 
इस तरह से बंटवाता

हर कुंऐ में 
एक मेंढक को
बुला कर के बैठाता

जब समुद्र 
समुद्र ही नहीं रह जाता

तब लौट कर 
धाराओं के सामने आकर
थोड़े से
आंसू कुछ बहाता

फिर किसी दिन 
साथ ले चलने का एक वादा 
बस कर के आता
टी ए डी ए का एक और मौका 
बनाता

और
आपदा आने पर भी 

तेरी तरह
आदमी की 
गाली नहीं खाता
वहां पर भी
कुछ 
पैसे बना ले जाता

हे प्रकृति

तेरी 
समझ में
ये 
क्यों नहीं आ पाता

धाराओं को मिलाने 
से
तुझे क्या 
है मिल जाता ।

चित्र साभार: www.uniworldnews.org

शनिवार, 16 मार्च 2013

सब हैं नीरो जा तू भी हो जा

हर शख्स के पास
होती है आँख
हर शख्स अर्जुन
भी होता है
तू बैचेन आत्मा
इधर उधर
देखता है
फिर फिरता
रोता है
किसने कहा
तुझसे ठेका
तेरा ही होता है
जब सारे
अर्जुन लगे हैं
तीर निशाने पर
लगाने के लिये
अपनी अपनी
मछलियों की
आँखों में
तेरे पेट में
किस बात
का दर्द होता है
युधिष्ठिर भी है
भीम भी है
नकुल भी है
सहदेव भी है
कृ्ष्ण कैसे
नहीं होंगे
द्रोपदी भी है
चीर भी है
हरण होना भी
स्वाभाविक है
पर ये सब अब
अर्जुनों के तीर
के निशाने नहीं होते
सारे अर्जुनों की
अपनी अपनी मछलियाँ
अपनी अपनी आँख
धूप में सुखा रही हैं
तीर गुदवा रही हैं
खुश हैं बहुत खुश हैं
और तू तेरे पास कोई
काम कभी नहीं होता है
तू तो बस दूसरों की
खुशी देख देख
कर रोता है
कोशिश कर
मान जा
दुनिया को
भाड़ मे घुसा
अपनी भी
एक मछली बना
उसकी आँख
में तीर घुसा
मछली को
भी कुछ दे
कुछ अपना
भी ले
रोम मे
रह कर रोम
में आग लगा
बाँसुरी बजा
सब कर रहे हैं
तू भी कर
मान जा
मत इतरा ।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

अस्थायी व्यवस्था

हर तीसरे साल
के बाद बदल दिया
जाता रहा है
मेरी सस्ते गल्ले की
दुकान का मालिक
बात है ना मजेदार

उसके बाद चाहे तो भी
रुक नहीं पाता है
कोई भी हो ठेकेदार

बहुत समय से जबकी
लग जाते हैं इस काम में
लोग सपरिवार

दुकान का ठेका
उठाना चाह कर भी
नहीं हो पाते हैं
सफल हर बार

कोशिश करते ही
रह जाते हैं बेचारे
छोटे किटकिनदार

सरकार के काम
करने के सरकारी
तरीके को खुद कहाँ
जानती है सरकार

कुछ ऎसा ही एक
नजारा देखने में
आया है इस बार

एक बादल बेकार
नाराज हो कर
फट गया जा कर
एक कोने में
कहीं सपरिवार

ठेका देने वाले को
खुद उठाना पड़ा
एक कटोरा और
जाना पड़ गया
दिल्ली दरबार

प्रश्न गंभीर हो गया
अचानक
कौन चलायेगा
इस दुकान
को इस बार
आपदा की
इस घड़ी में
कौन ढूँढने जाता
एक सस्ते गल्ले की
दुकान के लिये
एक अदद ठेकेदार

मजबूरी में तंत्र
हुआ बेचारा लाचार
पकड़ लाया एक
पकौड़ी वाला जो
बेच रहा था
आजकल
कहीं पर
अपने ही अचार

कहा है उससे
जब तक हम
देते नहीं
दुकान को
एक अपना
ठेकेदार

तुझे ही
उठाना है
गिराना है
शटर इसका
पर पकाना
नहीं पकौड़े यहाँ

नहीं आना
चाहिये ऎसा
कोई अखबार
में समाचार ।

रविवार, 18 मार्च 2012

सच

सच तो
सच
होता है
फिर कहने
सुनने में
क्यों चुभने
लगता है

लोग अपने
घर के
छेद देख
कर आँख
बंद कर
ही लेते हैं
देश के
छेद को
दिखा
कर झंडे
बुलंद कर
लेते हैं

दूसरा
कोई
देश की
बात
कैसे करेगा
करेगा
अगर तो
पहले
अपने घर
का छेद
भरेगा

घर
का छेद
बंद नहीं
किया
जाता है
ब्लैकमेल
अगर
सामने वाले
को करना
हो तो
उसी समय
खोल दिया
जाता है

लोग
घर के
चोरों को
हमेशा
माफ कर
दिया
करते हैं
देश में
हो रही
चोरियों का
हिसाब किया
करते हैं

जब
सम्भलती
नहीं पैंट
कभी
उनसे
अपनी ही
तुरंत
सामने
वाले
की बैल्ट
पर वार
किया
करते हैं

अरे घरवालो
उन घरवालों
को तो ना
डराया करो
जो घर से
बात शुरू
किया करते हैं
और
मौका
लगता
है तो
कोशिश
करते हैं
प्रदेश की
बात करें
और देश
की भी

लेकिन इन
सब बातो
से पहले
ये तो
जान जाईये

ठेका अगर
घर देश
प्रदेश का
आप ले
 रहे हैं
तो
हिम्मत करें
अपना फोटो
जरूर अपने
प्रोफाइल
पर लगाइये।