आज प्रात:
उठने से ही
विचार
आ रहा था
श्रीमती जी पर
कुछ लिखने का
दिल चाह रहा था
सोच बैठा
पूरे दिन
इधर उधर
कहीं भी
नहीं देखूंगा
कुछ
अच्छा सा
उन पर लिख कर
शाम को दे दूंगा
घर से
विद्यालय तक
अच्छी बातें
सोचता रहा
कूड़ा
दिखा भी तो
उसमें बस
फूल ही
ढूंढता रहा
पर
कौए की
किस्मत मेंं
कहां
मोर का
पंख आता है
वैसे
लगा
भी ले
अगर तो
वह मोर नहीं
हो जाता है
कितना भी
सीधा देखने
की कोशिश करे
भैंगे को
किनारे में
हो रहा सब
नजर आ
ही जाता है
उधर
मेरा एक साथी
रोता हुआ सा
कहीं से
आ रहा था
एक
महिला साथी से
बुरी तरह
डांठ
उसने
अभी अभी
खायी है
सबको
आ कर के
बता रहा था
ऎसा
पता चला
कि
महिला को
महिला पर ही
गुस्सा आ रहा था
मेरे को तो
भाई जी पर
बहुत तरस
आ रहा था
इसी
उधेड़बुन में
घर वापस आया
तो श्रीमती जी
मैने अपनी भुलायी
कलम
निकाली मगर
श्रीमती तो दूर दूर
तक कहीं भी
नजर नहीं आयी
दिमाग ने
बस एक
निरीह मित्र को
किसी से मार
खाते हुवे जैसी
छवि एक दिखाई
योजना
आज की
मैंने खटाई
में डुबायी
कोई बात नहीं
कुम्भ जो क्या है
फिर कभी मना लूंगा
अपनी ही
हैंं श्रीमती
उसपर
कविता एक
किसी और दिन
चलो बना लूंगा।
उठने से ही
विचार
आ रहा था
श्रीमती जी पर
कुछ लिखने का
दिल चाह रहा था
सोच बैठा
पूरे दिन
इधर उधर
कहीं भी
नहीं देखूंगा
कुछ
अच्छा सा
उन पर लिख कर
शाम को दे दूंगा
घर से
विद्यालय तक
अच्छी बातें
सोचता रहा
कूड़ा
दिखा भी तो
उसमें बस
फूल ही
ढूंढता रहा
पर
कौए की
किस्मत मेंं
कहां
मोर का
पंख आता है
वैसे
लगा
भी ले
अगर तो
वह मोर नहीं
हो जाता है
कितना भी
सीधा देखने
की कोशिश करे
भैंगे को
किनारे में
हो रहा सब
नजर आ
ही जाता है
उधर
मेरा एक साथी
रोता हुआ सा
कहीं से
आ रहा था
एक
महिला साथी से
बुरी तरह
डांठ
उसने
अभी अभी
खायी है
सबको
आ कर के
बता रहा था
ऎसा
पता चला
कि
महिला को
महिला पर ही
गुस्सा आ रहा था
मेरे को तो
भाई जी पर
बहुत तरस
आ रहा था
इसी
उधेड़बुन में
घर वापस आया
तो श्रीमती जी
मैने अपनी भुलायी
कलम
निकाली मगर
श्रीमती तो दूर दूर
तक कहीं भी
नजर नहीं आयी
दिमाग ने
बस एक
निरीह मित्र को
किसी से मार
खाते हुवे जैसी
छवि एक दिखाई
योजना
आज की
मैंने खटाई
में डुबायी
कोई बात नहीं
कुम्भ जो क्या है
फिर कभी मना लूंगा
अपनी ही
हैंं श्रीमती
उसपर
कविता एक
किसी और दिन
चलो बना लूंगा।